हरि शंकर गोयल

Comedy

4  

हरि शंकर गोयल

Comedy

एक सलाम इनको भी

एक सलाम इनको भी

10 mins
410



साथियो, कोरोना संकट में हम लोगों के लिए युद्ध स्तर पर जुटे समस्त डॉक्टर, मेडिकल टीम, सर्वे टीम, सफाई कर्मी , पुलिस प्रशासनिक अधिकारी , राजनेता, स्वयंसेवी संगठन आदि के अनथक परिश्रम , सेवा भाव और अदम्य साहस की हम सबने भूरि भूरि प्रशंसा की है । हमारे प्रधानमंत्री मोदीजी के आह्वान पर हमने दिनांक 22 मार्च को सांय 5 बजे 5 मिनट तक ताली, थाली, शंख बजाकर इन कोरोना योद्धाओं की हौसला अफजाई की है और दिनांक 5 अप्रैल को रात्रि के 9 बजे 9 मिनट तक अपने अपने घरों में दीपोज्ज्वलन कर कोरोना वीरों के कार्य को सलाम किया है। हालांकि इस कृत्य से कई लोगों के दिल भी जले हैं लेकिन अपुन भी पक्के भारतीय हैं। जब तक पडौसियों की सुलगे नहीं , तो मजा नहीं आता है। भाई लोगों ने इसलिए पटाखे भी फोड़ दिये । अब तो उनकी ऐसी सुलगी कि न जाने कहां कहां से धुंआ निकलने लगा । सच में मजा आ गया। आगे भी इसी तरह सुलगाते रहो।

लेकिन मैं सोचता हूं कि क्या सबको सम्मान मिल गया ? मोदीजी ने तो कोरोना वीरों के सम्मान के लिए ही कहा था। तो हमने कर दिया । पर मेरा प्रश्न दूसरा है । क्या सम्मान के पात्र केवल डॉक्टर, नर्स, पुलिस ही है या और लोग भी इसके हकदार हैं। मैंने एक सूची बनाई है ऐसे लोगों की जिनका भी सम्मान होना चाहिए । मेरा मत है कि उक्त सूची में वर्णित लोगों को सम्मानित करके आप लोग भी अपने आप को धन्य समझेंगे । आइये , आज उनको भी सलाम करें जिनका योगदान किसी कोरोना वीर से कम नहीं है।

सूची में सबसे पहले मैं उन लोगों को सलाम करना चाहूंगा जो स्मैक , हेरोइन, ब्राउन शुगर आदि नशीले पदार्थों के आदी हैं। इन पदार्थों के बिना ये लोग जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकते हैं। अब आप लोग सोचिए कि पिछले 16 दिनों से इन लोगों को एक औंस मात्र भी मादक पदार्थ नहीं मिला और ये लोग अभी तक जिंदा हैं । ये क्या कम योगदान है इन नशा वीरों का ? भाई , मेरी तो आंखें ही भर आई । इतनी करूणा पूर्ण कहानी तो मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी । अब ये बेचारे अपनी बीवी की आंखों को देखकर ही नशे में मस्त हो गाते रहते हैं , " शरबती तेरी आंखों की , झील सी गहराई में, मैं डूब जाता हूं " । उनकी बीवियां भी आज बहुत खुश हैं कि चलो देर से ही सही , उनकी आंखों की सुंदरता को पहचाना तो सही। हालांकि वो कह रहीं हैं कि " बहुत देर कर दी , हुजूर आते आते " । मगर उनके चेहरे पर,खुशी की लकीरें हैं और आशा की किरण । अब उन्हें यह उम्मीद हो गई है कि शायद "ये" अब ड्रग्स छोड़ दें ।

