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Kavita jayant Srivastava

Drama Inspirational

5.0  

Kavita jayant Srivastava

Drama Inspirational

सशक्त

सशक्त

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"पिताजी मैं छोड़ आई हूँ नीरज का घर और उनसे सारे रिश्ते भी खत्म कर दिए ..! मैं इतना अपमान व प्रताड़ना नही सह सकती.." जया ने मायके में कदम रखते ही कहा।

"पर बेटी विदाई के समय क्या कहा था तुझसे मैंने कि 'अब तेरी डोली जिस घर जा रही है वहाँ से तेरी अर्थी ही निकलेगी..वही चौखट अब तेरा घर, तेरी दुनिया होगी और मायके में रहने पर लोग क्या कहेंगे, यही न कि नौकरी का घमंड था जो पति से अलग होकर रह रही है ?"

बेटे-बहू पर आश्रित पिता ने अपनी प्यारी बेटी को टका सा जवाब दिया जो कहते वक़्त उसकी ज़बान थरथरा सी रही थी..।

"हाँ पर ये बातें अब कौन मानता है कि जहाँ डोली उतरी वहीं से अर्थी निकलेगी..जब वहाँ मुझे जीतेजी लोग अर्थी बनाने पर तुले हुए थे, तब कौन सी दुनिया के लोग मुझे बचाने आये ? मेरा नौकरी पेशा होना भी उन्हें बर्दाश्त नहीं और सशक्त होने के बावजूद मैं अत्याचार क्यों सहूँ, उन्होंने मेरी जान ले ली तो मेरे बेटे का क्या होगा..?

मैं तो इसलिए कह रहा था बेटी कि, यहाँ तेरे लिए.......'बात अधूरी छोड़ कर सोच में डूब गया वो मजबूर पिता।

पिता की मजबूरी और परिस्थिति को अच्छे से समझने वाली जया ने हँसकर कहा-

"मैं यहाँ रहने नही आई हूँ पिताजी..! अब वो जमाना गया जब बेटियाँ माँ-बाप पर बोझ होती थी ...अब तो बेटियाँ सशक्त हैं ...मैं तो आपसे पूछने आयी हूँ क्या आप मेरे नए घर मे शिफ्ट होंगे ? मन्नू को भी नाना का प्यार और साथ मिल जाएगा और मुझे भी तसल्ली रहेगी कि स्कूल से लौटकर मेरा बेटा अकेला नहीं रहेगा..!


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