आखिरी रक्षाबंधन

आखिरी रक्षाबंधन

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प्रभास: बोल क्या चाहिए तुझे इस बार रक्षा बंधन पर !

ऋतु: जाने दो भइया ! हर बार वही पांच सौ रुपये पकड़ाते हो' (चिढ़ कर कहा)

प्रभास : अरे ! सच्ची ! इस बार पक्का तुझे स्मार्ट फ़ोन दे रहा हूँ मैं' ...!

ऋतु: खुश होकर सच्ची प्रभु भइया ! फिर तो कमाल हो जाएगा मैं सबको बताऊँगी की भाई ने दिया है..!

प्रभास : चल चल पहले आने तो दे पहले बोल प्रभु भइया की जय !

ऋतु: बड़े गंदे हो आप ! अभी तो बोल रहे थे कि दिलाऊँगा और अब तुरंत ही बात से मुकर गए ! ( गुस्से से पांव पटकते हुए) मैं कुछ नहीं जानती आपको फ़ोन दिलाना ही होगा ! आखिर मेरा ग्रेजुएशन पूरा हो चुका है ..मेरी सब सहेलियों के पास है स्मार्ट फ़ोन मुझे छोड़कर ! (रुआंसी होकर ) जाओ मैं राखी भी नहीं बाँधूंगी आपको ..!

प्रभास: अच्छा बाबा दिलाऊँगा ' बस ! अब रोनी सूरत बनाना बन्द कर ..! नौटंकी ..!

याद करते करते प्रभास की आँखों से आँसू छलक पड़े !

अभी पिछले रक्षा बंधन पर कितना लड़ झगड़ के फ़ोन खरीदवाया था उसने ..और इस बार कितना सूना सा है घर का हर कोना ... उसके चले जाने के बाद से जैसे पूरे घर में वीरानी छा गई है वह चिड़िया सी चहकती फुदकती रहती थी घर में हर किसी से मतलब था उसे... कभी पिताजी के कपड़े रखना कभी मेरे कमरे की हर अव्यवस्थित चीज को सुव्यवस्था के दायरे में लाना.. और साथ ही मुझे झिड़कियाँ भी देना, बात बात पर ताने देना कि ...क्या भैया ? सब कुछ फैला कर रखते हो ! तुम्हारी शादी हो जाएगी ना ..तब सुधरोगे ! जब बीवी आके डंडा मारेगी तब अक्ल ठिकाने आएगी .' और हाँ ध्यान रखना.. उसके आने के बाद मैं कुछ काम नहीं करूँगी तुम्हारा ! और मैं उसे छेड़ा करता था..

'हाँ हाँ तुझे तो कोई बंदर ले जाएगा 'अपने घर के काम करवाने ..!

अच्छा ! तुम्हें ना कोई बंदरिया मिल जाए ! बड़े आये' मुझे बंदर नहीं तुम्हे बंदरिया मिलेगी.! वो मेरे ऊपर तकिये के प्रहार करती हुई बोलती। कितने अरमानों से डोली में बिठाया था उसे.. समाज के बनाए नियमों के आगे मजबूर होते हैं हम और अपनी आँखों की रोशनी को किसी दूसरे के घर का उजाला बनने के लिए एक अनजान घर में भेज देते हैं और हम यह भी नहीं जानते कि, क्या होगा उस रोशनी का..! वो उनका घर आँगन रोशन करेगी या झुलस कर बुझ जाएगी स्वयं..!

उसकी याद आते ही मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े..! याद है मुझे उस दिन फ़ोन पर आखिरी बार बस इतना ही बोल पाई थी कि, भइया बचा लो मुझे..! ...फिर एक चीख के साथ उसका फ़ोन कट गया था ... इंदौर से लखनऊ की दूरी तय करने में मुझे पूरा दिन लग गया और जब तक मैं पहुँचा उसकी हालत बहुत सीरियस थी ..वो आई सी यू में अपनी आखिरी साँस गिन रही थी .. डॉक्टर बोल रही थी कि ब्लीडिंग बहुत ज्यादा हो रही थी ...चार माह के गर्भवती थी वो और कमजोर भी ... बच्चे की गर्भ में ही मृत्यु हो जाने से उसके शरीर में जहर फैल गया था और शरीर बहुत कमजोर भी हो गया था इसलिए हम उन्हें बचा न सके..! "

यही बताया उन लोगों ने..शायद.! इसलिए डॉक्टर भी वही बात बता रही थी जो उन लोगों ने बताया होगा..! किन्तु संभवतः पिछले तीन चार दिन से कुछ खाया नहीं था और जिस दिन फ़ोन किया था मुझे उस दिन बहुत पीटा गया था उसे...! क्योंकि फ़ोन काटते वक़्त की वो चीख..' ऐसा लग रहा था कि शायद जोर से किसी चीज़ को उसके सिर पर दे मारा था उन लोगों ने...!

