एक प्रेम ऐसा भी
एक प्रेम ऐसा भी
जिंदगी कैसी भी स्थिति में क्यों ना जा रही हो बस चुप चाप कहानी के किरदार की तरह जीते जाना चाहिए।हमें पता नहीं होता कि जिंदगी हमें किस मोड़ पर लाकर खड़ा कर देगी लेकिन एक बात की गारंटी जरूर होती है कि जिंदगी जीने में मजा बहुत आता है सिर्फ और सिर्फ जरूरत होती है छोटी सी छोटी खुशियों को बड़े से बड़े अंदाज में जीने की।जिंदगी आपकी कहां शुरू होती है ये मायने नहीं रखता।जिंदगी आपकी खत्म कहां होती है वही आपकी पहचान होती है।
ऐसी ही कहानी ऐसे गांव की है जिसे आप आज के तकनीकी दुनिया के गूगल मैप में भी खोज नहीं पाएंगे। २० साल का एक नौजवान युवक जो अभी अभी शहर से पढ़ाई करके गांव आया हो उसे तनिक भी ये भनक नहीं थी कि उसे उसका जीवनसाथी उसके घर के बगल में ही है ,पर उन दोनों का मिलना उतना ही मुश्किल होता है जितना पुरानी हिंदी फिल्मों में गवाहों का अदालत तक पहुंचाना।दुर्गेश की पढ़ाई बचपन से ही मनिकपुर से कोसों दूर एक शहर में होती है।उसे बाहरी दुनिया के छल का पता नहीं था।गांव वो कुछ ही दिनों की छुट्टियों में आया करता था तो उसे घर वालों के साथ ही दिन बीत जाते थे।लेकिन इस बार किसी कारणवश वो अधिक दिनों के लिए गांव आया था। दुर्गेश खेलने के लिए बगल के ही खेल मैदान में जाता था।वहां पास के ही घर में उसने अपना दिल दे दिया था।दोस्तों के बीच सख़्त लड़का इतनी जल्दी कैसे पिघल गया इसका अंदाजा दुर्गेश को भी नहीं था। प्रेरणा थी ही ऐसी की कोई भी उसे देख ले तो दिल सम्हले नहीं सम्हलता। शर्मिला दुर्गेश की प्यार की गाड़ी चल पड़ी लेकिन एक तरफा ।वो कहना तो चाहता था लेकिन कह नहीं पाता था। उसकी जिंदगी सीधी सीधी चल रही थी इसीलिए जिंदगी में कुछ ट्विस्ट आना जरूरी था जो उसके इस प्यार की कहानी को और भी फिल्मी बना सके।
दुर्गेश की जिंदगी में पास के गांव के ही ४० वर्षीय पुरुष लाल मोहन का आगमन होता है । लाल मोहन दुर्गेश को पसंद करने लगता है और वह रिश्ते के लिए दुर्गेश के पिता ब्रजकिशोर के पास आता है। लाल मोहन अपनी १९ वर्षीय पुत्री मीना की शादी दुर्गेश के साथ हो ऐसा प्रस्ताव ब्रज किशोर के साथ रखता है। जैसे ही ये खबर दुर्गेश के पास जाती है उसे दिन में तारे दिखने लगते है और रात में वो टूटते तारे की कामना कर उसे अपने प्यार को पाने की मन्नत मांगता है। उसके पास इतनी भी हिम्मत नहीं की वो इस रिश्ते को ना कह सके ,अपने पिता जी के विपक्ष चले जाए।अगर जाए भी तो कैसे और क्यों? उसने प्रेरणा को अपने दिल की बात बताया भी तो नहीं।पढ़ाई की दुनिया से अभी तक कभी बाहर भी निकला था ,आज उसके सामने ऐसे विकट परिस्थिति आ गई कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? आखिर में वो ऐसा फैसला लेता है जिसकी एक सिर्फ और सिर्फ भारतीय शिक्षा पद्धति द्वारा पढ़े हुए प्रथम श्रेणी के बच्चे से उम्मीद की जा सकती है।वो अपनी ज
