राजा श्वेत की कथा
राजा श्वेत की कथा
प्राचीन काल में एक राजा थे, उनका नाम श्वेत था। उनके शासन में किसी को कोई कष्ट नहीं था। हर कोई अच्छे से अपना जीवन - यापन करता था। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र सभी अपने-अपने वर्णों का पालन करते थे। उनके राज्य में चोरी चकारी द्वेष व हीन भावना का कोई स्थान ही नहीं था। भगवान शंकर की आराधना से राजा श्वेत अपनी प्रजा के हर एक व्यक्ति का पेट भर दिया करते थे। राजा श्वेत दान पुण्य किया करते थे फिर भी उनके राज्य में कोई दरिद्रता नहीं थी। हर कोई पूर्ण सुख से रहता था।
राजा श्वेत का जब मृत्यु काल आ गया तब यमदूत राजा श्वेत को लेने आ गए परंतु उस समय राजा श्वेत भगवान शिव की आराधना कर रहे थे जब यमदूत ने महाराज श्वेत पर प्रहार किया तब यमदूत खुद ही जलकर भस्म हो गए। तत्पश्चात स्वयं यमराज अपने दोनों के पास आए और जब उन्होंने देखा कि राजा श्वेत भगवान शिव की आराधना कर रहे हैं तब यमराज भी राजा श्वेत पर प्रहार ना कर पाए।
इतने में काल देवता भी स्वयं महाराज श्वेत के पास आ गए और जब उन्होंने यमराज व यमदूतों को इस प्रकार खड़ा देखा तब काल देवता क्रोधित हो उठे और वह जैसे ही महाराज श्वेत पर प्रहार करने लगे तभी काल देवता जलकर भस्म हो गए । जब राजा श्वेत समाधि से उठे तब उन्होंने काल को जलता हुआ देखा और वह भगवान शिव से पूछने लगे कि प्रभु आपने काल देवता को क्यों जला दिया तब भगवान शिव ने बताया कि यह तुम्हारी मृत्यु करना चाहता है और तुम सदैव दान करते हो इसलिए मैंने इसे काल को जला दिया है तब महाराज श्वेत ने भगवान शिव की स्तुति करी और काल देवता के प्राण वापस मांगे। तब काल देवता पुनः जीवित हो उठे तब भगवान शिव ने कहा कि श्वेत तुम महान हो।
जब काल देवता व यमराज व यमदूत सभी राजा श्वेय के पास से चले गए तब यमराज ने अपने दूतों से कहा कि जो भी शिव भक्त हो उनको मैं कभी हानि नहीं पहुंचा सकता।
शिक्षा - इस कथा में दान का महत्व बताया गया है, अक्सर लोग मृत्यु से दूर भागते है परन्तु स्कंद पुराण में लिखा हुआ है की दान करने वाले का काल कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
