रिश्तों को भी सींचना पड़ता है..
रिश्तों को भी सींचना पड़ता है..
आरती और कार्तिक घर लौट रहे थे, शाम के पौने छः बज रहे थे।ठंडा मौसम होने के कारण अंधेरा जल्दी घिर आया था, दिल्ली की ठंड जो थी।पूरा शहर पाँच बजे ही रोशनी से नहा उठा था।गाड़ियों का बहुत लंबा जाम था।चारों तरफ गाड़ियों का शोर था, पर आरती और कार्तिक दोनों खामोश थे।कार्तिक ने एफएम रेडियो चलाया, गाना चल रहा था "दिल दीयां गल्लांं, सताए मैनूं क्यूँ.."।
ये रोमांटिक गाना आज दोनों को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था।वो कहते हैं न जब हम खुश होते हैं तो गाने की धुन सुनते हैं पर जब दुखी तब गाने के बोल।यही उनके साथ हो रहा था।आरती ने शीशे से बाहर झांका और अतीत के आगोश में चली गयी।
आज से 3 साल पहले ही कार्तिक और आरती मिले थे।आरती का एक मल्टीनेशनल कंपनी में कैंपस प्लेसमेंट हुआ था।कार्तिक उसी कंपनी में फाइनेंस मैनेजर था।आरती की कार्तिक से जान पहचान हो गई, धीरे-धीरे उनकी जान-पहचान दोस्ती में बदली और दोस्ती फिर शादी में बदल गई।शादी घरवालों की रजामंदी से हुई थी।यह कह सकते हैं कि लव कम अरेंज्ड थी।
शादी के शुरुआत के दिन पंख लगाकर उड़ गए।कहते हैं ना कि खुशी के दिन पता भी नहीं पड़ते हैं, वही उनके साथ हुआ।वैसे भी सच्चे प्यार को नजर लग ही जाती है।शादी के साल भर बाद ही उनके बीच बात-बात में झगड़ा शुरू हो गया।कार्तिक अपनी दुनिया में ही मस्त रहता था।आरती को क्या अच्छा लगता है? क्या नहीं? अब उसे कोई मतलब नहीं था।आरती ने कई बार अपने मन की बात कार्तिक से कहने की कोशिश की पर वह उसे उल्टा ही समझा देता था।धीरे-धीरे आरती उससे कटने लगी और उससे दूरी बना ली।
दोनों का ऑफिस एक ही था इसलिए आना और जाना साथ होता था।ऑफिस में भी दोनों सामान्य व्यवहार करते थे पर घर आते ही दोनों फिर अजनबी हो जाते थे।ऑफिस से आने के बाद कार्तिक फिर मार्केट चला जाता था अपने यार-दोस्तों के साथ समय व्यतीत करता।आरती रात को उसका खाने के लिये इंतजार करती कब कार्तिक घर आएगा एक साथ खाना खाएंगे?
अचानक से कार्तिक ने गाड़ी का ब्रेक लगाया और आरती की गहन तंद्रा टूटी।उसने देखा उसका घर आ चुका था।उसे पता था वह भी कार्तिक के साथ काम करती है उसी के बराबर तनख्वाह पाती है और उसे घर जाकर काम करना था, खाना बनाना था और इसके बाद भी उसे जिल्लत सहनी थी।आरती ने घर का दरवाजा खोला और अंदर आकर सोफे में बैठ गई और सोचने लगी कैसे और कब तक ऐसी जिंदगी झेलती रहेगी।कहने को तो घर है पर सुकून नहीं है, पति है पर प्यार नहीं है, पैसा है पर इज्जत नहीं है, सुंदर है पर तारीफ नहीं है।पानी पीते हुए आरती ने मन ही मन सोचा आज वह कोई फैसला लेकर ही रहेगी चाहे वह सकारात्मक या नकारात्मक।आज वह कार्तिक से बात करके ही रहेगी क्योंकि उसे जिंदगी काटनी नहीं थी जीनी थी।
रोज की तरह आज भी रात के 11:00 बज चुके थे, आरती इंतजार कर रही थी।कार्तिक अंदर आया और चुपचाप अपने कमरे में चला गया।आरती ने आज खाना नहीं बनाया था।उसको आज फैसला जो लेना था।कार्तिक कपड़े चेंज करने के बाद डाइनिंग रूम में आया और डाइनिंग टेबल पर बैठ गया।उसने कुछ देर इंतजार किया पर उसे खाना नहीं मिला।उसने आरती से खाना देने के लिए कहा।आरती ने जवाब दिया- "खाना? कौन सा खाना? मैंने तो आज खाना बनाया ही नहीं?"
