प्यार कभी मरता नहीं

प्यार कभी मरता नहीं

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सिर्फ एक दिन की सूचना पर नीना को बैंगलोर की मिटिंग में शामिल होने के लिए जाना पड़ रहा था। कल जब बाॅस का कार्यालयीन आदेश उसे मिला तो वह जरा घबरा सी गई थी। इतनी जल्दी सारा इंतजाम कैसे हो पाएगा ? पर ना कहने का तो कोई सवाल ही नहीं था। एक साल से उसका प्रमोशन भी रुका हुआ है। फिर एक ही पद और मेज पर बैठकर बरसों कलम घिसते हुए वह थोड़ी निराश हो चली थी।ऑफिस के ऐसे दौरे ही तो थे जो कार्मिकों की घीसी -पीटी जिन्दगी में थोड़ी सी ताजी हवा भर देने का काम किया करते थे। और वापस आने पर पुराना और बेरंग कर्मस्थल भी कुछ समय के लिए बदला हुआ सा लगने लगता था।

खैर, सारा बंदोबस्त सही समय पर ठीक से हो गया। टिकट और होटल का इंतजाम तो दफ्तर की ओर से ही करा दिया गया था। रिया और घर को संभालने के लिए भी उसकी ननद एक हफ्ते के लिए मायके में आकर रहने को तैयार हो गई थी। चूंकि नीना का यह पहला ऑफिशियल ट्रिप था तो निखिल ने भी पूरा सहयोग देने का वायदा किया था। अब केवल सामना बाॅधना शेष था जिसे नीना ने बड़ी स्फूर्ति से निपटा लिया।

स्पाइस जेट की छोटी सी तीस सीटों वाली एयरबस थी। नीना को विंडो सीट पसंद थी परंतु एयरलाइन्स के स्टाॅफ ने कहा,

" सारी मैम, ओवर बुकिंग हो गई है। हम आपकी सीट चैंज नहीं कर सकते।"

"सहयात्री से रिक्वेस्ट करूंगी । उम्मिद है, वे मान जाएंगे।" नीना ने मन में सोचा।

सीट पर पहुंचकर नीना अपने साथ लाए बैग को अभी सामान कक्ष में रख ही रही थी कि उसका सहयात्री उठ खड़ा हुआ और अपनी विंडोवाली सीट नीना को ऑफर किया। नीना उन्हें धन्यवाद देने जैसे ही मुड़ी थी कि उसका सामना आकाश से हो गया। एक आकाश ही तो था जो बिना कहे उसकी सारी बातें समझ जाया करता था। परंतु यूँ अचानक आकाश को सामने देखकर पल भर में ही नीना के चेहरे से सारे रंग गायब हो गए थे। वह भावशून्य सी कुछ देर खड़ी आकाश को ताकने लगी थी। अपनी पसंदीदा सीट पर बैठना भी भूल गई थी। जब विमान के उड़ान भरने की घोषणा हुई तब आकाश ने बड़े प्यार से उसकी बाॅह पकड़कर उसे उसकी सीट पर बैठा दिया। गनीमत यह थी कि यह विमान टू-सीटर था। वर्ना दूसरे लोग नीना की इस अवस्था को देखकर न जाने क्या सोच बैठते !

नीना और आकाश का सात-आठ साल का रिश्ता शादी के बंधन में न बंध पाया था। दोनों आत्मनिर्भर थे, चाहते तो घर से भागकर शादी कर सकते थे परंतु उनदोनो की ही यह जिद्द थी कि अपने परिवारवालों के इच्छा के विरुद्ध कुछ न करेंगे, चाहे इसके लिए उन्हें कितनी भी कुर्बानी क्यों न देना पड़े। दोनों जुदा होने के काफी लंबे समय के बाद पुनः इस तरह मिल रहे थे। नीना अपनी घर-परिवार और नौकरी में इतना उलझ गई थी कि आकाश के बारे खोज-खबर रखने की उसे समय ही न मिल पाता था।

दोनों चुपचाप पास-पास बैठे थे। दोनों के बीच सन्नाटा पसरा हुआ था। परंतु वह सन्नाटा भी बड़े जोर-शोर से उन दोनों के सीने में होनेवाले हलचल को बयाँ कर रहा था ! काफी समय बीत चूकने के बाद, जब विमान उड़ान भरकर मध्य गगन में शांति से विचरण कर रहा था तो एकाएक नीना पूछ बैठी,

" कैसे हो ? -----

शादी हो गई तुम्हारी ?"

