रिश्ते की खुश्बू

रिश्ते की खुश्बू

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आज मानस ने रेस्टॉरंट में मानवी को देखा तो देखता ही रह गया। कितनी सुन्दर लग रही थी। काले घने बाल बार-बार अपने हाथों से पीछे करती हुई बात-बात में ज़ोर से खिलखिलाकर उसका हँसना। मानस बस मानवी की सुंदरता में ही खो गया। 

उफ.... कितनी सुंदर है मानवी! मैं क्यों, घर में उसके साथ रह कर भी कभी उसको जी भर कर देख ही नहीं पाया, पर उसके साथ यह कौन है? क्या कोई...उसका बॉय फ्रेंड है ? इस सवाल ने मानस को परेशान कर दिया।


उसका मन किया सीधा मानवी के पास जाये, और पूछे उससे की क्या ज़रा सा भी प्यार नहीं बचा उन दोनों के बीच में ? पर उसकी बिल्कुल हिम्मत नहीं हुई, और वो अतीत की यादों में खो गया। 


मानवी और उसकी अरेंज मैरिज हुई थी। घर में सिर्फ वो दोनों ही थे। मानवी सुबह-शाम घर में घूमती रहती थी, कितनी चहल-पहल थी, उसके होने से। आज तो उसके बिना घर जाने का मन ही नहीं करता। ऐसा लगता है, जैसे किसी विराने में आ गया हूँ। मानवी छोटी- छोटी ख़ुशियाँ ही तो चाहती थी, फिर भी मैं उसे वो छोटी-छोटी ख़ुशियाँ देने में भी कंजूसी करता रहा। हमेशा ऑफ़िस से आकर टी.वी. देखता रहता था या ऑफ़िस का कोई काम लेकर बैठ जाता था। बच्चा होने के बाद भी तुम ने कितनी कोशिश कि "मैं बच्चे के साथ खेलूँ,उसके साथ टाइम बिताऊँ" पर मैं पता नहीं क्यूँ तुम दोनों से ज़्यादा अपने काम को और अपने मनोरंजन को महत्वपूर्ण समझता था। अपनी बिना बात की उलझनों में इतना उलझ गया की ज़िन्दगी कब हाथ से फिसल गयी पता ही नहीं चला। तुम कितने मन से मेरे पास आती थी और अपनी लम्बी-लम्बी, पतली-पतली उँगलियाँ मेरे बालों में डाल कर मुझसे पूछती थी "चलो आइसक्रीम खाने चलते हैं", पर मैं हमेशा कितनी बेरुखी से कह देता था, "अभी आज नहीं...आज मैं बहुत थक गया हूँ, मुझे नींद आ रही है।" पता नहीं क्यों हमारी बातें धीरे-धीरे सीमित होने लगी। मेरी घड़ी कहाँ है, मोबाइल कहाँ है? खाना लगा दो, चाय बना दो जैसे तुम मेरी ज़रूरतें पूरी करने के लिए ही हो बस। ऐसा नहीं था, कि मैं  तुम्हें या अपने बच्चे को प्यार नहीं करता था। बहुत प्यार करता था तुम दोनों को, तुम ही तो मेरी दुनिया थे, पर न जाने क्यों, मैं तुम्हें कभी यह सब बता ही नहीं पाया! शायद मैं यह सोचता रह गया, तुम दोनों मेरे ही तो हैं, ऐसे सारा दिन प्यार जताने की क्या ज़रूरत है। अपनी ही दुनिया में खोया रहता था।

