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Pandav Kumar

Abstract

3.8  

Pandav Kumar

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प्यार और राजनीति

प्यार और राजनीति

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हर दिन की तरह आज भी शाम के ४ बजे लेकिन पहले कि तरह घंटी बजने कि खुशी किसी के चेहरे पर नहीं दिख रही थी।शायद इसलिए कि आज वो जो सब कर रहें हैं वो आखिरी बार ही कर रहे हैं।चाहे वो सबसे गले मिलना हो या फिर स्कूल बस का आना।सब कुछ आखिरी बार ही हो रहा था।हमसब अब ऐसे मंजिल के सफर में जाने को तैयार थे जहां ना जाने कितने अजनबी मिलेंगे इसकी भनक भी नहीं थी और हम इन दिनों को इतने मिस करेंगे की उन्हें याद करते ही आंसू निकल पड़ेंगे।खैर छोड़िए अभी के जज़्बात को।

उस दिन हम दिल के करीब दोस्त ही नहीं अपने दिल को ही शायद अलविदा कहने के लिए बस पर एक साथ बैठे थे।मेरे तीन दोस्त काजल,गोलू और जैस्मिन आपस में अपने आगे कि सफर के बारे में बात कर रहे थे। हमलोग अभी के हर लम्हे को एक पूरी जिंदगी की तरह जीने की कोशिश कर रहे थे।

पता नहीं कैसे बेपरवाह लोग कैसे समझदार हो गए थे ।हमें समझ नहीं आ रहा था कि स्कूल से आजादी की खुशी मनाए या अलग होने का ग़म।लेकिन हमलोग के आंखों ने तो ना जाने कैसे फैसला कर लिया वो बिना कुछ सोचे समझे आज गंगा जमुनी नीर को बहाए जा रहा था।

आज घर जाने की जल्दी नहीं थी वो एक घंटे का सफर जो हमें कभी महीने और सालों से भी अधिक लगते थे आज लगता था कि एक पल में सबके घर आ गए।बस की आखिरी सीट से गेट तक जाने का सफर हम सबने १० मिनट में तय किया जो कभी सेकंड में किया करते थे।हम सबके रास्ते अलग हो चुके थे लेकिन अत्याधुनिक उपकरणों की सहायता से हमलोग अब भी एक साथ ना सही पर एक साथ थे।अब हमारी दोस्ती की कहानी के लोंग रिलेशनशिप की तरह चलने लगी।मै और काजल अब दोस्त से भी कुछ अधिक थे ठीक वैसा ही गोलू और जैस्मिन के साथ भी था।गोलू और जैस्मिन एक ही शहर में रहते थे इसलिए उनकी जिंदगी में सब कुछ बहुत जल्दी जल्दी हुआ।वो दोनो बहुत जल्दी ही एक दूसरे को प्यार करने लगे।अब उन दोनों का शहर भ्रमण एक साथ होता था।लेकिन मेरी कहानी ऐसी नहीं थी। मैं और काजल हमेशा किसी छुट्टी में ही मिला करते थे।धीरे धीरे हमारी पढ़ाई चलती रही और साथ में प्यार की गाड़ी भी।मंजिल आने से पहले ही कुछ ऐसा होता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। सुबह सुबह मेरे पास एक अनजान नंबर से कॉल आता है।

अजनबी: "हैलो क्या आप रोहन बोल रहे हैं?"

मैं: "जी मै रोहन ही हूं।आप कौन हो?"

अजनबी: "मैं भागलपुर पुलिस स्टेशन से बोल रहा हूं।क्या आप गोलू को जानते हैं?"

मैं: "हां,पर उसे हुआ क्या?"

अजनबी: "उसे मृत हालत में उसके रूम के बगल के झाड़ी में पाया गया।आप उसके माता - पिता को सूचित कर दीजिए।"

मैं: "मै अभी आता हूं।"

