Kavita jayant Srivastava

Inspirational Others

5.0  

Kavita jayant Srivastava

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रबरबैंड

रबरबैंड

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"सुनो जी ! जरा एक रबरबैंड देना ,पिंकी के बालों में लगा दूँ ,हर वक़्त बाल बिखरे रहते हैं इसके, किसी को चिंता ही नहीं, बच्ची दिन भर घूमती रहती है यूँ ही, किसी को इतनी फुर्सत नहीं कि, उसके बाल तक सँवार दिए जाए..!" कटाक्ष बहू की ओर था ,बहू समझ गयी कि उसे ही इंगित कर ये सब बोला जा रहा, वह समझ गयी कि, सुबह की बहस के बाद नंद ने ज़रूर माँ से शिकायत की है। रमाकांत : "बस करो भाग्यवान ! तुम भी सुबह सुबह शुरू हो गयी ..अरे इतना भी क्या बोलना की हर बात का व्यंग्य बहू ही को कसो..! कुछ ग़लती तुम लोगों की भी तो है ..!"

पति की बात को अनसुना कर के सुमनदेवी बोलती रही "तुम चुप करो जी ! अरे, जिम्मेदार बहू का स्वभाव लचीला होता है ,वह अपने आँचल में सब कुछ समेट लेती है चाहे वो बिखरी गृहस्थी हो चाहे रिश्ते नाते..घर की बहू विनम्र व परिस्थिति के हिसाब से सामंजस्य बिठाने वाली होती है, देखो न जैसे ये रबरबैंड है सारे बिखरे बालों को समेट लिया ,किसी भी लट को बाहर नहीं जाने दे रहा..!" कहकर सास ने चोटी को कई बार रबर में से निकाल कर दिखाया ,हर बार रबर की गति बालों के हिसाब से खुद को घूम घूमा कर बालों को कस लेती..रबर की लचक वापिस अपने रंग रूप में लौट आती

रमाकांत बोले, ''अरे बस करो कितनी दफे घुमाओगी ,बच्ची के बाल खिंच जाएंगे।"

सुमन जी ने बरसों का लावा उगला "तुम चुप करो जी , आज 27 साल से हर वक़्त मुझे ही रोकते टोकते हो , किसी और को न कहते कभी कुछ !"

रमाकांत चुप हो गए तभी चोटी में बांधा जाता रबरबैंड टूट गया और सुमन जी 'आह' कह कर अपना हाथ देखने लगी उसमे ज़ोर की चोट लग गयी रबर से ..।

रमाकांत बोले "कब से यही समझा रहा हूं कि, किसी पर जरूरत से ज्यादा दबाव बनाओगी ,तो इसी तरह कल को चोट तुम्हें ही लगेगी ,आखिर कब तक सहेगा कोई, चाहे वो बहू हो या रबरबैंड !"


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