प्यार का कर्ज़

प्यार का कर्ज़

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रीना जब शादी होकर जब अपने नए घर पहुंची तो कुछ ही दिनों में समझ आ गया कि यहां सासूमां की ही चलती है। ससुरजी, देवर और उसके पति भी बस मां कि हां में हां मिलाते हैं। कहने को तो घर में उसकी दादी सास भी थी पर मां के राज में अम्मा को कोई पूछता नहीं था।

पर ना जाने क्यों अम्मा का झुर्रियों भरा चेहरा और हमेशा पनीली रहने वाली आंखें(शायद अपने खून की बेरुखी के कारण) रीना के दिल में अपनी अलग जगह बना गई। वो अब मां से छुप छुप कर अम्मा का पूरा ख्याल रखती थी। कभी उनके तलवो पर तेल लगाती, कभी बाल बना देती और कभी यूं ही उनके गले लग जाती।अम्मा के भी चेहरे पर एक अलग चमक आ गई थी।

लेकिन आखिर मां कि पैनी नज़रों से ये कब तक छुपता। उन्होंने रीमा को सीधे सीधे तौर पर तो कुछ कहा नहीं पर अब उनका गुस्सा रीमा को गाहे बगाहे झेलना पड़ता। अम्मा ने कई बार रीमा को समझाया भी की मेरी खातिर डांट ना खाया कर पर रीमा अम्मा को ज़ोर से हंसकर दिखा देती और बात वहीं की वहीं रह जाती।

एक दिन रीमा ने सबको खुशखबरी भी सुना दी। सबको आने वाले बच्चे का इंतजार था। अब तो मां भी उसे कुछ नहीं कहती थी और पूरा ख्याल रखती थी और अम्मा तो सोने की सीढ़ी चढ़ने का सोचकर ही बड़ा खुश थी।

सब खुश थे अचानक सातवें महीने में रीमा का पैर फिसला और वो फिर गई। डॉक्टर ने उसकी और बच्चे की हालत नाज़ुक बताई और बच्चे के बचने के चांस तो बहुत कम थे। अंदर ऑपरेशन चल रहा था और उधर अम्मा अचानक से चल बसी। सबको बड़ा धक्का लगा और वो रोने लगे कि तभी डॉक्टर ऑपरेशन थियेटर से बाहर आकर बोला," चमत्कार,मुझे आजतक चमत्कार पर विश्वास नहीं था, मगर आज आप सबके प्यार के कारण आपकी पत्नी, आपकी बहू, आपकी भाभी की जान हम बचा पाए और ये भी किसी चमत्कार से कम नहीं है कि जहां हमने बिल्कुल उम्मीद छोड़ दी थी पर ऐसा चमत्कार हो ही नहीं सकता था।

रीमा को जब होश आने पर अम्मा का पता चला तो खूब रोई। अम्मा जाते हुए उसे सपने में कह गई थी कि तूने लाडो मेरा इतना करा की आज मैं भगवान से लड़कर तुझे तेरा लल्ला सौंपकर जा रही हूं।रीना जब शादी होकर जब अपने नए घर पहुंची तो कुछ ही दिनों में समझ आ गया कि यहां सासूमां की ही चलती है। ससुरजी, देवर और उसके पति भी बस मां कि हां में हां मिलाते हैं। कहने को तो घर में उसकी दादी सास भी थी पर मां के राज में अम्मा को कोई पूछता नहीं था।

पर ना जाने क्यों अम्मा का झुर्रियों भरा चेहरा और हमेशा पनीली रहने वाली आंखें(शायद अपने ही खून की बेरुखी के कारण) रीना के दिल में अपनी अलग जगह बना गई। वो अब मां से छुप छुप कर अम्मा का पूरा ख्याल रखती थी। कभी उनके तलवो पर तेल लगाती, कभी बाल बना देती और कभी यूं ही उनके गले लग जाती।अम्मा के भी चेहरे पर एक अलग चमक आ गई थी।

लेकिन आखिर मां की पैनी नज़रों से ये कब तक छुपता। उन्होंने रीमा को सीधे सीधे तौर पर तो कुछ कहा नहीं पर अब उनका गुस्सा रीमा को गाहे बगाहे झेलना पड़ता। अम्मा ने कई बार रीमा को समझाया भी कि मेरी खातिर डांट ना खाया कर पर रीमा अम्मा को ज़ोर से हंसकर दिखा देती और बात वहीं की वहीं रह जाती।

एक दिन रीमा ने सबको खुशखबरी भी सुना दी। सबको आने वाले बच्चे का इंतजार था। अब तो मां भी उसे कुछ नहीं कहती थी और पूरा ख्याल रखती थी और अम्मा तो सोने की सीढ़ी चढ़ने का सोचकर ही बड़ा खुश थी।

सब खुश थे कि अचानक सातवें महीने में रीमा का पैर फिसला और वो गिर गई। डॉक्टर ने उसकी और बच्चे की हालत नाज़ुक बताई और बच्चे के बचने के चांस तो बहुत कम थे। अंदर ऑपरेशन चल रहा था और उधर अम्मा अचानक से चल बसी। सबको बड़ा धक्का लगा और वो रोने लगे कि तभी डॉक्टर ऑपरेशन थियेटर से बाहर आकर बोला," चमत्कार,मुझे आजतक चमत्कार पर विश्वास नहीं था, मगर आज आप सबके प्यार के कारण आपकी पत्नी, आपकी बहू, आपकी भाभी की जान हम बचा पाए और ये भी किसी चमत्कार से कम नहीं है कि जहां हमने बिल्कुल उम्मीद छोड़ दी थी वहां पर ऐसा चमत्कार हो ही नहीं सकता था।

रमा को जब होश आने पर अम्मा का पता चला तो खूब रोई। अम्मा जाते हुए उसे सपने में कह गई थी कि तूने लाडो मेरा इतना करा कि आज मैं भगवान से लड़कर तुझे तेरा लल्ला सौंपकर जा रही हूं। अम्मा जाते जाते रीमा के प्यार का सारा कर्ज़ उतार गई थी।


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