कार्तिक ने बोला-"खाना नहीं बनाया?मतलब?"
"आज मेरा मन नहीं है" -छूटते ही आरती ने कहा।
"क्यों अब आधी रात को नाटक शुरू करना है? पता नहीं है ये खाने का टाइम है।नहीं बनाने का मन था तो बोल सकती थी न।मैं बाहर से खा आता।आफिस तो आफिस घर में भी शांति नसीब नहीं है" -गुस्से से कार्तिक ने कहा।
आरती ने कहा- "बस! बहुत कह लिया तुमने और बहुत सुनना हो गया मेरा।कभी तुमने जानने की कोशिश की है मैं क्या चाहती हूँ।तुमको मेरा ख्याल है? मैंने कभी तुमसे कुछ नहींं माँगा सिवाय तुम्हारे वक्त के!
कार्तिक आरती की बात बीच में काटते हुए बोला- "क्यों 24 घंटे तो तुम्हारे पास रहता हूं, ऑफिस में भी और घर में भी।आना-जाना भी साथ होता है।1 घंटे के लिए अपने दोस्तों के पास क्या जाता हूं तुम्हें तो परेशानी हो जाती है।कहती हो तुम्हारे लिए वक्त नहीं है, क्या कमी छोड़ी है मैंने तुम्हारे लिए? सब कुछ तो है तुम्हारे पास।"
आरती ने समझाते हुए कहा- "कार्तिक, सिर्फ 24 घंटे साथ रहने से कुछ नहीं होता।आफिस में हम लोग अलग-अलग रोल में होते हैं।24 घंटे में से सिर्फ 1 घंटा हम एक-दूसरे को समझे,एक दूसरे हँसे,मस्ती करें।वह ज्यादा जरूरी है और तुमको तो यह भी नहीं पता कि आज हमारी 3 एनिवर्सरी है।तुम्हें पता भी कैसे होगा तुम्हें तो सिर्फ अपने से मतलब है।चाहें संडे हो या मंडे हो तुम्हे लिए सिर्फ अपनी खुशियां जरूरी है।कभी तुमने सोचने कोशिश की है कि हमने कब साथ में इकट्ठे चाय पी हो?कब हम हंसे होंं?कब साथ घूमे हों? खुशियां सिर्फ बड़ी-बड़ी चीजों से नहीं मिलती उन्हें छोटी छोटी चीजों में ढूंढना पड़ता है।खुशियों का कोई पैमाना नहीं होता।छोटी-छोटी खुशियों से ही बड़ी खुशियां बनती है।रिश्तों को भी वक्त देना पड़ता है कार्तिक।"
कार्तिक को अपनी गलती का एहसास हो रहा था।वह सोचने लगा उसने सच में कितने कीमती समय को गवाँँ दिया है।कार्तिक कुर्सी से उठा और सॉरी बोलते हुए आरती को गले लगा लिया।आरती को आज अपनी थर्ड एनिवर्सरी में बेशकीमती तोहफा मिल गया था और वह तोहफा था वक्त का।
दोस्तों, यह एक कहानी भर नहीं है, यह आज के हमारे समाज की हकीकत है।आज हम सभी अपने-अपने काम में इतने व्यस्त हैं कि हमें अपनों के लिए वक्त ही नहीं है।हमारे साथ रहने वाले लोगों को क्या चाहिए? क्या नहीं चाहिए? उनकी बात सुनने, उनके साथ बैठने-खाने के लिए भी हमारे पास वक्त नहीं है।पति-पत्नी भी समय के साथ-साथ एक दूसरे को अहमियत देना कम कर देते हैं।कहते हैं ना कि पेड़ों की भी तरह से रिश्तोंं को भी स्नेह रूपी पानी देेना पड़ता है।"
