प्यार वाली खिचड़ी
प्यार वाली खिचड़ी
आज वक्त , वक्त से भी बहुत आगे निकल चुका है , दुनिया की सोच इतनी बदल चुकी है कि हमें पुरोषत्तम श्री राम जी की पुरानी बाते , उनके आदर्श , और उनके संस्कारो के वारे में सोचते हैं तो तो सबकुछ धुमिल सपनों सा प्रतीत होता है । इस बदलते वक्त में हिन्दुस्तान के कुछ निठल्ले और बाह्मयाद लोग हिन्दुस्तान को किसी बैहुदा सभ्यता की भाड़ में झोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं और हर दिन कोई ना कोई नई चीज , नया मसला या फिर कोई नया बखैड़ा बनाने की कोशिश कर रहे हैं । चने की दाल , मूंग की दाल उड़द की दाल और आलू की की खिचड़ी के बारे में आपने सुना ही होगा पर हम हिन्दुस्तानियों ने एक नई प्रकार की खिचड़ी को ईजा़द किया हैं जिसका नाम है बैहुदा प्यार वाली खिचड़ी । यह खिचड़ी किन लोगो को पसन्द है वो मैं आपको बाद में बताऊँगा , उससे पहले हमें यह जानना होगा कि यह खिचड़ी बनती कैंसे हैं , तो तरिका बहुत आसान है , सबसे पहले कोई भी जाहिल अपनी फुफेरी बहन , ममेरी बहन , तहेरी बहन , चचेरी बहन , मौसेरी बहन , पडौस की बहन या फिर मुँह बोली बहन पर बुरी नियत डाले और अगर उस बहन में सुपनखा के गुण मौजूद हुए तो समझलो कि आपकी खिचड़ी पकनी शुरु हो चुकी हैं । और अगर आप उस बहन के साथ मुँह काला करते हैं तो समझ लो खिचड़ी गल चुकी है । इससे आगे यदि आप उस बहन को कहीँ लेकर भाग जायें तो भैया खिचड़ी पू्री पक चुकी हैं । इसे खाओ खेलो और एश करो । लोग दाल में काला मिलाते हैं पर यह खिचड़ी वाले लोग तो कोयले की खान को ही दाल में मिला देते हैं ।
इस खिचड़ी में मजे की बात यह है कि खुद का भाई ही खुद का साला बन जाता है , बहन साली बन जाती है ताई सास बन जाती है तो मौसा ससुर बन जातें हैं , भइया देवर बन जाता है तो बहन भाभी बन जाती है , अजी बस यूँ समझ लो कि रिश्तो की पोटली जब खुल के बिखरती है तो ऐंसा रायता फ़ैलता है कि सारा समाज ताउम्र उस खिचड़ी पर और खिचड़ी बनाने वालो पर थूकता ही है ।
अब मैं आपको बताता हूँ यह खिचड़ी किन लोगो को पसन्द है , यह वो लोग होते हैं जिनके माँ बाप खुद के मजै के लियें छोटे छोटे बच्चो को कुत्ते बिल्लियों की तरह सड़क पर खुला छोड़ देते हैं । जो बच्चो को बोझ समझते है , उनकी प्यारी चुलबुली शैतानियों से तंग आकर उन्हें पार्क में या पडौसियों के घर खेलने के लियें भेज देते हैं , और खुद दिन भर चैन की नींद सोते हैं । माँ बाप से दूर रहने वाले बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं मिल पाते हैं और एक दिन वही बच्चे बड़े होकर यह खिचड़ी बनाते हैं । घर में बना खाना और घर में मिले संस्कारो से हमारा तन और मन सारी जिन्दगी शुद्ध रहता हैं । और जब यह दोनों ही चीजे हमें बाहर की मिलती हैं तो हम ऐंसी घटिया खिचड़ी के शौकिन हो जाते हैं ।
अब सवाल यह उठता है क्या यह सबकुछ सही हो रहा है , या फिर हम अपने आने वाले कल को सिर्फ और सिर्फ झूठी , दिखावटी और खोखली बुनियादो पर खड़ा कर रहे हैं जिसकी गारण्टी और वारण्टी चाइनीज माल से भी कम है ।
आज रिश्तो का ढाँचा पूरी तरह से बदल रहा है जो कि सरासर गलत और बेहुदा है । पहले रिश्तो की माला जब बनती थी तो उससे जुडा़ हर मोती ( रिश्तेदार) उस माला को मरते दम तक टुटने ना देता था , और अपने रिश्तो का ताउम्र पालन करता था । पर आजकल तो माला बनने से पहले ही उसकी लड़ियाँ बिखर जाती हैं । एक वो दौर था जब लक्ष्मण को यह तक ना पता था कि उनकी भाभी ( सीता माता ) ने गहने कैंसे पहने हैं जबकि वो चौदह साल तो उनके बिल्कुल निकट ही रहे थे , और एक आज का दौर है जिसमें यह तक पता रहता है कि लड़के लड़कियों ने कौन से रंग के अन्डर गार्मेन्ट्स पहने हैं या फिर उन्होने अन्डर कवर कौन सा टेटू छपवाया है ।
अगर हम पिछले कुछ दशक पहले की सभ्यता को आज की सभ्यता से तुलना करेंगे तो खुद को एक ऐंसी कीँचड़ में लिप्त पायेंगे जिसकी बदबू मात्र से ही रूह काँप जाती है । माफ करना दोस्तो पर जैंसे समाज को आँप बढ़ावा दे रहे हो वो समाज एक दिन रिश्तो की नैया में नंगा नाच करेगा , और उस दिन हम ईन्सानो में और जानवरो में सिर्फ सूरत का फर्क रह जायेगा ।