चहक Nath

Tragedy

5.0  

चहक Nath

Tragedy

रोटी की नाँव

रोटी की नाँव

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"बारिश आने में बस कुछ ही समय बचे हैं लेकिन झोपड़ी की छत अभी भी सही नही हुई। " ये विचार करते हुए सरिता सामने लगे पेड़ो को ऐसे देख रही थी जैसे की अभी ही वो आम का पेड़ उसे आकर ये कह देगा की " लो तुम सोच रही थी और मैंने सही कर दिया ।"

दिन ढल चुका था और साँझ होने को आ गई, बिजली कड़कड़ाने लगी।

"सुनते हो गुड्डू के पापा", सरिता ने कहा।

"हाँ, का हुआ बोला, तू तो बस जब बोलय सुरु करत थू तौ कपार में आगि लाग् जात थ।" मोहन बोला ।

मोहन मल्लह था और गंगा से बहुत ही गहरा संम्बध। वो नाव चलाता तो गुड्डू को अच्छा लगता।

अरे...हमरे बोले आगी लागी तौ बिना बोले गंगा उतरी है।" सरिता ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा।

"जो थोड़े पैसा मिलता है तू ओका अपने नशा में झोक देत थ , कुछू.. घरे का भी सोच लिया, न हमारे बारे में सोचा तौ गुड्डू के बारे में सोच लेया।" अब सरिता के चेहरे का गुस्सा, दुख में बदल गया।

अब भी बिजली कड़क रही थी , लेकिन उसका असर बस सरिता पर ही देखने को मिल रहा था।

मोहन नशे में धुत था, अब सरिता रोटी बना रही थी ।

बिजली अब भी कड़कड़ा रही थी। गुड्डू..जो महज 4 साल का था रोटियाँ खा रहा था, और बिजली की कड़कड़ाहट से डरा था, हाँ पर उसे अपने पिता संग नाव चलाने में बेहद आनंद आता था। अब भी सरिता रोटियाँ बना रही थी , और मोहन बेफिक्र हो खा रहा था, बिजली की कड़कड़ाहट अभी शान्त हो गई ..सरिता का मन भी। सब कुछ शांत था..इस बार साथ में पत्थर के सामान ओले थे..ओले झोपडी के छत में बारिश के आने का रस्ता बनाने आये थे। अब बिजली कड़की और साथ में बारिश आई बारिश इतनी जोरदार की झोपडी में गंगा आ गई, और सरिता के हिस्से की रोटी नाव बन तैरने लगी। गुुड्डू झोपडी के एक कोने खड़ा था और रोटी की नाव देख डर रहा था। मोहन अब भी नशे में था। और सरिता के आंगन गंगा और जमुना दोनों थी, बस एक आँख में थी तो दूजी आंगन में। और अब भी मन में आग थी।


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