कैद सपने

कैद सपने

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"और पराठे चाहिए या नहीं ? और ये मशरूम कैसे बने हैं ?" पति को खाना परोसती शुभी ने टीवी देखते हुए पति को झुंझला कर देखा और नज़रे स्क्रीन पर गड़ाए पति की थाली में जबरन एक पराठा डाल दिया।

राजेश ने झुंझला कर कहा, "अरे क्या कर रही हो ? देखती नही 'हूँ हूँ' कह कर मना कर रहा था !" अरे देखती नहीं, तुम्हारी और मेरी सहपाठी और आज की विख्यात अभिनेत्री चित्रांगदा अवार्ड ले रही है !

पलट कर शुभी ने चित्रांगदा यानी चित्रा को ध्यान से देखा 'कांजीवरम की साड़ी, बड़े-बड़े झुमके, और सुंदर तराशी हुई देहयष्टि ..!'

कहाँ पहुँच गई चित्रा, और कहाँ रह गयी वो, हाथ में प्लेट पकड़े-पकड़े अचानक शुभी १५ वर्ष पीछे पहुँच गई जहाँ वो उत्साह से भरी शुभिका थी, और नाट्य प्रस्तुति के अभूतपूर्व मंचन के बाद, इन्हीं हाथों में प्लेट की जगह माइक पकड़े हुई थी, धन्यवाद व श्रेय देने के बाद उसके कानों में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज रही थी, और चित्रा उसके अभिनय की तारीफ कर रही थी। काश कॉलेज के बाद भी उसके अभिनय को पिताजी ने या शादी के बाद पति ने समझा होता !"

"कहाँ खो गयी, एक पराठा और देना।" सहसा पति की आवाज ने उसका ध्यान भंग किया, और करतल ध्वनि को पीछे कर दिया।

उसे याद आ गया, जब उसने अपने स्टेज कैरियर के विषय में बात की थी, और राजेश ने कहा था, हमारे खानदान की औरतें ये सब नहीं करती, इन्हीं मर्यादाओं में रहोगी तुम, और तुम्हारे ख्वाब दोनों !

"हाँ कहीं नहीं, गर्म बना कर लाती हूँ ये तो बेकार हो गया अब !" कहकर शुभी ने अपने कैद सपनों की आशान्वित आँखों को टीवी स्क्रीन से हटा लिया ।


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