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Gita Parihar

Inspirational

4  

Gita Parihar

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रानी लक्ष्मीबाई

रानी लक्ष्मीबाई

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बच्चों,झांसी की रानी की युद्ध में लड़ती हुई तस्वीर तुम में से कितने बच्चों को याद है ?"

सभी बच्चे एक साथ बोल उठे ," वे घोड़े पर सवार रहती थीं। उनके एक हाथ में तलवार, एक हाथ में भाला और पीठ पर एक बालक बंधा देखा जाता है।" 

"बिल्कुल सही और अब कितने हैं जो जानते हैं कि वह जो बच्चा उनकी पीठ पर पीछे बंधा था वह कौन था और अब कहां है अथवा युद्ध के बाद उसका क्या हुआ?"

" चाचा जी, हमें इतनी जानकारी है कि उस बच्चे का नाम दामोदर राव था। मगर युद्ध के बाद उनका क्या हुआ, यह तो लगता है आज की चर्चा का विषय है और आप ही बताएंगे ।क्यों चाचा जी ,मेरा अनुमान सच है ना ?मुस्कुराते हुए निलेश ने पूछा।

"आपका अनुमान गलत कैसे हो सकता है, तो सुनिए,उनका असली नाम आनंद राव था।उनकी कहानी बड़ी दुखदायी हैं। रानी के मृत्यु के बाद उन्हें काफी कष्ट सहना पड़ा, यहां तक की भिक्षा मांग कर समय काटना पड़ा। झाँसी की रानी के वंशज आज भी जीवित है किन्तु गुमनामी के अंधेरे में।"

"यह तो बहुत गलत है चाचा जी?"आनंद ने तनिक रोष से कहा। "सही कहते हो आनंद, 4 अप्रैल 1818 को जब अंग्रेजी सेना ने झांसी के किले में प्रवेश कर लिया तो रात के समय रानी लक्ष्मीबाई दामोदर राव को अपनी पीठ पर बांधकर अपने चार सहयोगियों के साथ किले से कुछ कर गईं। उन्होंने 24 घंटे में 93 मील की दूरी तय की और कालपी में नाना साहब तथा तात्या टोपे से मिले और सभी ग्वालियर की ओर निकल पड़े।जब लड़ाई तेज़ हो गई , उन्होंने अपने विश्वास पात्र सरदार रामचंद्र राव देशमुख को दामोदर राव की जिम्मेदारी सौंप दी।"

"फिर क्या हुआ,चाचू ?"करुणा ने पूछा।

"18 जून 1858 को रानी ने युद्ध में बलिदान दिया।उनकी मृत्यु के पश्चात रामचंद्र राव देशमुख दो वर्षों तक दामोदर को अपने साथ लिए ललितपुर जिले के जंगलों में भटके।

 दामोदर राव के समूह में कुल 11 लोग थे।यह समूह वेत्रावती (बेतवा) नदी के पास स्थित एक गुफा में रहने लगा। इस दौरान दामोदर राव हमेशा बीमारी से ग्रस्त रहे। 

 इसके बाद वे ग्वालियर राज्य के शिपरी-कोलरा गाँव में आश्रय लेने पहुँचे ।यहां इन सभी लोगों को राजद्रोही समझकर जेल भेज दिया गया।"

"विपत्ति पर विपत्ति!"विनय ने गहरी सांस ली।

"जेल से छूटने के बाद वे सब झलारापतन पहुँचे, वहां झाँसी के रिसालदार नन्हेखान ने उन्हें मिस्टर फ्लिंक से मिलवाया तथा उनके लिए पेंशन की व्यवस्था करने के लिए प्रार्थना की। मिस्टर फ्लिंक दयालु स्वभाव के थे।उन्होंने इंदौर में अपने समकक्ष एक अंग्रेज अधिकारी रिचर्ड शेक्सपियर को झाँसी की रानी के बेटे को पेंशन देने के लिए संदेश भेजा। जिसके जबाव में रिचर्ड शेक्सपियर ने कहा कि यदि दामोदर राव सरेंडर कर देंगे तो वे उनके लिए पेंशन की व्यवस्था कर देंगे।

राजस्थान के राजा पृथ्वीसिंह चौहान से दामोदर राव की मुलाकात हुई। पृथ्वीसिंह चौहान ने भी अंग्रेज अधिकारी को सिफारिश पत्र भेजकर कहा था वे लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र हैं, इनका संरक्षण किया जाए।मजबूरी में उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई के कंगन बेच दिये जो उनकी आखिरी निशानी उनके पास बची हुई थी। इंदौर पहुंचने पर दामोदर राव को 200 रुपया प्रति माह पेंशन मिलने लगी तथा साथ में केवल 7 लोगों को रखने की ही अनुमति मिली। जब दामोदर राव नेवालकर 5 मई 1860 को इंदौर पहुँचे थे तब इंदौर में रहते हुए उनकी चाची जो दामोदर राव की असली माँ थी। उन्होंने दामोदर राव का विवाह करवा दिया किंतु उनकी पहली पत्नी का देहांत हो गया। उनकी दूसरी पत्नी से उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ ,जिनका नाम लक्ष्मणराव है।। दामोदर राव का कठिनाई भरा जीवन 28 मई 1906 को इंदौर में समाप्त हो गया।

"उफ़, भाग्य भी क्या है, राजा से रंक बना दिया !रोशन ने कहा।चाचाजी,आज वे कहां हैं और कैसे हैं?"

 "आज झाँसी की रानी के वंशज इंदौर के अलावा देश के कुछ अन्य भागों में रहते हैं। वे अपने नाम के साथ झाँसीवाले लिखा करते हैं।

अगली पीढ़ी में लक्ष्मण राव के बेटे कृष्ण राव और चंद्रकांत राव हुए। कृष्ण राव के दो पुत्र मनोहर राव, अरूण राव तथा चंद्रकांत के तीन पुत्र अक्षय चंद्रकांत राव, अतुल चंद्रकांत राव और शांति प्रमोद चंद्रकांत राव हुए।

दामोदर राव चित्रकार थे उन्होंने अपनी माँ के याद में उनके कई चित्र बनाये, जो झाँसी परिवार की अमूल्य धरोहर हैं। लक्ष्मण राव तथा कृष्ण राव इंदौर न्यायालय में टाईपिस्ट का कार्य करते थे।

अरूण राव मध्यप्रदेश विद्युत मंडल से बतौर जूनियर इंजीनियर 2002 में सेवानिवृत्त हुए हैं। उनका बेटा योगेश राव सॅाफ्टवेयर इंजीनियर है।"

"ऐसे न जाने कितने परिवार होंगे, चाचा जी जो गुमनामी के अंधेरे में खो गए होंगे!"सब बच्चों ने कहा।

"सच कहते हो ,बच्चों हमें इतिहास को भुला नहीं देना चाहिए और जिन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया विशेषकर उनके परिवारों की सहायता करना हमारा नैतिक दायित्व है। इसे हमें नहीं भूलना चाहिए ,चाचा जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए।"



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