दूसरा सलाम है उन शराबियों को , जो पिये बिना जी ही नहीं सकते हैं। ऐसे दारूबाज हैं कि " जहां चार यार मिल जायें , वहीं रात हो गुलजार " वाली तर्ज पर झूमते रहते हैं। हर अवसर पर पीना है। चाहे खुशी हो या हो गम । बीवी मैके जाये तो पीना , वापस आये तो पीना। अब आप ही बताओ , ऐसे संतों को अगर 16 दिनों से एक बूंद भी मयस्सर नहीं हो तो कौन नहीं रोयेगा भला ? इन्होंने अपने आप को कैसे संभाला होगा, कल्पनातीत है। शायद ये गाना गाकर

" संभाला है मैंने, बहुत अपने दिल को।

जुबां पे मगर तेरा, नाम आ रहा है " । एक सलाम ऐसे पियक्कड़ों को भी ।

तंबाकू, पान-मसाला वालों को कैसे भूल सकते हैं हम । भाई, क्या गजब का योगदान है इनका । गुटखा खाकर ' पिच्च ' से थूक कर क्या शानदार पेंटिंग बनाते हैं दीवारों पर । भई वाह । मजा आ जाता है इन पेंटिंग को देखकर। बिना गुटखा के अब इनके मुंह में कितनी खुजली चल रही होगी, कल्पना ही की जा सकती है । पेंटिंग बनाने को कितना मन कर रहा होगा इनका ? इनके कष्ट की कल्पना भी की है क्या किसी ने ? बेचारे 16 दिनों से खाना तो दूर, गुटखा, तंबाकू के दर्शन भी नहीं कर पाये हैं । और फिर भी जिंदा हैं , ये क्या कम बात है ? इनके योगदान को कैसे भुला पाओगे ? अपने अपने घरों में ये लोग यह गाना गा गा के लॉकडाउन काट रहे हैं बेचारे कि " आपसे हमको बिछड़े हुए, एक जमाना बीत गया। अपना मुकद्दर उजड़े हुए, एक जमाना बीत गया" एक सलाम ऐसे गुटखा वीरों को भी बनता है ।

औरतें भी अब बाहर जा नहीं पा रहीं हैं । सारा दिन घर में ही रहना होता है उन्हें । घर का सारा काम भी करना पड़ता है । चूंकि सब लोग अब घर में ही रह रहे हैं इसलिए काम भी बढ गया है इन दिनों में । अब मेकअप करने को न तो उन्हें फुर्सत है और न ही उस मेकअप को कोई देखने वाला है । बेचारे पति ! बिना मेकअप में बीवी को देखकर डर जाते हैं। घिग्घी बंध जाती है उनकी । चीख निकल जाती है । एक दिन जोर से चीख निकल गई तो इतनी मार पड़ी कि घर के सब बेलन‌, चिमटे, डंडे सब टूट गए । अब समस्या यह हो गई कि बेलन के बिना रोटी कैसे बेलें ? लॉकडाउन के कारण बेलन आ भी नहीं सकता है अभी तो, इसलिये वे लोग चावलों से ही काम चला रहे हैं बेचारे । अब बिना मेकअप के ही उन्हें अपनी बीवी मेनका, उर्वशी नजर आती है । क्या करें , मजबूरी है । बेलन तो टूट ही चुका है, अब चकला भी तुड़वाना चाहते हो क्या ? मरता क्या न करता वाली स्टाइल में बेचारे मजबूरी में ही सही यही गा रहे हैं। " क्या खूब लगती हो , बड़ी सुंदर दिखती हो । तुम जान से प्यारी हो , तुम जान हमारी हो " ।

लेकिन , पतियों का केवल इससे पीछा छूटना मुश्किल है । कामवाली बाई आ नहीं रही है । तो घर का काम कौन करेगा ? सरकारी कर्मचारियों की तो छुट्टी है। निजी कंपनियों के कर्मचारी भी वर्क फ्राॅम होम कर रहे हैं । तो क्या पत्नियां हमेशा दबी रहें काम के बोझ से ? तो, पत्नियों ने अपने अपने पतियों को टास्क दे दिया है घर के काम का । आज ये करना है , कल ये करना है । ऊपर से मुन्ना - मुन्नी परेशानकर रहे हैं सो अलग । बाहर घुमाने की जिद पे अड़े हैं । उन्हें कैसे समझाएं कि बाहर निकलने पर पिछवाड़ा सूजने का खतरा है ।

