रिश्तों में ज़हर
रिश्तों में ज़हर
शैली आज बहुत ही खामोश थी। उसके बच्चे अपनी कोचिंग क्लास गए हुए थे। तभी उसका पति विनय ऑफिस से आया, शैली ने बिना कुछ बोले उसे सूप दे दिया।
विनय ने पूछा, "क्या हुआ?" शैली ने थोड़ा दुखी स्वर में कहा, "घरों में मन-मुटाव का कारण कितनी बार तो भड़काऊं रिश्तेदार होते हैं। मम्मी-पापा ने हम लोगों की किचन अपनी मर्ज़ी से अलग की थी। क्यूंकि वह चाहते थे, सब अपनी मर्ज़ी से अपनी ज़िन्दगी जीयें। हम सब अभी भी एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ निभाते हैं। फिर भी पता नहीं बहु को सब इतना गलत क्यों समझते हैं?” शैली विनय का मूड और ख़राब नहीं करना चाहती थी, उसने कहा, "आप फ्रैश हो कर आइये मैं खाना लगाती हूँ, तब तक बच्चे भी आ जायेंगे।” खाना गरम करते समय उसे दिन कि बातें याद आने लगी। दिन में उसके सास-ससुर उसकी सास की सहेली के मरने से लौटे थे। शैली ने सोचा चलो एक बार पूछ कर आती हूँ की मौसीजी को अचानक से क्या हुआ था। उसने अपने सास-ससुर और बुआजी के लिए चाय बनाई। बुआजी उनके घर कुछ दिन रहने के लिए आई हुई थी। उसकी सास ने बताया मौसीजी का अचानक से हार्ट फ़ैल हो गया था।
ऐसे ही बातें हो रही थी, तभी उसकी सास ने कहा, "माँ के मरने का सबसे ज़्यादा दुख तो बस बेटी को ही होता हैं। वहां पर सबसे ज़्यादा उनकी बेटी ही रो रही थी।” तभी उसकी बुआ सास बोली, "बेटे को तो थोड़ा-बहुत दुख होता हैं पर बहु तो यही सोचती हैं, चलो बला कटी।” शैली को यह बात उचित नहीं लगी, क्यूंकि उसके मन में अपने सास-ससुर के लिए बहुत आदर-सम्मान था। उन लोगों की आपस में बनती भी ठीक ही थी। शैली ने कहा, "बहु को भी ख़ुशी तो नहीं होती, सास-ससुर के मरने की। सब एक से तो नहीं होते। बहु को भी दुख होता हैं, हाँ बेटी की तो बात ही अलग हैं।” तभी उसकी बुआ सास फिर से बोली, "दुख तो घर में पले हुए कुत्ते-बिल्ली के मरने का भी होता हैं।” उसकी सास ने भी बुआजी कि हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा, "हाँ दुख तो कुत्ते-बिल्ली के मरने का भी होता है।” यह सुन कर शैली को मन ही मन बहुत दुख हुआ। शैली को इस बात का बुरा तो लग ही रहा था की बुआजी ने सास-बहु के रिश्ते को घर में पले कुत्ते-बिल्ली के रिश्ते के समान बोल दिया पर उसे यह बात और भी बुरी लग रही थी कि उसकी सासु माँ ने भी उनकी बात को सही बताया। उसे लगा उनके इतने साल के रिश्ते का तो मानो कोई मोल ही नहीं हैं।
शैली ने कहा, "जैसे सास-ससुर के मरने का उनकी बहु को उतना दुख नहीं होता, जितना उनकी बेटी को होता हैं। ऐसे ही अगर किसी की बहु सास-ससुर के सामने चली जाए, तो उन्हें भी अपनी बहु के मरने का उतना दुख तो नहीं होगा जितना उन्हें अपनी बेटी के मरने का दुख होगा। एक माँ ने तो बेटी को बचपन से पाला-पोसा होता हैं।उसे बेटी की ज़रा सी तकलीफ़ से तकलीफ़ होती हैं। उन्हें एक-दूसरे की हर अच्छाई-बुराई पता होती हैं और अपने बच्चे की कमी तो हर माँ छुपा लेती है, पर सास-बहु का रिश्ता तो चंद रस्मों के बाद जुड़ जाता हैं। वह दोनों एक दूसरे को जानती तक नहीं होती। एक बहु जब अपने ससुराल आती हैं, तब उससे अनेकों अपेक्षायें लगा ली जाती हैं। उसकी अपनी इच्छाओं के तो जैसे कोई मायने ही नहीं होते। बहु की तो एक ज़रा सी गलती सारे में खबर की तरह फ़ैल जाती हैं। सास-बहु एक दूसरे की कमियाँ ही देखती रहती हैं। इसलिए ही सास बहु के रिश्ते में उतनी मिठास आ ही नहीं पाती, जितनी माँ-बेटी के रिश्ते में होती हैं।”
शैली एक सांस में सब कुछ बोलती रही। शायद आज उसे उन लोगों की बात कुछ ज़्यादा ही चुभ गयी थी। सब उसे देखते ही रह गए। शैली उठ कर अपने कमरे में आ गयी। उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था। वह यही सोचती रही क्या मिल जाता हैं, किसी को किसी के रिश्तों में ज़हर घोल कर? तभी विनय की आवाज़ से शैली का ध्यान भंग हो गया। वह जल्दी-जल्दी सबको खाना परोसने लगी।