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Saleha Memon

Fantasy

4.7  

Saleha Memon

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सप्तरंगी सफरनामा

सप्तरंगी सफरनामा

3 mins
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आप शायद ही एसी ट्रेन के यात्री बनें होंगे जो आपको डिज्नी वर्ल्ड जैसी एक अलग दुनिया में ले जाती हो। एक ऐसी ट्रेन जिसकी टिकट पैसों से नहीं बल्कि प्यार और लगाव से खरीदी जाती है। यह कोई मामूली सी ट्रेन नहीं जो आपको फ्रोजन या मिकी माउस से मिलाती हो, बल्कि वो ट्रेन है जो अनमोल हीरों से मिलाती हैं । अनमोल हीरे- गुलजार साहब, मरीज, गालिब, चन्द्रकान्त बक्षी, गुणवंत शाह एवं अली जारयोन से मिलाती है।हर एक डिब्बे में अलग सी दुनिया है। दुनिया- जो कातिब की कला से सजाई गई है। शाम का सफ़र सुहाना सा था जब सागर की लहरें उसे शोरगुल बना रही थी।‍ सागर- जहां मरीज की कविताओं की परछाई हों। वो कविताएं मुझे खिड़की से इस तरह से झांक रही थी जैसे कोई दो पहाड़ियों से निकलता सुरज ।उसी वक़्त कानों के पर्दे पे घंटी बज उठी और सुनने लगी तो प्रेम और मुलाकात के गीत की धुन । कोने कोने से ये आवाज़ कम हुई नहीं कि मैं जैसे कोई मार्स के सफ़र में उड़ान भरने लगी थी ऐसा महसूस कराती रुचि मुझे कोई डाकघर में ले गई। डाकघर- जहां प्रेमपत्र को अधिक सम्मान मिलता हैं , एक ऐसा डाकघर जो बिना पोस्ट किए प्रेमपत्र किसी निडर प्रेमी के घर पहुंचाते हैं। बिना मिले ही चन्द्रकान्त बक्षी से मिली ऐसी अनुभूति हुई। प्रेमपत्र तो शायद ही किसी निडर प्रेमी के घर पहुंचे होंगे लेकिन इक हवा की लहर आई जिसने अन्य छवियो से मिलाती। छवि- बिना होलनचलन करती मूर्ती, जिसे शब्दों से सजाई गई हो। अभी तो छबी की झलक दिखाई दी की कोई फहीम नामक व्यक्ति ने आवाज लगाई "तन्हा कहां हूँ मैं बंद कमरों की अलमारियों से भी किताबें मुझ पर नज़र रख रही हैं। अंधेरों में ख़्यालो के जुगनुओ का चारों ओर पहर पहरा है।" इस आवाज-ए-तन्हाई में परछाई अली जारयोन की याद आई । याद में किसी-ने खलल की जैसे रात के अंधेरों की हकुमत को खत्म करके सूरज ने झंडा गाड़ दिया हो। तभी ट्रेन में अलार्म बजने लगा और एलान किया कि जिन्दगी क्या है??? तभी जंजीरों ने आवाज लगाई :- जिन्दगी गुलजार है। जिन्दगी- कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी हैं। रात की रोशनी कम हुई नहीं कि जयदीप नामक जादूई छड़ी ने हवा में लटकती घड़ी दिखाई और उस घड़ी से आवाज़ आई के नये सफ़र की ओर बढ़ने का है। सफ़र- वो मोड़ जहां पे आपने अपना खोया होगा आत्मविश्वास, जहां छोड़ दी होगी पिया मिलन की आस ....

सफ़र की मुसाफ़िर बन ही गई थी मैं की आंखों पे सुनहरे रंग कि पिचकारियां छूटी और कानों में आवाज़ आई....

  छुक छुक छुक.......

  ( यात्री कृपया ध्यान दें अभी ही हकिकत-ए-जिन्दगी ट्रेन प्लेटफार्म नंबर तीन पर स्थगित हुई है ) 

सफ़र कुछ सुहाना सा था। जिन्दगी के मेघधनुष से आपको मिलाना था। प्यार और लगाव से खरीदी गई टिकट का नजारा था। ट्रेन- एक ऐसी सफ़र की सवारी जहां साहित्यिक खजाना था और मेरी तनहाई को मेघधनुष से रंग भरते मित्रों की कला का आशियाना था। मैं तो इस सफ़र की मुसाफ़िर बन गई क्या आप इस ट्रेन के यात्री बनना चाहोगे..????


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