इसके अलावा ना कोई दारू ना गुटखा और ना कुछ और ? हे प्रभु , कैसे दिन दिखा दिये हैं तूने ? अब तो गा गा कर बुरा हाल हो गया है इनका " मुझे मेरी बीवी से बचाओ। अकड़ती है, बिगड़ती है, हर बात पे मुझसे लड़ती है "। एक सलाम इन पतिदेवों को भी ।

क्या केवल पति ही दुःखी हैं ? पतियों के हक में लिखने पर मैं नारी विरोधी करार दे दिया जाऊंगा । फिर महिला आयोग और नारीवादी मेरा जीना हराम कर देंगे । एक सलाम उन पत्नियों के लिए भी जो घर का सारा काम बाइयों के सहारे छोड़ देती हैं और खुद मेकअप करके दिन भर माॅल , किटी पार्टी , सैर सपाटे में गुजार देती हैं । अब कोरोना संकट के कारण घर का सारा काम करना पड़ता है । पति को कुछ आता जाता नहीं । उनकी माताओं ने उनको कुछ सिखाया ही नहीं क्योंकि वो तो मर्द है ना । घर का काम उसे करना ही नहीं है। सब लोग मेरी तरह एक्सपर्ट थोड़े ही हैं। बेचारी पत्नियां रो रो कर कह रहीं हैं, " बुद्धू पड़ गया पल्ले । हाय मेरे पड़ गया पल्ले " । जब देखो तब कामवाली बाई का इंतजार करती रहतीं हैं । डिस्को डांसर फिल्म के गीत " जिम्मी जिम्मी जिम्मी, आजा आजा आजा" की तर्ज पर गाती रहती हैं कि " बाई, बाई, बाई, आजा आजा आजा" । एक सलाम इन पत्नियों को भी बनता है।

जब बाइयों की बात चली है तो उनके योगदान को कैसे नकारा जा सकता है । संवाददाताओं का अधिकांश कार्य ,ये बाइयां ही तो करती हैं । इस घर की उस घर में और उस घर की तीसरे घर में । ये बाइयां जब तक इधर उधर की बातें कर नहीं लेती हैं, इनका खाना पचता ही नहीं है । अब लॉकडाउन से इनका घरों में आना जाना बंद हो गया है तो इधर उधर की बातें भी कैसे करें ? और जब तक इधर उधर की बातें नहीं करें तो खाना पचे कैसे ? अपच के कारण इनका हाजमा खराब हो गया है । अपने मरद से कब तक बात करें आखिर ? और मरद कोई बात करने के लिए थोड़े ही है, वह तो लड़ने झगड़ने के लिए बना है । तो बस, वही काम करना है । एक समस्या और हो गई है । जिन घरों में ये बाइयां काम करती हैं उन घरों से कभी कभी सब्जी , फल और कुछ सामान मिल जाता था । वो सामान भी अब नहीं मिल रहा है । सारी बातें होंठों में ही दबा कर रखनी पड़ रही हैं। अब तो एक ही गाना बचता है इनके गाने के लिए, " होंठों पे ऐसी बात में दबाके चली आई। खुल जाये वहीं बात तो दुहाई है दुहाई " । एक बड़ा वाला सलाम इनको भी ।

बेचारी लड़कियां । घर से कॉलेज जाने का बहाना करके जाती थी और मॉल में अपने बायफ्रेंड से जाकर मिल लेती थी । अब वो जमाना तो है नहीं , जब मिलने के लिए मंदिर का बहाना करना पड़ता था " मैं तुझसे मिलने आई , मंदिर जाने के बहाने " । अब तो कॉलेज, शोपिंग और न जाने क्या क्या साधन हो गये हैं मिलन के लिए । लेकिन हाय रे कोरोना ? तेरा सत्यानाश जाये ? कब तक दिल संभालें अपना ये लड़कियां ? अब बड़े अफसोस के साथ गा रहीं हैं, " हाय हाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी " । एक सलाम तो बनता है ना इनके लिए भी ।

