रिश्वत का देवता
रिश्वत का देवता
रेल अपनी पूर्ण रफ्तार में थी। कड़ाके की ठंड में पाखाने के नजदीक ठीक दरवाजे के सामने जमीन पर फटे-पुराने चीथड़ों में एक निर्धन किसान बैठा हुआ था। वह ठंड से कांप रहा था और बार-बार अपनी जेब को टटोल रहा था। वह यह प्रयास निरन्तर पिछले दस-पन्द्रह मिनट से कर रहा था।
दस - पन्द्रह मिनट पहले सब ठीक-ठाक था। एक कालेकोट वाला रिश्वत का देवता आया और उसने उस निर्धन किसान का टिकट चेक किया। टिकट सामान्य श्रेणी का था और बेचारा निर्धन किसान आरक्षित श्रेणी में घुस गया था। बस रिश्वत के देवता को मिल गया लूट का मंत्र... पूरे दो सौ रुपये लूटकर ले गया और ऊपर से तमाम भद्दी-भद्दी गालियाँ उपहार में दे गया।
उस निर्धन किसान की आँखों से एक प्रलयकारी ज्वालामुखी फूट रहा था। पता नहीं उस ज्वालामुखी की महाअग्नि से वो रिश्वत का देवता भस्म होगा कि बच जायेगा... यह तो परमेश्वर ही जाने।