जन्मदिन का उपहार

जन्मदिन का उपहार

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आज मालकिन के बेटे , रोहन बाबा का जन्मदिन था।

सब मेहमान लोग आ गए थे बस कुछ एक दो लोगों का आना अब भी बाकी था।

रोहन बाबा, जो अब बस केक के आगे पीछे घूम रहे थे, उनके मन का होने ही वाला था, कि इतने में रोहन बाबा ने पूछा-

"ताई, चुन्नी कहाँ है, आई क्यों नहीं ? बिना उसके केक नहीं काटना।"

घर के सब लोग रोहन बाबा को समझाने में लग गए और मैं भी यही करने लगी।

"चुन्नी, मेरी 5 साल की बिटिया है और मेरे साथ यहाँ कभी कभार काम पर आ जाती थी।

रोहन बाबा, चुन्नी के साथ खलते और कभी कभी अपनी किताबे भी देते चुन्नी बड़ा मन लगा के पढ़ती।

"ताई, चन्नी को भी। स्कूल ले चलो मेरे ही साथ।"

"अरे बाबा, अब हमार सब के किस्मत में काला डंडा कहा हैं।" हम सब अइसेन सही बाटे।

ऐसा रोज होता रहा, ताई, रोहन को स्कूल छोडने जाती तो रोहन बोलता और ताई रोज मना कर देती।

रोहन अब अपनी माँ से कहता- "माँ चुन्नी के साथ पढ़ना है।"

रोहन के रोज कहने पर माँ तैयार हो गई।

एक सुबह ताई आई,

" सुओ सुषमा ताई, "कल रोहन का जन्मदिन है, चुन्नी को भी लाना।"

ताई कुछ न बोली और दूसरे दिन अकेले आई।

अब केक कटने वाला है, लेकिन चुन्नी नहीं है। रोहन बिना चुन्नी के केक काटने को नहीं तैयार है।

आखिर कार ताई को वापस जाना पड़ा।

अब केक के सामने चुन्नी थी, केक कट रहा था, पार्टी में मौजूद सब लोग रोहन को महंंगा उपहार दे रहे थे और रोहन अपने जन्मदिन पर चुन्नी को विद्या का उपहार दे रहा था।

इस जन्ममदिन पर इस बार बस एक को उपहार नहीं मिला बल्कि, चुन्नी, रोहन, ताई और एक बचपन को उपहार मिला, नये जीवन का उपहार।


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