Kavita jayant Srivastava

Drama

5.0  

Kavita jayant Srivastava

Drama

रूठे रूठे पिया

रूठे रूठे पिया

6 mins
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आज बहुत परेशान है सिया ..सुबह सुबह राघव से झगड़ा जो हो गया ..! हुआ ये कि ..आज सिया की आँख देर से खुली तो राघव को भी उठाने में देर हो गयी ..

सिया ने जब राघव को जगाया तो घड़ी पर निगाह जाते ही राघव झट से उठा और बोला .." ओह्ह माय गॉड ..! 7 बजकर 10 मिनट ..! इतना लेट उठा मैं ..? तुम मुझे जगा नहीं सकती थी जानती हो ना आज कितनी इम्पोर्टेन्ट मीटिंग थी ..! 8 बजे निकलना था मुझे और 10 तक हर हाल में ऑफिस पहुचना था..! कितनी लापरवाह हो तुम सिया..! खैर गलती मेरी ही है ..! जो तुम्हारे भरोसे था ..माँ ने कहा था कि, दुलार में पली बढ़ी लड़की जिम्मेदार नहीं होती..पर मैं ही पागल था जो तुम्हें ब्याह के लाया..! राघव गुस्से में और भी जाने क्या क्या बड़बड़ाते हुए बाथरूम की ओर भागा।

सिया की आँखों में आँसू भर आये ..उसने राघव से अपना दर्द कहा भी नहीं, न ही मुँह बनाया, वरना राघव का मूड खराब हो जाता ..और राघव से कुछ कहने सुनने का वक़्त भी तो नहीं था ..राघव और लेट हो जाता ..! बस सिया ने तो उससे सॉरी बोलकर केवल चाय ही रख दी थी..और किचेन में जाकर झटपट टिफिन पैक कर दिया..मगर गुस्से में राघव बिना कुछ खाये ही निकल गया.. सिया पीछे पीछे दौड़ी मगर राघव को जाता देख वही दरवाज़े पर बुत बनी खड़ी रही...!

आँखों में बेइज़्ज़ती उपेक्षा और ग्लानि के आँसू। थे वो खड़ी खड़ी खुद को कोसने लगी कि क्यों आँख लग गयी उसकी..? वो भी आज के दिन..? अब उसे राघव की कही हर एक बात चुभने लगी.."कि क्यो ब्याह के लाया तुम्हें मैं ? माँ ने कहा था कि दुलारी लड़की लापरवाह होती है ..वो जिम्मेदारियों के मायने नहीं समझती..!" सिया के दिल मे भरा गुबार, निकल कर आँसुओं की बारिश के रूप में बहने लगा .. और उसने अनमने मन से बिस्तर पर निढाल होकर ही अपना पूरा दिन बिता दिया..दिन भर वो रोती रही..खुद को कोसती रही और खुद भी कुछ न खाया पिया..!

उसको अपने वो दिन याद आ रहे थे जब वो मायके की चिड़िया थी और सभी की दुलारी भी ..! माँ बाबूजी कितना ख्याल रखते थे उसका ..! पर यहाँ तो ऐसा लगता है कि उसमे केवल कमियाँ ही हैं..! राघव अब बिल्कुल बदल गया है, जैसा शादी के पहले था अब नहीं रहा.. उसको हर चीज़ में गुस्सा आता है..आज देर हो गयी..! कल सब्जी में नमक डालना भूल गयी थी..उस दिन उनकी शर्ट प्रेस करना भूल गयी ..एक दिन इनकी ऑफिस फ़ाइल नहीं मिल रही थी..! कभी टाई गायब तो कभी कोई और वजह होती ..कुल मिला कर जितनी देर राघव घर में होता सिर्फ झगड़ा करता..!

काफी देर परेशान होने के बाद सिया ने अपनी माँ को फ़ोन किया..ये सोच कर कि शायद माँ को बताने से जी हल्का हो जाये..! फ़ोन पापा ने उठाया और सिया से बात की..! माँ कहीं गयी थी इसलिए बात नहीं हो पाई..! उसने अपने बिखरे बाल समेटे और अपने लिए चाय बनाकर बालकनी पर आकर खड़ी हो गयी..!

बगल के फ्लैट की आंटी बाल सुखाती खड़ी थी.. औपचारिक अभिवादन हुआ..! सिया ने फीकी सी मुस्कान से उनको देखा.. आंटी अनुभवी थी सिया की लाल नाक और सूजी हुई आँखें देख सब कुछ समझ गयी..! और बोली सिया मुझे भी चाय पीनी है..! आंटी के आग्रह से सिया इनकार न कर सकी..! कुछ ही देर में चाय की चुस्कियों के बीच सिया के मन का गुबार आँसुओ के रूप में बह निकला..

आंटी ने सब कुछ सुनकर कहा .."देखो सिया मुझे पता है कि राघव को बहुत गुस्सा आता है..! और तुम उसके इस व्यवहार से परिचित नहीं थी..इसलिए दुखी होती हो और तुमसे जाने-अनजाने और भी गलतियाँ होती हैं..! इसलिए अभी कुछ बातें सुनो..! सबसे पहले तो राघव को फ़ोन करके सॉरी बोलो..अपनी गलती मानो फिर देखो वो कैसे सरेन्डर करता है !