उत्तर में आकाश उसकी ओर देखकर मुस्कुराया और हौले से सर को "न" में हिलाकर बोला,

"तुम्हारे जाने के बाद तुम जैसी कोई दूसरी नहीं मिल पाई !"

" कोशिश की थी ?"

" नहीं की। जब मालूम था कि तुम जैसा कोई और हो ही नहीं सकता।"

नीना ने कसम खाई थी कि फिर कभी किसी के सामने नहीं रोएगी। परंतु जिद्दी आंसू उसकी आंखों से बह चले। आकाश ने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया। नीना ने इसके बाद धीरे से अपना सर आकाश के कंधे पर टिका दिया। आकाश प्यार भरी नजरों से उसे देखने लगा।

दोनों अपनी भावनाओं में पूरी तरह खोए हुए थे। आसपास हो रहे शोर गुल से बिलकुल अछूते। एक विमान सेविका बेहद घबरायी हुई आवाज़ में उनके पास आकर बोली,

" मैम, सर, कृपया अपने स्थान पर सजग होकर बैठे रहें, हमारा विमान हाईजैक हो चुका है !"

'क्या ? ? ? ! ! ! "प्लेन हाइजैक ! ! ! !"

डर के मारे नीना के तलुवे सूख गए।

" डरो, मत नीना, मैं तुम्हारे साथ हूं !"

आकाश पसीने पसीने होती नीना की हिम्मत बँधाने की कोशिश कर रहा था।

"कुछ नहीं होगा, तुम्हे ! हम साथ है न ?"

आकाश ने काँपती हुई नीना के चेहरे को दोनों हाथों से थामे रखा था।

कुछ देर बाद वह हाईजैकर दीखा। वे संख्या में दो थे ! एक काॅकपीट में घुसकर पाॅयलट पर कब्जा जमाए बैठा था। और दूसरा बंदूक ताने विमान के एक सिरे से दूसरे सिरे तक चहल कदमी कर रहा था। उसकी आयु कोई पच्चीस छब्बीस बरस की होगी ।ऊंचा डील-डौल का आदमी जिसने काले रंग का शेरवानी पहने हुए था। जिसका ढका हुआ चेहरे की आड़ से लंबी मेहंदी लगी दाढ़ी का छोड़ नजर आ रहा था। खुली हुई आंखों में सुरमे का हल्का सा आभास भी था। सभी यात्रियों को वह इस समय साक्षात् यमदूत के समान लग रहा था। सभी उससे नजरे चुराना चाह रहे थे, परंतु वह सबके चेहरों को गौर से देखे जा रहा था।

एक बुढ्ढी अम्मा अकेले सफर कर रही थी। उसके पास जाकर वह दाँत निकालकर हॅसने लगा। ठीक पीछेवाली सीट पर एक चार-पाँच साल का बच्चा अपनी माॅ के साथ बैठा था। वह इस आतंकवादी को देखकर जोर से रो पड़ा। उसकी माँ उसे चुप कराने लगी। आतंकवादी झटपट बंदूक लेकर उस बच्चे के पास खिसक आया और बच्चे को बंदूक दिखाकर तुरंत चुप हो जाने की धमकी देने लगा। बच्चा डर के मारे और जोर से रो पड़ा।

