साजिश इश्क़ और बारिश की
साजिश इश्क़ और बारिश की


मैं टपरी पे बैठ के चाय के साथ बारिश का मजा ले रहा था । वैसे बारिश मे चाय पीने का मजा ही कुछ ओर है लेकिन बारिश और चाय के साथ टपरी पे बैठ के रेडियो में बजते गानों का भी कोई जवाब नहीं। वैसे कुछ पुराने गानों के बोल भी दिल को छू लेते हैं और एक अलग ही दुनिया में ले जाते हैं। में भी टपरी पे बैठ के बस कुछ ऐसे ही पुराने गानों के मजे ले रहा था और वो गाने के बोल थे...
एक अजनबी हसीना से यूं मुलाक़ात हो गई.....
माना के गाने मे किसी हसीना की बात है लेकिन मेरी आंखों के सामने भी एक हसीना ही खड़ी थी।जी हां मेरी उनसे मुलाकात ही कुछ यूं हुई थी कि टपरी, चाय और बारिश मेरी जिंदगी के अहम हिस्से में बदल गये थे लेकिन हिस्से के साथ वो मेरे लिए एक दिन कोई किस्सा बन जाएंगे ऐसा कभी मेंने सोचा ही नही था।
सुना है कि इश्क जिंदगी का एक खूबसूरत हिस्सा होता है और उस इश्क की सूरत भी बहुत खूबसूरत होती हैं लेकिन मैंने तो मेरे इश्क की सूरत देखी ही नहीं क्योंकि मेरा मानना है की इश्क कोई सूरत को देख कर नहीं किया जाता और अगर कोई मुझे अपने इश्क के बारे में पूछे तो मैं बस इतना ही कहूँगा कि ...
मेरे इश्क का रंग है
उस अंधेरी रात सा
जिसमें दिखता है कोई
चमकते चांद सा
आंखों पे पहरा है
कोई काली स्याही सा
मेरी जिंदगी में है वो
जगमगाते तार सा
बस इसी इश्क के नुर से
हो गया हुं मैं गुरुर सा ।
कुछ ऐसे ही इश्क को लफ़्ज़ों में बदल रहा था कि रेडियो में बजते गाने ने आंखों के सामने उस मोहतरमा की छवि बना कर रख दी हो और वो गाने के बोल थे...
आंखों में तेरी अजब सी अजब सी अदाएँ हैं....
मेरा दिल उस गाने के बोल को दोहराते हुए कह रहे थे कि उनकी आंखों में तो मानो अनगिनत सी अदाएँ हैं और उनकी आंखों में लगा हुआ काला काजल किसी पेन की स्याही से कम नहीं हैं। जैसे पेन की स्याही कातिब को इश्क की साझेदारी के लिए पैग़ाम देती हैं
वैसे ही उनकी आंखों में लगा काला काजल मुझे इश्क करने का पैग़ाम देती हैं।
मैंने कभी अपने इश्क की सूरत नहीं देखी लेकिन उनकी आंखों में कुछ अलग ही नसा था। में टपरी पे बैठ के चाय पीता और वो टपरी के पास में एक रासन की दुकान पर आते बस उस वक्त उनकी आंखों से इश्क की गुफ्तगू कर लेता।
कुछ ऐसे ही दिन कटते गए , शाम ढलती गई, रात उनकी यादों के पहाड़ बुनती गई । आखिरकार मैंने अपने दिलोदिमाग को समझाने लगा कि मुझे अब अपने इश्क का इजहार करना चाहिए और उसी जगह करना चाहिए जहां मुझे उनसे इश्क हुआ है। वो जगह थी चाय की टपरी जहां में अपने इश्क का इजहार चाय को साक्षी बनाकर करुंगा और उन्हें हर वो दिन मे होता शाम का इंतजार , हर वो शाम मे उनसे होती मुलाकात और रात मे उनकी यादों में लिखी गई हर वो बात दिखाऊंगा।
बस टपरी पे बैठ कर उस मोहतरमा का इंतजार कर रहा था और रेडियो में बजते गानों के मजे ले रहा था और गाना था...
इश्क की साजिशे
दो दिलों का जुआ....
इसी गाने को सुन रहा था कि टपरी के पास राशन की दुकान पर रोज आते मोहतरमा तो नहीं दिखाई दिए लेकिन उनके साथ आती शायद उनकी सहेली या बहन अकेली दिखाई दी । इसी वजह से मेरा मन अनगिनत विचारों में व्यस्त होने लगा लेकिन दिल में बस एक ही ख्याल आया कि वो मोहतरमा क्यो नही आए । बस इसी ख्याल ने उन मोहतरमा की सहेली को पुछने लगा कि ,
आपके साथ रोज बुरखा पहनकर आते मोहतरमा आज क्यूँ नहीं आये ?
उन्होंने रोते हुए बताया की....
वो मेरी सहेली थी।
कुछ दिन पहले उसकी आंखों की रोशनी उससे छिन गई और इसी वजह से.... उसने खुदकुशी कर ली......
अपने आप को काबू में रख कर उसी शब्दों को दोहराने लगा और खुद को कहने लगा कि.....
...... एक ऐसा जवाब जिसने मुझे हजारों सवालों के पिंजरे में कैद कर लिया हो।
उसी टपरी पे बैठ कर ये ही कहने लगा कि....
बारिश हर किसी के लिए प्यार की बूँदें नहीं बरसाती । कुछ लोगों के लिए बारिश पुरानी यादों पे जमी धूल को हटाने के लिए भी होती हैं जहां वो किसी के साथ होकर भी तन्हाई का एहसास दिलाती हैं।