बस इतना कहकर मैं मोबाइल को रख देता हूं जल्दी से पुलिस स्टेशन जाने की तैयारी करने लगता हूं।सोचता हूं कि किसे बताऊं ? गोलू के माता पिता तो इस दुनिया में हैं ही नहीं।फिर उसके मामा की कॉल करके सारी बात बताता हूं और पुलिस थाने आने के लिए कहता हूं। पुलिस एफआईआर लिखती है कासिम रिजवी के खिलाफ।कासिम रिजवी जो जैस्मिन के अब्बा हैं।अब ये मुद्दा पूरी तरह पॉलिटिकल हो गया था।वहां के लोकल नेता ने इसे अपने दम पर पूरी तरह हिन्दू&nb

sp;मुस्लिम दंगे की शक्ल में लाना चाह रहे थे।और हुआ भी वैसा ही।अब पूरा भागलपुर दंगे की गिरफ्त में था।सैकड़ों परिवार उजड़ चुके थे। कुछ वर्षों बाद सत्ता बदली और इस दंगे कि जांच शुरू की गई।इसमें मुझे और काजल को भी घसीटा गया । हमदोनों पूरी तरह टूट चुके थे।अब शायद हमदोनो में भी इतनी हिम्मत नहीं बची थी कि हमलोग प्यार की राह में आगे का सफर तय कर सके।हमलोग अलग होने का फैसला कर चुके थे लेकिन तब तक साथ रहने का वादा किया जब तक गोलू की हत्या की असली वजह मालूम नहीं हो जाती। कुछ वर्षों के जांच के बाद पुलिस ये साबित कर पाती है कि गोलू की हत्या भागलपुर के लोकल नेता ने की थी ।और जिस मंशा से की थी वो पूरी भी ही चुकी थी।उस नेता को कोर्ट सजा देती है लेकिन उस बेल भी मिल जाती है।वो अब बाहर आकर हमलोग को परेशान करने लगा।वो मुझे जान से मारने कि धमकी देने लगा और काजल को रेप का।आखिर वही हुआ जो बहुत पहले हो जाना चाहिए था।मै और काजल अब इस जंग को साथ में लड़ने का फैसला कर किया।मै और काजल ने मंदिर में जाकर शादी की और हर एक फेरे के साथ उस नेता को सबक सिखाने का प्रण भी लिया।

अब हम दोनों ने उसी की भाषा का प्रयोग करना शुरू कर दिया। उसके विपक्षी पार्टी को सपोर्ट करना शुरू किया और उसी के खिलाफ जमकर प्रचार प्रसार करने लगा।फिर क्या था हम दोनों को मीडिया का काफी सपोर्ट भी मिला ।तब शायद मुझे एहसास हुआ कि मीडिया और जनता को कुछ दिन के लिए गुमराह किया जा सकता है लेकिन हमेशा के लिए अंधेरे में नहीं रख सकते हैं।अब जनता और मीडिया दोनों मेरे साथ थी और साथ था तो गोलू का लिखा हुआ कविता जो अब हमारा प्रचार प्रसार अभियान का अचूक हथियार बन चुका था।

जहां भी जाते वहां ये कविता गाए जाने लगे -

मैं पंडित जी का बेटा हूं

वो मौलवी साहब की बेटी है

मै मस्ज़िद में इबादत कर आता हूं

वो भी मंदिर में भजन कर आती है

मैं मन्दिर से ही देखा करता

वो भी मस्ज़िद से नज़रे मिलाती है

मैं पंडित जी का बेटा हूं

वो मौलवी साहब की बेटी है।


ये कविता अब बिना गोलू और जैस्मिन के अधूरी लग रही थी। अधूरी ही सही पर शोला भड़काने के लिए काफी था,हिंदुस्तान बदलने के लिए काफी था।

तभी तो शायद जनता ने इस अधूरी कविता को पूरी करने की कोशिश भी की -


मेरी प्यार की कहानी को

आस भरी नज़रों से देखा उसने

अपनी राजनीति चमकाने के खातिर

मेरे प्यार की बलि दे दिया उसन

ऐसे नेताओं को सबक सिखाने आना होगा

ए हिंदुस्तान तुम्हे फिर से दिखाना होगा

हिन्दू मुस्लिम की कट्टर राजनीति को

तुम्हें फिर से हराना होगा।


और हुआ भी कुछ ऐसा ही।जनता उसी सोए हुए शेर की तरह होती है जो जगने के बाद पूरे जंगल का राजा होता है।उसने फिर से उस नेता को हराया ।सिर्फ हराया ही नहीं बल्कि न्यायपालिका की मदद से उसे उसके किए की सजा तक पहुंचाया। वो आज मर कर भी कुछ नेताओं में जिंदा है ।बस अब देर इतनी ही हो रही है कि अभी हमारा शेर सोया हुआ है,बस उसे नींद से अपने ताल्लुकात को खत्म करने होंगे।


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