मिली साहा

Inspirational

4.8  

मिली साहा

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रामकिंकर बैज

रामकिंकर बैज

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चले गए दुनिया से पर आज भी एक आवाज़ है 

उनकी कलाकृतियों में

"रामकिंकर बैज"तो मरकर भी आज ज़िंदा हैं

मूर्तिकला की स्मृतियों में।।


"रामकिंकर बैज" भारत के प्रसिद्ध मूर्तिकार जो आज हमारे बीच मौजूद नहीं है पर उनके द्वारा बनाई गई कलाकृतियांँ आज भी उनकी मौजूदगी का एहसास कराती है। "रामकिंकर बैज" की गणना आधुनिक भारतीय मूर्तिकला के अग्रदूतों में होती है। भारतीय कला में उनके अतुलनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से भी सम्मानित किया। 


पश्चिम बंगाल के बांकुरा में सामाजिक और आर्थिक रूप से विपिन्न एक परिवार रहता था। उसी परिवार में 26 मई 1906 को "रामकिंकर बैज" का जन्म हुआ। आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण बचपन उनका गरीबी में गुज़रा। किंतु कला में उनकी रुचि के कारण शांतिनिकेतन "कला भवन" में जैसे तैसे उन्हें प्रविष्टि मिल गई। जहाँ नंदलाल बोस के मार्गदर्शन से उन्होंने कला की बारीकियों को सीखा। शांतिनिकेतन से ही "रामकिंकर बैज" की शिक्षा संपन्न हुई। कला भवन में अमूर्त, आधुनिक मूर्तिकला रूपों में प्रयोग करने वाले शुरुआती कलाकार "रामकिंकर बैज" ही थे।


"रामकिंकर बैज" पर साक्षात सरस्वती जी की कृपा थी। और साथ ही साथ दृढ़ संकल्प, अपने कार्य के प्रति सनक और निष्ठा के कारण ही मूर्तिकला कि जिन ऊंचाइयों को उन्होंने छुआ वो किसी परीकथा से कम नहीं। आर्थिक तंगी को कभी उन्होंने अपनी कला के मध्य आने नहीं दिया। "रामकिंकर बैज" न समय देखते थे, न स्थान और न ही उन्हें कला से संबंधित बहुत अधिक सामग्रियों की ललक रहती थी। उन्हें जिस समय जो भी मिल जाता था वो उसी पर अपनी कला की छाप छोड़ देते थे। उनकी कृति का खुरदुरापन उनकी कलाकृतियों की विशेषता है।


मूर्तिकला के साथ-साथ चित्रकला में भी "रामकिंकर बैज" की अच्छी रूचि थी। "रामकिंकर बैज" ने जो भी मूर्ति शिल्प का निर्माण किया वो सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए। "संथाल परिवार" मूर्तिशिल्प जो आज भी कला भवन "शांतिनिकेतन" में मौजूद है "रामकिंकर बैज" द्वारा ही निर्मित है। वे मिट्टी , बालू , प्रस्तर , प्लास्टर ऑफ़ पेरिस , सीमेंट व कंक्रीट का प्रयोग कर मूर्तिशिल्प तैयार करते थे।

सुजाता, कन्या, कुत्ता और अनाज की ओसाई आदि इनके द्वारा बनाई गई विशेष मूर्तियांँ तथा चित्र हैं।


"रामकिंकर बैज" सदैव प्रफुल्ल और जीवन शक्ति से भरपूर विषयों और प्रकृति पर ही विशेष रूप से कार्य करते थे। 1920 के मध्य के दशक में उन्होंने अपने पारिवारिक उपनाम का त्याग कर "बैज" को धारण किया। यह उनकी अपनी कला के प्रति समर्पित भावना और लगन ही थी जो एक के बाद एक राष्ट्रीय सम्मान उन्हें मिलने लगा। 1970 में पद्मभूषण, 1976 में ललित कला अकादमी का फैलो बनना फिर विश्व भारती द्वारा देसीकोटम्मा मानद डॉक्टरेट की उपाधि और 1979 में रवींद्र भारती विश्वविद्यालय द्वारा मानद डी लिट से सम्मानित।


इतनी सारी उपलब्धियां प्राप्त करने के पश्चात अचानक एक लंबी अवधि की बीमारी के कारण प्रसिद्ध मूर्तिकार "रामकिंकर बैज" इस दुनिया को अलविदा कह है सदा सदा के लिए चले गए। किन्तु उनकी अद्भुत और जीवंत कृतियांँ आज भी सार्वजनिक और निजी संग्रहालयों का हिस्सा है। मूर्ति कला के क्षेत्र में आज भी "रामकिंकर बैज" का नाम गर्व से लिया जाता है आज के आधुनिक युवा कलाकारों के लिए "रामकिंकर बैज" किसी चुनौती से कम नहीं। उनकी कलाकृतियों की भाव भंगिमा और गति इस प्रकार से जीवंत लगती थी कि आंँखों पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता था। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो अंदर से वो आवाज़ दे रही हों। और यही आवाज़ यही गति आज भी मूर्ति कला क्षेत्र में कलाकारों को प्रेरित करती है।


आत्म प्रचार और प्रशंसा की,

कभी मन में नहीं रखते थे वो अभिलाषा।

आधुनिक मूर्तिकला के जनक थे वो,

है कलाकार नहीं कोई उनके जैसा।।


कर्म के प्रति प्रतिबद्धता और जज़्बा,

कला को ही समर्पित था जीवन उनका।

अद्भुत गति जिसकी सृजनात्मकता में,

है वो जीवंत भाव की पराकाष्ठा।।



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