जब प्रेमिकाओं की बात चली है तो भाई लोग कहां जायेंगे ? बिना प्रेमी के प्रेमिका कैसी ? एक एक पल जान निकाल रहा है । अब चांद सितारे किसके लिए तोड़ कर लायें ? तस्वीरों से कब तक काम चलाऐं ? दिल को कैसे बहलाएं ? दिल है कि मानता नहीं । एक ही गाना बार बार गाते हैं , " मन रे , तू काहे ना धीर धरे " । एक सलाम ऐसे धीर वीरों को भी ।

लोग घरों में रह रहे हैं । 24 घंटे घरों में लोग रहेंगे तो क्या करेंगे ? टीवी देखेंगे और क्या करेंगे । एकता कपूर जैसे लोग बहुत खुश हुए कि अब उनके घर तोड़ू सीरीयल खूब चलेंगे । बहुत सारे परिवारों को तो वो तोड़ ही चुकी हैं। भारतीय संस्कृति और सभ्यता को भी चकनाचूर भी कर दिया है उन जैसे लोगों ने । और इस नेक काम के लिए हमारी सरकार ने उसे पद्मश्री सम्मान से नवाजा भी है शायद । लेकिन हाय लग गई है किसी की । इतनी खुशी बर्दाश्त नहीं हुई लोगों को उसकी । आखिर दे ही दी ना बद्दुआ । सरकार ने रामायण और महाभारत जैसे पुराने सीरीयल फिर से दिखाना शुरू कर दिया । लोगों ने इतना प्यार दिया इन दोनों दोनों धारावाहिकों को कि इन्होंने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये । अब एकता कपूर जैसे निर्माता निर्देशक परेशान हैं कि इतने सालों से भारतीय संस्कृति को मटियामेट करने की जो मेहनत वे कर रहे थे उस पर एक झटके में ही दोनों धारावाहिकों ने पानी फिरा दिया है । अब ऐसे लोग किस तरह जी रहे होंगे , इसकी कल्पना करना बहुत मुश्किल है । एक सलाम तो ऐसे लोगों को भी बनता है ना ।

इस देश में हर समय कोई न कोई भंडारा चलता ही रहता है । लोग भंडारा खाने के लिए कोसों चले जाते हैं । पुराने जमाने में लोग भोजन का निमंत्रण मिलने पर कोसों पैदल चले जाते थे । इस संबंध में ये पंक्तियां बहुत प्रसिद्ध हैं

चावल बूरा कोस दुकोसी , पूरी पत्ता बारह ।

जो सुन पाऊं मालपुआ , तो दौड़ूं कोस अठारह ।।

अर्थात यदि चावल बूरा का निमंत्रण हो तो एक दो कोस , यदि लड्डू पूरी का निमंत्रण है तो बारह कोस और यदि मालपुआ खीर का निमंत्रण हो तो अठारह कोस तक पैदल जाया जा सकता है । पुराने लोग ऐसा करते थे ।

अब ऐसे भोजन भट्टों को भंडारा नहीं मिल रहा है तो उनके दिलों पर क्या गुजर रही है इसका अंदाजा लगाया है कभी ? बेचारे । कैसे तड़प रहे होंगे ? उनके इस महान त्याग को कोई कैसे भूल सकता है भला ! एक सलाम तो उनको भी बनता है न ।

सूची बहुत लंबी है । इसलिए मैं सोचता हूं कि आज इन सब महानुभावों के त्याग को ही सलाम कर लेते हैं । बाकी लोगों के लिए दूसरी किस्त लिखेंगे । अगर आप भी इन सबका योगदान मेरी तरह मानते हों तो लाइक, शेयर और कमेंट करके आप भी उन धीर वीरों को सलाम करें ।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Comedy