और मैं आई सी यू के बाहर गोल शीशे से देख रहा था .. वो बेहोश थी और पट्टियों से उसका सिर ढंका था..! और मैं लाचार कुछ न कर सका क्योंकि, मैं पैसों से कमजोर था और उस वक़्त शायद मन का आक्रोश उसकी ये हालत देख ..कहीं छुप गया ..! मेरी आँखों मे उसकी विदाई के दृश्य थे और कानों में उसकी चीख़ की गूंज कि भैया बचा लो मुझे ..! अभी उसे गए सिर्फ पंद्रह दिन हुए हैं और लगता है सोचता हूँ कि कभी नहीं कहा उसने मुझसे की क्या सह रही है वो ..शायद जब अति हो गयी तब हार कर फ़ोन किया उसने ! अनमने मन से उसके चेहरे को देखने की इच्छा से मैंने अपना फ़ोन उठाया जो ...लखनऊ से निकलते वक्त ही ट्रेन में आफ हो गया था सोचा उसकी तस्वीर ही देख लूँ ..!

(ऋतु की मौत के बाद से अभी तक दीन दुनिया का जैसे होश ही न था मुझे ..न फ़ोन न इंटरनेट न फेसबुक न व्हाट्सएप्प) और मैंने जैसे ही फ़ोन ऑन किया तुरंत कई मैसेज मुझे धड़ाधड़ मिले जिसमे ऋतु के कई मैसेज थे पहला मैसेज : भैया ये लोग मुझे बहुत परेशान करते हैं ...शरद भी (ऋतु का पति) मेरा साथ नहीं देते..!

दूसरा मैसेज : ये लोग चाहते हैं कि मैं पापा से पैसे माँगूँ ...कहते हैं तुम्हारे पापा ने ये नहीं दिया वो नहीं दिया ... मुझे बात भी नहीं करने देते अपने सामने फ़ोन कराते हैं और सामने बैठ के सुनते हैं कि कहीं मैं शिकायत न कर दूँ..! आज चोरी से मैसेज भेज रही हूँ ..और इसको डिलीट कर दूँगी वरना देख लेंगे..! (ये मैसेज उसकी डेथ के एक दिन पहले के थे)

तीसरा मैसेज : कहाँ हो भइया आप ? अभी तक आपने मेरे मैसेज नहीं पढ़े !

और आखिरी मैसेज था: आज आपको फ़ोन कर के इन सब के सामने ही इनकी पोल खोलूँगी ..चाहे ये लोग मुझे जान से मार दें..!

और शायद उसके बाद ही उसने मुझे फ़ोन किया था ..और सिर्फ इतना ही बोल पाई थी कि ..मुझे बचा लो भइया..! और फिर सिर्फ उसकी चीख सुनी थी मैंने..!

शायद उसके बाद वही हुआ होगा जिसका उसे डर था ..! और मेरे कानों में उसकी चीख गूंजने लगी ..! मेरी आँखों मे आँसू थे और मेरे हाथ खाली थे ...काश मैने उसके ये मैसेज पढ़े होते तो शायद उसको अपने साथ हो रहे इस अन्याय को अपने घर वालों तक पहुँचाने की जद्दोजहद में जान न गवानी पड़ती ...! अपनी अंतिम इच्छा के रूप में उसने एक ही बात कही...उफ्फ ... कितनी मासूम सी ख्वाहिश थी उसकी की उसके गुनहगारों को सज़ा मिले ..!

मैं उसकी रक्षा नहीं कर पाया जबकि हर बार मेरी कलाई पर रक्षा सूत्र बांध कर वचन लिया था उसने मुझसे ..किन्तु, मैं उसके सबसे कठिन दौर में उसके साथ न था ..अगर होता तो वो मेरे.....मैं उसके आखिरी शब्इदों का मोल अवश्सय चुकाऊँगा। संकल्प के साथ ..अपनी लाडली बहन के लिए जो आज न होकर भी सदा मेरे लिए इस दुनिया में रहेगी .. मैं सौगन्ध खाता हूँ अपनी मृत बहन की कि, उसको इंसाफ जरूर दिलाऊँगा..और इस रक्षा बंधन पर मैं संकल्प लेता हूँ कि मैं उसके दोषियों को सज़ा अवश्य दिलाऊँगा..! और एक दृढ़ संकल्प के साथ मैं उसकी हत्या के साक्ष्य रूपी उसके अंतिम अमूल्य मैसेज की पूरी दास्तान अपने साथ लेकर पुलिस स्टेशन की ओर बढ़ चला ..उस आखिरी रक्षा सूत्र की लाज रखने..!


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