रुका हुआ फैसला
रुका हुआ फैसला
"मैं कहती हूँ तू है ही बदचलन,कुलच्छिनी । यही देखना बाकि रह गया था । पहले बेटे के लच्छन उसे ले डूबे और अब तेरे इस परिवार को ही लगता है ले डूबेंगे । शरीक भी हमारे ही जख्मों को कुरेद कर मजे लेते हैं और दुख इस बात का है कि जब अपना ही शरीक़ों के साथ मिल कर ये काम करें तो किसे दोष दें,अपने ही पता नही कौन से बुरे कर्मों का फल भोग रही हूँ ।" बुढ़िया घर के दरवाजे पर खड़ी कभी बाहर की ओर मुंह कर तो कभी घर के भीतरी परिवेश की ओर मुंह करके विलाप कर रही थी ।"
घर का भीतरी दृश्य क्या था,एक तरफ कोने में दुबकी लड़की घुटनों में मुंह दिए सिसक रही थी । एक तरफ लड़की का चाचा गुस्से और दुख से परेशान आंगन में पड़े तख्त पर बैठ था और अंदर कमरे के दरवाजे पर सफेद दुप्पट्टा ओढ़े एक औरत आंसू बहाते हुए जमीन को एक टक देख रही थी ।
"बस कर मां, अंदर आ जा,जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरे को सुनाने से क्या फायदा ,वे तो खुश होंगे कि हम किस तरह अपनी ही आग में जल रहे हैं ।... मैं क्या करूँ,अगर कही गुस्से में आकर इसे मार दिया तो मैं भी जेल चला जाऊंगा और ये जी बाकि परिवार बचा है ये भी इधर उधर ठोकरे खाता खत्म हो जाएगा ।" बीच तख्त पर बैठा आदमी बोला ।
"देखो भैया आपके ही बच्चे हैं चाहे मारो ,चाहे रक्खों, मेरा क्या है,न पहले पति का सुख मिला और अब ये औलाद भी दुश्मन बनी हुई है । लोग कहते है कि विधवा से शांति के साथ टाइम पास नहीं होता,अरे मैं तो समय ही निकाल रही हूँ,पर अब ये भी किसी को गंवारा नही तो क्या करूँ।इस लड़की के भी कर्म फूटे हैं,मरे तो पिंड छूटे" ।
"अरे बच्चे हमारे हैं तो क्या तेरे नही हैं ।बहु !लड़की है ,उसे थोड़ा बहुत कंट्रोल में रख,यदि तू ही इसे कुछ समझाती तो ये नौबत न आती । अरी मां को तो अपनी बेटी की रग-रग का पता होता है ।" बुढ़िया ने हाथ हिला हिला कर कहा ।
"मैं तो यही सोचता हूँ कि दो महीने की बात है,बारहवीं पास कर लेगी तो ब्याह के अपना पिंड छुड़ा लेगें, पर जो इसके हाल दिख रहे हैं वो यही है कि कल का भी पता नहीं,इसे ये समझ नहीं आ रहा कि इसकी इस करतूत के कारण गांव में आज सिर उठा के चलने का हौंसला नही रहा । साले लोग बाग जब देखकर चुपचाप शरारत भरी हसीं हस्ते हैं तो ऐसा लगता है जैसे मुँह पर थप्पड़ पड़ रहे हों । बस मुझे धरती का कोई कोना नहीं मिलता जिसमे छुप सकूं । दुकान में काम करते भी सारा दिन ऐसे ही दिमाग खराब रहता है ।" तख्त पर बैठ आदमी कहते कहते जैसे रुआंसा हो गया ।
"चाचा ऐसी कोई बात नही हैं ,मैं तो बस स्कूल में बोलने के लिए कविता लिख रही थी ,आप गलत समझ गए ।" कोने में दुबकी लड़की ने रोते रोते कहा ।
"अरे बेशर्म कुछ तो शर्म कर ।हमारे दुश्मनों का लड़का ही मिला था तुझे हमारी मिट्टी उड़ाने के लिए,अब भी तू झूठ बोलने से बाज नहींनही आ रही । मोबाइल में कितनी बार तूने उस हरामी का नम्बर डायल किया है,मुझे पता है,तेरे डिलीट कर देने से ही सब चीजें खत्म नही हो जाती । तेरे टीचर ने भी जी चिट्ठियां पकड़ी उनसे भी यही रिपोर्ट मिली थी कि किस तरह चिठ्ठियों का आदान प्रदान तेरे और करनैल के बीच हुआ है,तुझे तो शर्म है ही नही । अपने मरे हुए बाप की तो शर्म कर । अपने जिंदा चाचा की बची खुची इज्जत के बारे में तो सोच । " तख्त पर बैठा लड़की का चाचा गुस्से में खड़ा ही गया ।
लड़की चुपचाप कमरे के भीतर चली गई ।
अब तीन लोग आंगन में अफसोस से करते बैठ गए । लड़की की मां,चाचा और लड़की की दादी ।
"मैं जब ब्याह कर इस घर मे आई, पहले तीन साल तीन बच्चों को पैदा करने और घर के काम काज में ही अपनी सुधबुध खोये रही । पति तो शराब में डूबा रहा और एक दिन एक्सीडेंट में चल बसा । अब सुबह से शाम तक फैक्ट्री में काम कर रही हूँ ताकि थोड़ा बहुत गुजर बसर में मदद हो सके । लेकिन बदकिस्मती है कि पीछा नही छोड़ रही । जब से ये लड़की दसवीं पास करके आगे पढ़ने डाली है उस दिन से बस यही ताने सुनने को मिलते हैं ।"
