रंग बहादुरी का
रंग बहादुरी का
"सलोनी जल्दी चल बाहर देख ना रंग शुरू हो गया है " स्वाति ने अपनी बड़ी बहन से कहा।
" तू जा मैं नहीं आ रही, मुझे होली खेलना पसंद नहीं है "
" ये सब छोड़ और चल जल्दी, पापा ने इस बार खूब बढ़िया इंतज़ाम किया है। सब लोग भी आ गए हैं।" स्वाति सलोनी का हाथ पकड़ कर उसे जबरदस्ती बाहर ले जाने लगी।
" अच्छा तू चल मैं तेल लगा कर आती हूँ ", सलोनी ने स्वाति को बाहर जाने का इशारा करते हुए कहा
" आज उस तरुण की ख़ैर नहीं, आज उसे सबक सिखा कर रहूँगी "
" देख सलोनी कितने सुंदर सुंदर रंग हैं, बता तुझे कौन सा लगाऊँ? " स्वाति ने बाहर आई सलोनी से पूछा
सलोनी के कुछ बोलने से पहले ही स्वाति ने उसे लाल और नीले रंग में रंग दिया।
कुछ ही देर बाद सलोनी के पिता के दोस्त और पार्टनर का बेटा तरुण भी उसके पास रंग लगाने के बहाने आया और उसे स्पर्श करने लगा। सलोनी के लिए ये सब नया नहीं था, लेकिन इस बार उसने कुछ सोचा था।
" बचाओ बचाओ " सलोनी ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी, सभी उसकी तरफ भागे और तरुण हड़बड़ा गया।
" क्या हुआ सलोनी "? सभी ने एक स्वर में पूछा
" मम्मी, पापा और हिरेन अंकल तरुण पिछले 5 सालों से हर होली पर रंग लगाने के बहाने छेड़ता है, मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। इतने सालों से मैं चुप थी कि कहीं पापा और अंकल की दोस्ती और साझेदारी ना टूट जाए, पर अब और चुप नहीं रह सकती वरना ये तरुण कल को कुछ बड़ा भी कर सकता है।"
" स... स... सबूत क्या है तुम्हारे पास? " तरुण ने डरते हुए पूछा।
सलोनी ने बाहर जाने से पहले अपनी जैकेट में एक बटन कैमरा लगा लिया था, और उसी की रिकॉर्ड करी वीडियो, सभी को दिखाई।
" बेशर्म, नालायक क्या आज का दिन देखने के लिए तुझे पैदा किया था, क्या फ़ायदा तेरे पढ़ने लिखने का जब काम इतने गिरे हुए करने हैं तो? अगर तेरी बहन के साथ ऐसा होता तो उस इंसान की तो तू जान ही ले लेता... है ना? तो बता मैं तुझे क्या सज़ा दूँ? " तरुण के मानसिक आहत हुए पिता ने पूछा।
" सलोनी बेटा तू बता इसे क्या सज़ा दूँ, और मैं हाथ जोड़ कर तुझसे माफ़ी भी मांगता हूँ"
" नहीं अंकल आप माफ़ी मत मांगिये, आपने खुद ही तरुण को सज़ा दे दी है। आपने बहुत बड़ी बात कह दी, आज के बाद तरुण जब भी अपनी बहन को देखेगा तो कोई भी बुरी हरकत करने से पहले उसी का चेहरा उसके सामने आयेगा, और वैसे भी अपराधी को नहीं उसके अंदर के अपराध को खत्म करना चाहिए। मेरी माफ़ी ही इसकी ग्लानि है।"