मैं कितना स्वार्थी हो गया था...एक छोटे से गजरे के लिए मैंने तुम्हारा कितना दिल दुखाया था। मम्मी के घर से लौटते वक़्त तुमने कितने मन से मुझसे गजरा खरीदने के लिए कहा था और मैंने एक मिनट नहीं लगाया था तुम्हें मना करने में, यह कहते हुए कि मैच आने वाला है टी.वी. पर, अब घर चलते हैं फिर कभी ख़रीद लेंगे गजरा। मुझसे अपने आँसू छुपाने कि कितनी कोशिश की थी तुमने पर तुम्हें इतना दुःख हुआ था कि तुम्हारे आँसू बहते ही जा रहे थे। तब भी मेरा दिल नहीं पसीजा। मैंने सोचा ऐसा भी क्या हो गया, कुछ ज़्यादा ही रो कर दिखा रही है, पर आज सोचता हूँ, मैच थोड़ा सा निकल भी जाता तो क्या हो जाता। आज तुम्हारा एक-एक आँसू मुझे बहुत कीमती लगता है। आज समझ आता है, कैसे मैं तुम्हारा छोटी-छोटी बातों में भी दिल दुखा देता था। आखिर कब तक, तुम मुझे समझाती। तुम मुझसे बस मेरा थोड़ा सा टाइम ही तो चाहती थी, जो मैं तुम्हें और अपने बच्चे को कभी न दे सका। तुम भी बेचारी घर की चार-दीवारी में कैद हो कर रह गयी थी। तुम्हें अंदर ही अंदर घुटन होने लगी थी। इसलिए कभी-कभी गुस्सा होने लगी थी। फिर एक दिन गुस्से में बोली "जब तुम्हें मेरी ज़रूरत ही नहीं है, तो क्या फायदा ऐसा रिश्ता निभाने का? तुम अपनी ज़िन्दगी जियो, मैं अपनी जी लूँगी। मैं मायके जा रही हूँ।" "मैं तुम्हें रोकना चाहता था, दो चार-बार मैंने तुम्हें रुकने को कहा भी, पर तुम जाने की जिद्द करती रही। मैंने सोचा ठीक है, थोड़े दिन मायके रह आएगी तो, तुम्हारा मन ठीक हो जायेगा पर हमारे घर वालों ने ही हमारे रिश्ते में ज़हर घोल दिया। मुझे मना करते रहे, तुम्हें घर वापिस लाने को की अपनी अकड़ में गयी है, तो खुद ही आने दे उसे। मैं भी उनकी बात मान गया, जैसे मेरी अकल पर तो पत्थर ही पड़ गए थे।"


तभी वेटर की आवाज़ से मानस चौंका "सर और कुछ लाना है, आपके लिए"? उसने मना करते हुए कहा, "बिल ले आओ।" तभी उसने मानवी की टेबल की तरफ देखा, मानवी वहां नहीं थी, वह जल्दी से बिल देकर बाहर भागा। मानवी अपनी गाड़ी निकाल रही थी। आज मैं यह मौका हाथ से नहीं जाने दूँगा। मैं मानवी को बताऊँगा कि उसके बिना मेरा जीवन बेकार है। तभी मानवी की भी नज़र मानस पर पड़ गयी। उसकी आँखों से जैसे कोई नदी बह गयी। मानस ने गाड़ी का दरवाज़ा नॉक किया और दो मिनट का समय मांगने का इशारा किया। मानवी ने दरवाज़ा खोल दिया, कुछ देर तक दोनों बिल्कुल शांत बैठे रहे। फिर मानस ने ही बात शुरू की "आर्ना कैसी है"? मानवी ने कहा "बिना बाप का बच्चा कैसा होता है? हर जगह आपको मिस करती है।" पहले तो आप फ़ोन कर भी लेते थे। अब तो फोन करने का समय भी नहीं है आपके पास, और मैं यह सोच कर फ़ोन नहीं करती थी कि जब मेरे रहते हुए बात करने की फुर्सत नहीं थी आपके पास, तो अब क्या आपका टाइम खराब करूँ। मानस ने मानवी की बात का जवाब दिए बिना एक दम से उससे पूछा "वो तुम्हारे साथ रेस्ट्रॉन्ट में कौन था, मानवी"? "तुम्हारे सिवाय तो मैंने कभी किसी के बारे में सोचा ही नहीं, और तुम एक लड़के को मेरे साथ देख कर पता नहीं क्या-क्या सोचने लगे। मेरे चाचाजी का बेटा था। हमारी शादी में नहीं आ पाया था, क्योंकि पढ़ाई के लिए बाहर गया हुआ था। इसलिए तुम नहीं जानते उसे। अभी मार्किट में मुझे मिल गया था, तो हमने सोचा चलो कुछ खा लेते हैं। इस बहाने एक-दूसरे से बात भी हो जायेगी। मानवी ने थोड़ा गुस्से में कहा, तो मानस ने झेपतें हुए कहा "सॉरी मैं भी कुछ भी सोच लेता हूँ।" क्या घर नहीं चलोगी? तुम्हारे बिना घर-घर नहीं लगता। मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता, मेरी ज़िन्दगी की ख़ुशी तुम दोनों से ही है। मानवी ने हँस कर पूछा "इतनी बातें किस से बनानी सीखी"? मानस ने कान पकड़ते हुए कहा "तुम्हारी गैर-मौज़ूदगी ने सब सिखा दिया, चलो आर्ना को लेने चलते हैं।" तभी साइड से गजरे बेचने वाला जा रहा था। मानस ने एक गजरा ख़रीद कर मानवी के बालों में लगा दिया। मानवी की आँखें भर आई, यह सोच कर कि "इस गजरे के फूलों की तरह उनके रिश्ते की खुशबू भी अभी बाकी है।"


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