"देखो भाभी ताने अगर सुनने को मिल रहे हैं तो उसका कारण है,कल रात भी मिन्नते करके मुझसे मोबाइल ले लिया । कहने लगी चाचा स्कूल टीचर ने व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया है,उसमे टीचर ने क्विज के सवाल डाले हैं,उन्हें ही ऑनलाइन हल करके भेजना है ,मै मोबाइल देकर अपना काम करने लगा । थोड़ी देर बार घर के पिछले हिस्से में जाकर देखा तो एक कोने में मोबाइल लिए खड़ी थी । मैं बिना आहट किये पास जाकर देखने लगा तो न जाने किस मैसेज भेज रही थी । मैंने फट से मोबाइल ले लिया । पढ़ा तो पता चला कि किस प्रकार इश्क की आग वाली शायरी अपने दुश्मनों के लड़के करनैल को मैसेज की जा रही है । मैंने खुद नम्बर का पता ये कोने वाली दुकान से करवा लिया । मेरे तो जैसे बदन को आग लग गई । दो महीने पहले जब इसकी इस करतूत को रंगे हाथ पकड़ा था तो कितना समझाया,पीटा कि एक तो तुझे पढ़ने लिखने का खर्चा वैसे ही बड़ी मुश्किल से उठा रहे है और तो हमारे ही दुश्मनों के लड़के के साथ मिलकर ये कंजरखाना रच रही हैं । याद हैं न दो महीने पहले कैसे रात को छत पर चढ़कर अपने दुश्मन पड़ोसी के साथ हंस हंस कर बाते कर रही थी । अब पता नही कि बात कहां तक आगे बढ़ चुकी है,या बढ़ेगी ।"
चाचा गुस्से में था ।
"बस अब तो यही डर है कि अगर कही ये लड़की भाग गई तो हम तो जो बचे खुचे जी रहे है,वो भी मर जायेंगे । आज जब इसके चाचा ने सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल को कहा कि इसका नाम काट दीजिये तो प्रिंसिपल अपना रोने लगा कि दी महीने की बात है,लड़की का कोर्स पूरा हो जाएगा,तो इसके चाचा ने भी फिर तरस खाते हुए प्रिंसिपल को सहमति देते हुए कहा कि ये दो महीने हमारी इज्जत आपके हाथ मे हैं । स्कूल के गेट पर छोड़ जाया करूँगा और छुट्टी के टाइम ले जाया करूँगा,पर आप बस इसका स्कूल के अंदर ध्यान रखिये ।लड़की का बाप नही है,लोग ये न कहे कि चाचा ने सौतेले का व्यवहार करते ही लड़की की पढ़ाई बन्द करवा दी ।" लड़की की चाची भी एक कमरे से निकलते बोली ।
"यदि नाम कटवाने से भी इस लड़की पर कंट्रोल होता है तो कटवा दें,ज्यादा पढ़ लिख कर कौन इसने मेमसाहब बनना है,पास तो में भी बी ए हूँ पर आधी जिंदगी चूल्हे चौके और बच्चों को सँभालते बीत गई । आपके हर फैंसले में मेरी सहमति है ।"लड़की की मां ने उदास आवाज में जैसे अपने आप को ही कोसा हो ।
कुछ देर जैसे पूरे माहौल में एक निर्जीव सी शांति छह जाती है ।
"प्रिंसिपल की अपनी मजबूरी है,सभी सरकारी स्कूलों में इस बार छात्रों की गिनती बढ़ाने की बड़ी सख्ती है,छात्र गिनती घटी तो प्रिंसिपल को ट्रांसफर होने का डर है । वरना अभी कुछ साल पहले जरा सी बात पर नाम काट देते थे ,अब तो नालायक से नालायक छात्र जिसे कही एडमिशन नही मिलता ,सरकारी स्कूल वाले उन्हें खोज खोज कर रख रहे हैं । सब अपने मतलब से बंधे है,वरना किसी को किसी की क्या पड़ी है । हमारे ही नाक के नीचे ये पड़ोसियों के लड़के के साथ मेल जोल करती रही,हमें भनक नही लगी । वहां स्कूल वाले इतने बच्चों के बीच बैठे कौन सी रोक लगा देंगे ।" चाचा का मन शायद किसी फैसले के दोराहे पर अटका था । इस दोराहे पर थी प्रतिष्ठा,समाज और अपना आत्मसम्मान ।
लड़की की मां और दादी एक बार फिर वेदना से भरा चेहरा लिए जैसे अपनी उलझी सी मानसिकता दिखाने लगे । क्या करें क्या न करें,कैसे समझाए की कशमकश जैसे उन्हें किसी गैस चैम्बर में धकेक रही थी ।
आरोपित लड़की कमरे के भीतर बैठी इस सारे संवाद को सुन चुकी थी और आशंकित थी कि उसे स्कूल से बाहर करवा दिया जाएगा । उसके मन मे जो था वो बहुत पवित्र और मासूम लगता होगा उसे,अपनी अपनी समझ और उम्र की भावनाएं जी ठहरी ।शायद अभी भी वो उसे छुपा कर बचने का प्रयत्न कर रही थी । तो क्या मसला ये था कि लड़का दुश्मनों का था । अगर दुश्मनों का न होता तो कितना अच्छा होता शायद । शायद बात आगे बढ़ जाती ।
पूरे माहौल में प्रश्नचिन्हों का धुआं छाया है । कहानी आगे क्या होगी इसका कोई निश्चित अंत नही है । इसलिए मैं भी इस कहानी को समय पर छोड़ता हूँ । आप भी अपने आस पास देखिये इन प्रश्नचिन्हों के धुएं का प्रसार हर कोने में मिलेगा ।
