rounak
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क्यो भई इस बार न पतंग की जिद न माँजे की फरमाइश, संक्रांति पर पतंगबाजी नही करना क्या इस बार अमन ने रिंकू को टोकते हुए पूछा।
नही पापा अब इन सब में वो मजा नही आता, रिंकू उदास मन से बोला। पर पहले तो तुम इन सब मे खाना पीना तक भूल जाया करते थे।
अमन ने फिर उसके बाल मन को कुरेदा, वो कुछ याद करते हुए बोला।
तब इस दिन हमारे यहां बुआ आया करती थी। उनके साथ राजू बबलू भी होते थे, तब हम तीनों भाई बड़े मजे से पतंगबाजी किया करते थे।
आपको याद है, पापा बुआ अपने साथ हमारे लिये तिल्ली की कितनी तरह की अच्छी अच्छी मिठाइयां ।
लाया करती, और जिद करके सबको परोस दिया करती थी।
रिंकू की बात सुन मेरा मन भी अतीत की उन सुनहरी यादों में हिलोरे खाने लगा। और उसी की तरह पल भर में, मैं भी अपने बचपन की उन मीठी यादों तक पहुंच गया ।
जहाँ पतंगबाजी के दौरान मीनल मेरी सहायक बनती, और मेरे द्वारा कोई पतंग काटे जाने पर खुशी से झूम उठती।
पर जिंदगी के सफर पर साथ चलते चलते उपजे एक छोटे से मन मुटाव ने आज हमें कितनी दूर कर दिया। कभी कभी लगता है, रिश्तों की ये पतंग भी, आकाश में तभी ऊँचे उड़ सकती है। जब वो स्नेह व विश्वास की मजबूत डोर से बंधी हो।
तभी खयाल आया कि संक्रांति पर तो , भगवान सूर्य भी अपना स्थान बदल देते है। तो क्या हम भी कुछ अपनो की खुशी के लिए, अपने विचार व व्यवहार में कुछ सकारात्मक परिवर्तन नही कर सकते।
मैं कल खुद जाकर अपनी बहन मीनल को अपने घर मना लाऊंगा।
जिससे इस त्यौहार पर घर की पुरानी सी रौनक फिर लौट सके।
