अनकही कहानी
अनकही कहानी
मेरे पंख शायद ना थे, जो तूने आकार दे दिए,
कहूं तुझे क्या है तू, तूने तो जिंदगी में कई गम है सहे।
मैं एक कहानी लिख रही हूं या उनकी जीवन की गाथा, एक वास्तविकता ही है। मैं १० वी में थी और उन्होंने कई गम, कई अत्याचार को सह कर मेरे सामने खड़े थे मुझे ये कहे रहे की, तुम्हें आगे पढ़ना है हमारा नाम रोशन करना है, तुम बेटी हो तो क्या हुआ तुम आगे बड़ सकोगी। यह सब मेरी बड़ी बहन के थे जो बचपन से ही कही कठिनाई से गुजरती आई है। वो कुछ कहती नहीं दुनिया को की ससुराल में उसके साथ कहीं उसके सपने भी जल रहे थे। कहीं जिंदगी भी ढलती जा रही थी। और वो बस एक अच्छे घर की बेटी बन कर अपने माता पिता के लिए सब सहे जा रही थी।
अगर आज में लिख सकती हूं तो उनकी प्रेरणा एवं सहकार की वजह से ही ....!!!