िंदगी से भागना शुरू करता है।अपने घर,परिवार सब कुछ छोड़कर बिना किसी को बताए अनजान शहर कि तरफ चला जाता है।इस सोच में की शायद मीना से शादी की बात टल जाए।होता भी ऐसा ही।लेकिन अब प्रेरणा को दिल की बात बताए तो कैसे?एक प्रेम पत्र ही उसका रास्ता बचा था और उसने उसी का साहारा लिया।अपने बचपन के दोस्त की मदद से अपने प्यार की चिठ्ठी अपने प्यार तक पहुंचा पाता है।और इंतजार उसके जवाब का करता है।प्रेरणा भी उसे पसंद करती है उसे कुछ दिनों बाद जबाव मिला,लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।प्रेरणा की शादी के भी बात चल रही थी । दुर्गेश की तरह प्रेरणा भी अपने परिवार वालों को इस रिश्ते के बारे में नहीं कह सकती थी। अब जो भी था दुर्गेश के हाथों में था।वो हिम्मत करके अपने प्यार को पाए या एक चुप्पी साधकर किसी अनजाने को गले लगाए?जिंदगी से भागने वाला दुर्गेश कब तक भागता? आखिर उसे भी लौटना तो था ही या ये कहिए की वो भागते भागते थक चुका था।उसने फिर से गांव आने का फैसला किया और सबके सामने अपने रिश्ते को कबूल कर पाए ऐसा हिम्मत भी बनाया।
लेकिन इतनी भी आसान राह नहीं थी।वो प्रेरणा के घरवालों को सब कुछ बताता है ।सब कोई मान जाते हैं लेकिन प्रेरणा का भाई विजय इस रिश्ते को कबूल नहीं कर रहा था।भागते भागते दुर्गेश इतना तो समझ चुका था कि जिंदगी भागने का नहीं,जीने का नाम है।वो हर तरह से विजय को मनाने की कोशिश कर रहा था,लेकिन विजय पर विजय पाना इतना भी आसान नहीं था।विजय का कहना था कि अगर वो प्रेरणा से प्यार करता था तो पहले क्यों नहीं बताया ? ये घर छोड़कर क्यों भागा? अगर इसके जीवन में कोई और विकट परिस्थिति आ जाए तो भी भाग सकता ना? और वैसे भी प्रेरणा के लिए अच्छे लड़के की तलाश हो चुकी है।बात तो विजय का सही ही था।लेकिन दुर्गेश जबाव दे तो कैसे?बस फिर क्या था दुर्गेश ने विजय से कुछ वक़्त मांगा और बोला कि "मैं आपको ये साबित कर दूंगा की मै जिंदगी से भागने वाला नहीं बल्कि जिंदगी को जीने वाला हूं।वो भी इस तरह जीउंगा की जिंदगी को भी मेरे पर गर्व हो।"
एक साल की कड़ी मेहनत के बाद दुर्गेश की नौकरी भारतीय फौज में लगी।आज जब वो अपने अतीत को देख रहा था तब उसे एहसास हुआ कि जिंदगी की सारी घटनाएं उसके अच्छे के लिए होती है,बस सही से जिंदगी जीना आना चाहिए।वो अपनी जिंदगी से बहुत खुश था और अब विजय भी । उसने दुर्गेश की प्रेरणा से शादी की मंजूरी दे दिया।पंडित ने शादी की तारीख भी तय कर दिया।लेकिन तभी एक घटना घटती है।बॉर्डर पर पाकिस्तानी के झपड़ में दुर्गेश शहीद हो जाता है।दुर्गेश के पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेट कर गांव लाया जाता है।आज पूरे गांव को दुर्गेश पर गर्व हो रहा था। दूसरी तरफ एक प्रेम कथा अधूरी ही खत्म हो गई थी। विजय की आंखें तब भर आईं जब अगली सुबह अखबार की हेड लाइन ये थी "दुर्गेश हमें तुम पर गर्व है: जिंदगी "