हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Inspirational

4.5  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Inspirational

रंगा सियार

रंगा सियार

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हमने बचपन में पंचतंत्र की एक कहानी पढ़ी थी "रंगा सियार" । आजकल एक नेता के कारनामे देखकर हमें वह कहानी याद आ गई । रंगा सियार कहानी है धूर्तता, मक्कारी, बेशर्मी की पराकाष्ठा की । पर अंत उसकी पोल खुलने से ही होता है । जब ढ़ोल की पोल खुलती है तब सब कुछ नष्ट हो जाता है । पहले हम पंचतंत्र की मूल कहानी के बारे में जानते हैं । 

एक जंगल में एक चालाक, धूर्त , मक्कार सियार रहता था । वह जानवरों के समक्ष भोला , अहिंसक होने का नाटक करता था लेकिन वह धोखे से भोले भाले जानवरों को मारकर खा जाता था । उसकी धूर्तता के कारण जंगल के सब प्राणी उससे दूर दूर रहने लगे । कई दिनों तक उसके हाथ कोई शिकार नहीं लगा । वह भूख से निढाल हो गया था । पेट भरने के लिए उसने शहर जाने के बारे में सोचा । 


वह शहर में आ गया । उसे देखकर शहर के कुत्ते उसके पीछे पड़ गए । वह अकेला पड़ गया इसलिए वह जान बचाने के लिए भाग छूटा । पर कुत्ते उसे कहां छोड़ने वाले थे ! उसके पीछे पीछे दौड़ पड़े । वह भागते भागते थक गया तो एक मकान में घुस गया। लेकिन कुत्ते यहां भी आ गये । वह पास में रखे एक ड्रम में कूद पड़ा । इस तरह उसने कुत्तों से अपनी जान बचाई । कुत्ते उसे वहां नहीं देखकर वापस चले गये । 

जिस ड्रम में वह सियार कूदा था वह रंग से भरा हुआ था । दरअसल वह मकान एक रंगरेज का था जो कपड़े रंगने का काम किया करता था । उसने कपड़े रंगने के लिए उस ड्रम में खूब सारा हरा रंग घोल रखा था । हरे रंग में भीगने के कारण सियार भी हरा हो गया । अब वह सियार नहीं लगता था । 

वह वापस जंगल में आ गया । उसके विचित्र रंग को देखकर जानवर उससे डरने लगे । जानवरों को डरते देखकर उसे आश्चर्य होने लगा । वह जानवरों को अपने पास बुलाता मगर जानवर उससे दूर भागने लगे । उसे कुछ गड़बड़ सा लगने लगा । वह पानी पीने एक तालाब के पास पहुंचा और जैसे ही उसने पानी में खुद को देखा तो उसे सारा माजरा समझ में आ गया । वह हरे रंग का हो गया था । पानी में खुद को विचित्र रंग का देखकर वह बहुत डर गया और वहां से भाग छूटा । 

फिर उसने ठंडे दिमाग से सोचा और उसे एक युक्ति सूझी । वह एक ऊंचे टीले पर चढ़ गया और चिल्ला चिल्ला कर कहने लगा 

"मुझसे डरो नहीं । मैं किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा । मैं अपने बच्चों की कसम खाकर कहता हूं कि मैं जो भी कहूंगा सच कहूंगा , सच के सिवा और कुछ नहीं कहूंगा" । 

जंगल के समस्त प्राणियों ने उस पर विश्वास कर लिया और वे टीले के चारों ओर बैठ गये । तब रंगे सियार ने कहना शुरू किया । 

"ईश्वर ने अपने हाथों से बनाया है मुझे 

तभी तो पवित्र हरे रंग से सजाया है मुझे 

मैं सीधे ईश्वर के यहां से आया हूं 

आप सबके कल्याण के लिए ईश्वर का संदेश लाया हूं 

सुनो , सुनो । सब ईश्वर का संदेश सुनो ! 

तुम सब मुझे तुरंत अपना राजा चुनो । 

तुम मेरी सेवा करते रहना

बदले में मैं तुम्हारी रक्षा करता रहूंगा । 

समझ गये ना तुम सब लोग" ? 


उसकी कपट भरी बातों में सभी जानवर आ गये और सभी जानवरों ने हां की मुद्रा में अपना सिर हिला दिया । इस तरह वह रंगा सियार जंगल का राजा बन गया और मौज करने लगे । शेर उसके लिए शिकार करके लाता था और उसका हुकुम बजाता था । वह हाथी की सवारी करता था । उसके ठाठ हो गये । 

उसे अपना भेद खुलने का डर लगता था इसलिए उसने सभी सियारों को उस जंगल से भगा दिया । 

एक रात वे सभी सियार जंगल की सीमा पर इकट्ठे हुए और जोर जोर से "हुंवा हुंवा" करने लगे । रंगे सियार ने भी वह "हुंवा हुंवा" का शोर सुना तो वह भी सब कुछ भूलकर उस आवाज में अपनी आवाज मिलाने लगा । 

उसके पास में उसकी रक्षा करने के लिए शेर और चीता बैठे थे । जब उन्होंने उसे हुंवा हुंवा करते देखा तो वे समझ गए कि वह कोई ईश्वर का भेजा विशेष जीव नहीं है ,राजा नहीं है, एक सियार है बस । यह जानते ही शेर और चीता दोनों मिलकर उस रंगे सियार पर टूट पड़े और उसकी बोटी बोटी नोंच डाली । 


इस कहानी को सुनाने का मतलब यह है कि आज भी कोई न कोई रंगा सियार अपनी धूर्तता, मक्कारी, बेशर्मी से "राजा" बना हुआ है । हालांकि उसकी कलई अब खुल चुकी है लेकिन वह अभी भी नौटंकी करने से बाज नहीं आ रहा है । मजे की बात यह है कि अब सारे सियार उसके पक्ष में सुर में सुर मिला रहे हैं । 

श्री हरि 



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