प्यार या फरेब
प्यार या फरेब
बेचारी रमा दीदी, हाँ उनके लिए बेचारी शब्द ही बरबस मुख से निकल पड़ता है। बाल्यकाल से वृद्धावस्था तक हर पल प्यार के नाम पर ठगी ही जाती रही। जन्म देकर जननी चल बसी। नानी और मौसी आगे बढ़ कर गोद लिया तो दादी को बुरा लग गया और ननिहाल से ऐसे जुदा कराई गई कि कभी नानी घर का मुख भी नहीं देख पाई पहले बुआ फिर ताई की गोद मे पली। ताई बहुत लाड़ लगाती।
पहनने के कपड़े से लेकर खाने तक हर वस्तु उतरन ही मिलती। वो तो दादाजी की कृपा थी कि शिक्षा-दीक्षा सही सलामत हो गई। बारहवीं पास करते ही ताई अड़ गई कि अब नहीं पढ़ेगी पर भगवान की कृपा, घर में बिना किसी को बताए मेडिकल इंट्रेंस की परीक्षा दी और उत्तीर्ण हो गई। घर में भूचाल आ गया। जब हर दरवाजा बंद होता है तो ईश्वर कोई एक द्वार खोल देते हैं। उस दिन जाने कहाँ से बड़े मामा घूमते हुए वहां पहुँच गए। जब उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाने की चर्चा की तो ताई अपनी बेइज्जती समझ उसका नाम लिखवा दिया और मामा के समक्ष अपने को ममतामयी साबित मेडिकल की पढ़ाई और घर का काम काज दोनों सम्भव नहीं था पर प्यार के नाम पर उसे ठगा जाता कभी दादी को उसके हाथों का खाना बहुत पसंद आता तो कभी छोटे भाई को। कॉलेज जाने से पहले और कॉलेज से आकर करीब-करीब हर दिन वो रसोई में ही दिखती।
पढ़ाई का बोझ जब बढ़ा वो लाइब्रेरी में ज्यादा समय देने लगी पर इसका भी जवाब इसे घर में देना पड़ता। किसी तरह मेडिकल की पढ़ाई पूरी हुई। धनवान पिता की इकलौती सन्तान, सुंदर और सुशील स्वभाव को देख चाचा के एक मित्र अपनी बहू बनाने को आ गए। बिना दान दहेज की शादी थी ताई झट-पट तैयार हो गई।
प्यार की पोटली लिए ससुराल आई। वहाँ भी सास ने सोचा बिन माँ की बच्ची है थोड़ा भी प्यार मिलेगा वो अपनी हो जाएगी। प्यार के नाम पर ऐसा समेटा कि वहाँ भी जिम्मेदारी के तले दबने लगी। पति भी अति प्यार करते और प्यार के नाम पर हर तरह का शोषण। पति के प्यारे वादे के विश्वास ने कभी उनपर अविश्वास करने नहीं दिया। फलतः पति को खुली छूट मिली। रमा दीदी को जब पता चला काफी देर हो चुकी थी। एक दिन पति रवि को अपना लेने की जिद्द कर बैठे कहा -"माँ की कमी जीवन में क्या होती है तुमसे अच्छा कौन समझ सकता है।
यदि इसकी माँ बच जाती तो मैं तुम्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी नहीं सौंपता। मेरी गलती की सजा इस अबोध को मत दो। इसे अपना पुत्र समझ गोद ले लो। उसने रवि को तो अपना लिया पर पति से दूर हो गई। पति दूसरे शहर रहने लगे।
सभी रवि को उसका सगा बेटा ही समझते। रवि भी माँ पर जान छिड़कता। रवि की पढ़ाई लिखाई में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी। रवि इंजीनियर बन एक दिन आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चला गया। वहीं रम गया, अब आने का नाम नहीं। कहता है माँ वहाँ का सब बेच दो और मेरे पास आ जाओ। तुम्हारी चिंता सताती ह रमा दीदी ऐसे लोगों का हश्र बहुत बार देखी और सुनी है अतः देर से ही सही मट्ठा फूंकना सीख गई। आज पहली बार नयन जल छलके और पति, पुत्र और परिवार के अन्य राज, मुझे बता मन हल्का किया।