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Shraddhaben Kantilal Parmar

Tragedy

4  

Shraddhaben Kantilal Parmar

Tragedy

प्यार की बहारें

प्यार की बहारें

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300

प्यार की बहारें बरस रही थी। एक अनोखा एहसास दिल पे छा रहा था। कोई अपना है ऐसा एहसास दिल को बुलंद कर रहा था। सगाई की अंगूठी अपनाकर एकदूजे को अपना बनाया। शादी के बाद एक नई जिंदगी की और कदम बढ़ाया एकदुजे से बात करना छोटी सी छोटी बात शेर करते थे। मस्ती छाए रहती थी। हर मोड़ खुशियों से भरा हुआ बीतता था।


कुछ महीने के बाद सबकुछ बदल गया। वो हसी मस्ती की गूंज सुमसाम हो गई। मेरे जीवनसाथी के पास मेरे लिए बात करने के लिए भी वक्त नहीं मिलता। गुस्से में आकर एक दिन बोल दिया मेरे पास कोई भी अपेक्षा मत रखना। ए सुनकर जैसे मेरी दुनिया ही उजड़ गई । साथ होते हुए भी हम साथ नही थे बस अपना काम और मोबाइल में वक्त बिताने लगी । जूठे दिलासा देकर दिल को समझा लेती थी पर कभी सवालों का तूफान आ जाता था। आंखों से ओझल हो गए थे सारे सपने तन्हा सी जिंदगानी हो गई। 


पिजरे में कैद चिड़िया की तरह चार दिवालो में कैद हो कर रह गई। बार बार एक ही सवाल होता था मेरी किस्मत ऐसी क्यों हो। जिसको अपना समझा वो मुझे ही पराया कर गया। एक मित्र जैसा साथ चाहिए था। शादी की सालगीरह, जन्मदिन या त्यौहार पे प्यार से छोटा ही सही मेरे लिए उपहार लाए प्यार से अपने हाथों से खाना खिलाने वाला एक जीवनसाथी की अभिलाषा थी।


सबकुछ बदल गया । आसमान से अनोखा एक तारा था जो टूट कर खो गया। आज में खुद में कही गुम सी हूं। जिंदा हूं पर बिना जान के लाश जैसी हूं। प्यार की बरसात में भींगना था हाथो में हाथ थामे दुनिया गुमना था। कंधे पे शर रख सुकून की श्वास लेनी थी।


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