रक्त दान-5
रक्त दान-5
"हाँ। स्वीकार क्यों नहीं करेंगे ?आपको कोई बीमारी थोड़े न है और न ही आपका रक्त संक्रमित है । चलो ,अब चलकर डिनर करते हैं, बहुत तेज़ भूख लगी है।"
"हाँ ,चलो। "
"भगवान का शुक्र है कि मेरा डोनर कार्ड आ गया । लेकिन ब्लड बैंक से फ़ोन तो कुछ और ही आया था । खैर मुझे क्या करना है । मेरा तो मुसीबत से पीछा छूटा । ",आलोक जी के ऊपर छाये मुसीबत के काले बादल डोनर कार्ड रुपी सूर्य के उजाले से छंट गए थे ।
सुबह नमिता के ऑफिस जाते ही ,आलोक जी ने ब्लड बैंक में फ़ोन लगा दिया । मुसीबत तो चली गयी थी ;लेकिन आलोक जी को यह जानना था कि मुसीबत उन तक आयी ही क्यों थी ? एक फ़ोन कॉल ने उनका चैन छीन लिया था ।
"सॉरी सर ,एक से दो नाम होने की वजह से यह प्रॉब्लम हुई । आपको दोबारा भी कई बार कॉल किया ,लेकिन आपने उठाया नहीं । "
आलोक जी को वह दिन याद आ गया , जिस दिन रक्त दान करने गए थे । उस दिन की सभी घटनाएँ चलचित्र की भाँति उनके सामने से गुजरने लगी । वहाँ पर एक और आलोक भी रक्त दान के लिए आये थे । मजे की बात दोनों का ही नाम आलोक कुमार था । स्वयंसेवक बार -बार दोनों के एक ही नाम की वजह से कंफ्यूज हो रहे थे । जैसे ही कोई आवाज़ लगाता ......आलोक कुमार ........दोनों के दोनों वहां पहुँच जाते । बाद में दोनों की जन्मतिथियों से पता चलता कि कौन से आलोक कुमार को बुलाना है ।
आलोक जी को तो इसी समान नाम के चक्कर में दो -दो बार नाश्ता भी मिल गया था ;फिर आलोक जी ने स्वयं दूसरे आलोक कुमार को अपने नाश्ते की प्लेट दी । बस दोनों के नाम में ही समानता थी ;बाकी दोनों की किस्मत एक -दूसरे से बिलकुल जुदा थी । आलोक जी का हमनाम आलोक अपनी पत्नी ,दो बेटों ,बहुओं तथा पोते -पोतियों के साथ सुकून से ज़िन्दगी जी रहा था । जबकि आलोक जी कामकाजी बेटी के साथ रहते हुए ,दिन भर अकेले घर में अपनी ज़िन्दगी काट रहे थे ।
"उस बेचारे आलोक का रक्त संक्रमित है । ",आलोक जी को अपने सवाल का जवाब मिल गया था ।