#रंग बरसे"होली है "
#रंग बरसे"होली है "
"मम्मा ! मेरे फ्रेंड्स बुलाने आए हैँ , मैं होली खेलने जाऊँ?" पूर्वा ने अपने फ्रेंड्स के लिए दरवाजा खोलते हुए वहीँ से आवाज़ लगाई।
मीता मालपुए बना रही थी, वैसे ही मैदे से सने हाथ लिए हुए बाहर आ गई।बच्चों को थोड़ा गुझिया नमकीन देकर इशारे से पूर्वा को अंदर बुलाकर ले जाने लगी।वैसे तो पूर्वा अपने दोस्तों को छोड़कर जाना नहीं चाहती थी, पर मीता ने उसे इशारा करते हुए जब हाथ पकड़ा तब पूर्वा समझ गई कि ज़रूर कोई ज़रूरी बात है।और मम्मी के साथ अंदर चली गई।
अंदर बैडरूम में ले जाकर मीता ने अपनी किशोरावस्था की दहलीज पर ख़डी बेटी को समझाया कि,
"सावधानी से होली खेलना और पुरुषों से दूर रहना और अगर कोई तुम्हें होली के बहाने यहाँ वहाँ हाथ लगाए तो विरोध करना और किसी बड़े को ज़रूर बताना और दोस्तों के साथ ही रहना।"
खैर ये सब तो वो लगभग हर साल समझाती थी पर इसबार वो कुछ ज़्यादा ही सचेत थी इसलिए उसने
पूर्वा को पुरे बाँह का बंद कॉलर वाला कुरता और ट्राउज़र पहनने को दिया और बड़े पुरुषों यहाँ तक कि बुज़ुर्गोँ से भी होली ना खेलने और उनसे दूर रहने की हिदायत दोहराते हुए उसे होली खेलने की इज़ाज़त दे दी।
बेटी को भेजने के बाद वो कुछ चिंतित सी दिखी तो अमित ने पूछा, क्या हुआ? मालपुआ बनाना क्यूँ बंद कर दिया।मेरे भी दोस्त आते होंगे, थोड़ा और बना लो फिर जमकर होली खेलेंगे।"
बोलते बोलते अमित को जैसे कुछ याद आ गया और उसने बात बदल दी कि, "वाह,मालपुए तो बड़े सुनहरे बने हैँ, एक हमें भी तो खिलाओ।"
पर मीता अभी भी गहन सोच में थी कदाचित वो अपने बचपन के ख़राब अनुभव से नहीं उबर पाई थी तभी तो इन सालों में उसने होली लगभग नहीं
के बराबर खेलती थी,बस सिर्फ घरवालों के साथ माथे और गाल पर गुलाबी रंग।हरे रंग से तो अभी भी वह दूर ही भागती थी।आज अमित के अचानक चुप हो जाने की वजह भी यही थी।वह उसकी पुरानी यादें कुरेदना नहीं चाहता था।पर अब मीता को फिर से होली की वो कड़वी याद से पीछा छुड़ाना मुश्किल लग रहा था।
उसका मन अतीत की गलियों में भटकने लगा।
तब वो दसवीं कक्षा में थी और बोर्ड की परीक्षा
होली के एक दिन पहले ही खत्म हुई थी इसलिए उसमें इस बार होली मनाने के लिए बहुत उत्साह था।तब रंग की होली बहुत खेली जाती थी।
घर में माँ और दीदी गुझिया बनाने में व्यस्त थीं तब पापा के कुछ दोस्त आए होली खेलने।मीता ने दरवाजा खोला तो किसी ने सिर पर ग़ुलाल का टीका लगाया तो किसी अंकल ने बस हल्का सा अबीर गालों पर लगाया।भीड़ में अचानक उसने महसूस किया मोहित अंकल उसे होली मिलने के बहाने कसकर गले से लगाए हुए थे और उनके
हाथ उसे अवांछनीय तरीके से छू रहे थे,उसने किसी तरह खुद को अलग करके गुस्से से उन्हें
देखा तो उन्होंने अपना मुँह ऐसे बना रखा था जैसे कुछ हुआ ही ना हो।उसके बाद भी अक्सर होली पर उसका पाला ऐसे कुत्सित मानसिकता वाले लोगों से पड़ता रहा था और उसकी रूचि इस त्यौहार में कम हो गई थी।उसने शादी के बाद अमित को पहली होली पर ही सब बता दिया था क्यूँकि यहाँ भी रिश्ते का एक देवर ऐसा ही मनचला
था जो होली के बहाने स्त्रियों को यहाँ वहाँ हाथ लगाना अपना अधिकार समझता है।तबसे अमित भी होली पर सतर्क रहने लगा था।मीता की चिंता तब तक दूर नहीं हुई जबतक पूर्वा सही सलामत वापस नहीं आ गई।
ये हमारे समाज का एक और छुपा हुआ सच है कि होली जैसे पावन और उल्लासमय त्यौहार के आनंद को भी कुछ तुच्छ मानसिकता वाले लोग बरबाद करने से बाज़ नहीं आते।और कहते हैं। बुरा ना मानो होली है।