सिया ने कहा- ''पर आंटी अगर वो गुस्सा रहता है और मैं अपनी सफाई देती हूँ तो इसका गुस्सा बढ़ता ही जाता है...! घर आके अगर कुछ कहना चाहूँगी तो कहता है कि .."दिन बर्बाद किया है अब क्या रात भी बर्बाद कर दूँ और तुम तो दिन भर घर मे सोती हो पर मुझे तो कल उठकर ऑफिस जाना है..इस वक़्त मान मनोव्वल मत करो, मुझे बख्श दो सिया..! सोने दो मुझे और मेरा हाथ झटक कर मुँह फेर कर सो जाता है..आंटी क्या करूँ मैं ? मुझे उसका ये व्यवहार सहन नहीं होता...!

आंटी सुनती रही और सिया ने फिर कहा.. "एक दिन राघव खुद से ही नार्मल हो गया था..पर वो सोचता है कि वो बस एक बार मनाए और मैं तुरंत मान जाऊँ.. बताइये भला ये भी कोई बात हुई..? क्या मुझे गुस्सा नहीं आता ! वो इतना कुछ बोल देता है मुझे और उसके लिए बस एक ही शब्द है कि ''गुस्से में बोल दिया था..! '' और अगर वो मना रहे हैं तो अपनी भड़ास भी नहीं निकाल सकती मैं कुछ भी कहूँ तो दोबारा गुस्सा हो जाता है...और बोलता है इसीलिए मैं तुम्हारे पास नहीं आता ..तुम्हारे नज़दीक आता हूँ तो तुम पिछली बातें ले कर बैठ जाती हो..! की तुमने ये क्यों कहा वो क्यों कहा ..? बताइये क्या मैं कठपुतली हूँ कि वो जब चाहे उसके पास आ जाऊँ और जब चाहे दूर हो जाऊँ, जिस दिन उसका मूड खराब हो न बोलूँ और जब मूड सही हो उसके साथ हसूँ बोलूँ.. क्या करूँ मैं ? क्या मुझे ऐसे ही रहना होगा ? क्या इन सबमे मेरी मर्ज़ी नहीं होगी कि मेरा कब किस चीज़ का मूड है !

..... और फिर बहुत सी बातें हुई आंटी और सिया के बीच..!

आंटी ने कहा " देखो बेटा ये सच है कि हर पुरुष ऐसा नहीं होता बहुत से लोगों को इतना गुस्सा भी नहीं आता..! और कहीं-कहीं पत्नी ही पति को अपने अंकुश में रखती है और पति उससे दबकर रहता है..मगर हर पति-पत्नी की स्थितियाँ और व्यवहार व व्यक्तित्व की विशेषताएँ अलग-अलग होती हैं..अब तुम्हारे पति को गुस्सा आता ही है तो क्या करोगी तुम ? तुम्हें ही थोड़ा नरम होना होगा ..! दोनो ही पति व पत्नी को चाहिए कि वे एक दूसरे के व्यक्तित्व और स्वभाव के हिसाब से ख़ुद को थोड़ा सा ढालें ..तभी गृहस्थी की गाड़ी आगे बढ़ेगी।

..सिया को कुछ-कुछ समझ आने लगा था..!

दरअसल राघव को बहुत ही जल्दी गुस्सा आता था ..और हर बार कारण सिया की कोई न कोई भूल बनती..! ऐसा नहीं था कि सिया लापरवाह थी..बस नई नई गृहस्थी की डोर सम्हालने में थोड़ी कच्ची थी..कोई भी नारी पैदा होते ही सम्पूर्ण आदर्श स्त्री नहीं हो जाती..सब कुछ धीरे-धीरे ही सीखती है..!

हाँ ये अवश्य है कि उसने माँ के घर मे ज्यादा जिम्मेदारिया नहीं निभायी थी इसलिए उसको थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही थी। सिया ने सोच लिया कि राघव के अनुरूप थोड़ा अडजस्ट तो करना होगा। उसने राघव को फ़ोन किया और अपनी गलती की माफी माँगी और राघव ने भी गिले-शिकवे भूल कर उससे अच्छे से बात की और खुद सिया से सॉरी बोला कि उसने गुस्से में कुछ ज्यादा ही बोल दिया ..और साथ ही ये भी कहा कि,

"अरे तुमने फ़ोन किया, मुझे तो लगा तुम्हारे एटीट्यूड के कारण तुम कभी मुझे फ़ोन नहीं करती हो..इसलिए मैंने भी कॉल नहीं की ..वरना मैं खुद बहुत दुखी था तुम्हें इतना कुछ बोल के ..मुझे लगा तुम दिन भर ऐसे ही टेंशन में रहोगी..सॉरी सिया, माफ कर दो मुझे ..! तुम्हें पता है ना मुझे बहुत गुस्सा आता है .. !

सिया और राघव दोनों के बीच इस एक फ़ोन कॉल से सब कुछ सामान्य हो गया..! अगर सिया ने ये पहल न की होती तो हो सकता है घर लौटने पर दोबारा दोनों में झगड़ा होता और स्थितियाँ और भी बुरी हो उठती..! सिया ने आंटी को दिल से शुक्रिया अदा किया।


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