रानी की पतंगबाजी
रानी की पतंगबाजी
जब रानी लटाई ले के छत पर चढ़ जाती तो सभी अच्छे-अच्छे पतंगबाज लड़के भी घबड़ा उठते...रानी पतंगों की दीवानी है वह पतंगों को पेंच लड़ाती पतंग को काट मारती...ढीली देती तो, पतंग उसकी ऊँची उड़ान भर देती....
रानी ने पतंग उड़ाने का गुण अपने दादा जी से सीखा....दादा जी ने ही उसे बताया...
कि ...पतंग उड़ाने से आँख की रोशनी बढ़ती है.....दूर दृष्टि सही रहता है....रानी छोटी थी तो पतंग उड़ाती तो मम्मी-पापा
दादी खुश होते....पर जब रानी जवान हुई तो रानी को मम्मी दादी पतंग उड़ाने से मना करने लगी.....कहती बेटा आप अब पतंग मत उड़ाओ, आप बेटी हो। बड़ी हो गई हो। बस ,रानी गुस्सा हो जाती ...कहती ठीक है कल से खाना भी खाना छोड़ दूंगी अब मैं बड़ी हो गई....मम्मी, दादी रानी की जिद के आगे हार मान जाती....बस रानी अपनी सहेली मीनु के साथ छत पर चढ़कर पतंग को उड़ाने आनंद लेती....दो-तीन दिनों से रानी को दूसरे मुहल्ले के लड़कों ने पतंग पर अपनी प्रेम-प्रपोज लिखकर उसकी ही छत पर काट कर गिरा देते....रानी का छत बड़ा सा है...मीनु छत पर से कटी पतंग उठा कर लाती....वह पतंग पर लिखा प्रपोज रानी को दिखाती है...रानी देखकर मुसकुराती है...हँसती है....मीनु से कहती है कि पहली गलती है माफ कर दिया जाये बच्चा समझ के....पर अब ऐसा लिखा पतंग दुबारा छत पर आया तो छोकरों को ऐसा सबक सिखाया जायेगा कि पतंग उड़ाना भूल जायेंगे... दूसरे
दिन भी वहीं हुआ...जब रानी, मीनु के साथ छत पर गई तो प्रपोज वाला पतंग गिरा दिखा....बस नकचढ़ी रानी अपने पतंग पर पतंग लिखनेवाले के माँ-बहन को गाली से नवाज कर खूबसूरती से वर्णन करके दो-तीन पतंग उड़ा कर जान- बूझकर काट दिया....अगले दिन
छत पर रानी और मीनु आई तो कोई पतंग नहीं है....दोनों सहेलियां मस्ती से नीले गगन में पतंग उड़ाकर उड़ी रे, उड़ी रे मेरी पतंग उड़ी जाये रे... गाना गाकर खुशी से खिलखिलाकर हँस पड़ी.....