तभी आतंकवादी की नजर विंडो सीट पर बैठी आतंक से लगभग सफेद पड़ चुकी नीना पर गई। नीना के सुंदर मुखड़े और कमसीन देह पर वह ऊपर से नीचे तक नज़र दौड़ाता रहा। फिर उसकी ओर कोई अश्लील सा इशारा करने लगा। नीना तब दम साधे अपनी जगह पर बैठी उसकी बातों को अनसुना करने की कोशिश करने लगी।

एकबार, दो बार, तीसरी बार। अब आकाश से नहीं रहा गया और उसने उठकर आतंकवादी के नाक को लक्ष्य करके जोरदार घूसा मार दिया। आतंकवादी इस अचानक के हमले के लिए तैयार न था और बगलवाली सीट पर जा गिरा।

आकाश ने अवसर पाकर उसके हाथ से बंदूक छिन लिया।

पलभर में पासा पलट चुका था।

वहाँ बैठे सब उसकी इस साहस पर ताली बजाने लगे।पायलट विमान को किसी अनजाने एयरपोर्ट पर जबरदस्ती उतारने को मजबूर हो गया था।

सबलोग अब उस आतंकवादी को घेरकर लात, घूसा मार रहे थे कि पीछे से गोली चलने की आवाज आई। सबने देखा कि दूसरा आतंकवादी काॅकपिट से निकल आया था और अपने साथी को बचाने के लिए धड़ाधड़ एके 47 से फायरिंग करने लगा था। भीड़ तुरंत छंट गई। कुछ लोगों को गंभीर चोटें आई। वह बूढ़ी अम्मा अपनी जान से हाथ धो बैठी थी।

अब दोनों आतंकवादियों ने आकाश को घेर लिया था। आकाश नीना को उन दोनों की नजरों से बचाए रखने की कोशिश में उनसे लड़ रहा था। पहला आतंकवादी आकाश के बिलकुल सामने आकर खड़ा हो गया और कनपटी पर बंदूक रखकर गोली दाग दी। आकाश का शरीर लुढ़क कर नीना की गोद में आ गिरा।

इसी बीच जाने क्या हुआ। पायलट को अवकाश मिल गया था और वह एस ओ एस को भेजने में सक्षम हो गया था। तुरंत ही काॅमेंडो सेना यात्रियों की सुरक्षा के लिए पहुंच गई।

 विमान को अब चारों तरफ से फौजियों ने घेर लिया था। लाउडस्पीकर द्वारा आतंकवादियों को आत्म समर्पण करने के लिए कहा जा रहा था। आतंकवादियों ने कोई और उपाय न देखकर जहर खाकर आत्महत्या कर ली। मरने से पहले अंधाधुंध गोली चलाकर चार-पाँच और आदमियों को उन्होंने मार गिराया।

कोमाॅडो की फौज जिन्दा बचे हुए यात्रियों को सुरक्षित स्थानों में पहुंचाने लगे।

इधर आकाश की गरदन से बहती खून की अविरल धार से नीना रक्त रंजित हो उठी थी। वह पागलों की भाॅति --"हेल्प, हेल्प ! ! समवान, प्लिज़ हेल्प", पुकारे जा रही थी, और सहायता की गुहार लगा रही थी। तभी उसने अपनी हथेली पर आकाश के छुवन को एक बार फिर महसूस किया !

उसकी ओर देखा तो आकाश मुस्करा रहा था। इतनी पीड़ा के बीच भी उसकी आंखों में जन्मजन्मांतर का प्रेम और विश्वास झलक रहा था।

अस्पताल में इसके बाद आकाश पूरे एकदिन तक जीवित रहा। उसके शरीर से इतना खून बह गया था कि उसे बचाया न जा सका। नीना पूरे समय बदहवास सी आकाश के बेड के पास खड़ी रही।

आकाश की अंतिम इच्छा अनुसार, उसके पट्टी बंधे मस्तक को नीना की गोदी में रखा गया। वहीं उसने अपनी आखिरी सासें ली।

नीना को सुरक्षित देखकर ही आकाश ने अपना प्राण त्याग पाया था। उसने उसे जुबान जो दी थी।


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