रात और मैं
रात और मैं
उस रात जब मैं बिना आंखों को बंद किये सो गया तो मानो सब कुछ वो सब कुछ एक - एक करके मेरे आंखों के सामने से गुजरने लगा जो वास्तव में था मेरे जीवन में, वो सपने जो देखे थे मैने उसके साथ, वो कसमे जो मिठास बढ़ा देती थी हमारे होठो की, वो वादे जो किये थे हमने साथ निभाने के।
उस रात मानो आंखों के दरिया का पानी सुख चुका था कोशिश तमाम की लेकिन उस सूखे समंदर से पानी का एक कतरा तक नही निकला, मन में मानो एक ज्वाला सी धधक रही थी, आखिर क्यों के आवाज से मानो मेरे कान अब फटने को थे सब कुछ उतना उलझा सा लग रहा था जितना मकड़ी के जाल में फँसी हुई मखी को लगता होगा।
इसी जादोजहत के बीच उस रात मेरी आंखों ने कब सुकून को थाम लिया ये तो मुझे ही पता रहा होगा नही तो उस दवाई बनाने वाली कंपनी को जिसकी गोली ने ये कमाल किया था
जैसे ही मैं खोया था कुछ ही देर में मेरे कानों में एक आवाज सुनाई देती है मानो की मैं जीवित हो चुका हु एक दफा फिर से मेरी आंखे खुलने को है मुझे दिखाने को है वो हसीन सपने। तभी मुझे अचानक मेरे हाथों में सिहरन सी महसूस होती है मानो उसने थाम लिया हो मेरा हाथ और मुझे थामे ले जा रही हो उस सपने की दुनिया में जहां मोजूद है मेरा यथार्थ, वो मेरे को थामे मुझे हर उस लम्हे से रूबरू करवा रही थी जो जिया था हमने और साथ ही साथ मुझे अपने पीछे से आती हुई एक आवाज भी ठीक सुनाई दिए जा रही थी जो मुझे बताना चाहती थी की अब समझे क्यों? मिल गया जबाब उसके आखिरी बोल रहे होंगे उस रात।
उस 2 मिनट के यथार्थ में मानो मेरी 3 वर्ष के मोह्हबत के भ्रम को चूर चूर कर दिया। अब मैं जिस किसी दुनिया में जाता लेकिन मेरी आत्मा खुद को महसूस कर सकती थीं।
मैं उसका इस बात के लिए शुक्रगुजार तो रहूंगा ही साथ ही साथ मुझे इस बात की भी चिंता नही रहेगी की मैं उसे खो दूंगा।
कुछ रोज बाद जब मेरी आंखे जब खुली तो पाया मैंने खुद को हरा हुआ, पाया मैंने खुद को खोया हुआ उसकी यादों के साथ, उन लम्हो के साथ, लेकिन अब तो बहौत देर हो चुकी थी उसे गए 3 दिन से ज्यादा हो गया था इन तीन दिनों मैं खोया रहा उस सपने में जहाँ कभी मैं किसी बिल्डिंग की छत से गिर रहा हु लेकिन मुझे जमीन मिल नही रहा मैं मरना तो चाहता हु लेकिन मर नही रहा, वो लड़की जो मेरे सीने में रहती थी आज वही से मेरे सीने पर धारदार चाकू से वार पर वार किये जा रही है लेकिन मेरी मौत मुझे नसीब नही हो रही एक बार फिर से मैं उलझ रहा हु अपने जीवन और अपने मौत के बीच में। लोग उन तीन दिनों लगे थे बचाने में मुझे लेकिन अब जीने की तम्मना भी नही थी शायद मुझे मेरे क्यों का जबाब जो मिल गया था मुझे नही रही थी और तमन्ना किसी पहाड़ पर बने घर में उसके साथ रहने की नही रही तमन्ना उसका हाथ थामे दौर किसी सफर पर जाने की। शायद वो इसी लिए भी रहा होगा की अब मुझे पता चल चुका था की उससे इस सफर ओर जितने भी चमकीले तारे मिलेगें वो चाँद उन सबका हाथ थाम लेगी और शायद मैं ऐसा इस लिए भी सोच रहा था क्योंकि उन तारो की तुलना में मेरी रोशनी अब फीकी हो गयी थी और मेरे उस चाँद को तो चमकने वाली चीजे ही पसनंद है।
अब तो मैं कायर बन चुका था और सोना था मुझे उस नींद में जहाँ मुझे मेरे सिवा कुछ और सुनाई न दे। उस रात वो गोली जो खाई थी मुझे एहसास दिल रही थी मेरी कायरता का, अब तो मुझे सिर्फ सोना था और खोना था खुद में।
अगली सुबह कुछ पल जगने के बाद मेरी आंखे बंद होती गयी और मैं उन मशीनों की आवाज जो शायद मुझे जगाने की बेमतलब कोशिश में लगी हुई थी, के बीच मैं सोने लगा और जाने लगा खुद से ही भाग कर खुद के पास शायद उतना दूर मैं अब भाग चुका था की सब कुछ धीरे धीरे धुंधला होता गया और एक वक़्त के बाद सब कुछ शांत हो गया, सब कुछ ठीक वैसा था जैसा मैं चाहता था। मैं उस रोज खो चुका था खुद और दुनिया को कहानियां सुनाते - सुनाते खुद एक किस्सा बनकर।।

