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Shashi Saxena

Horror

4  

Shashi Saxena

Horror

पूनम की रात

पूनम की रात

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कुलधरा गांव के उजाड़ वीरान चित्र को देखकर लिखी हुई यह ऐक काल्पनिक कहानी है। इसका किसी घटना से कोई संबंध नहीं है ।  


राजस्थान अप्रतिम अनुपम प्राकर्तिक सौंदर्य से परिपूर्ण अद्वितीय प्रदेश। यहां के प्राचीन किले महल बेजोड़। उनकी भव्यता का वर्णन असीमित है। जैसे गिरा अनयन‌ नयन बिनु वाणी।


इस बार हम चारों का भ्रमण था जैसलमेर दुर्ग । बस पहुंच गये हम जैसलमेर दुर्ग। जैसलमेर दुर्ग स्थापत्य कला की दृष्टि से उच्च कोटि की विशुद्ध स्थानीय दुर्ग रचना है यह दुर्ग। 150 फीट लंबी और 750 फीट चौड़ी तिकोनी पहाड़ी पर स्थित है। स्थानीय स्त्रोतों के अनुसार तो इसका निर्माण काल 1156 ईस्वी का है। किंतु समकालीन साक्ष्यों के अनुसार 1178 ईस्वी के लगभग इसका निर्माण कार्य आरंभ हुआ जिसका आरंभ रावल जैसल ने किया। किंतु 5 वर्ष के अल्प काल में ही रावल जैसल का देहांत हो गया। इसके उपरांत उसके उत्तराधिकारी शालिवाहन ने निर्माण कार्य जारी रखकर दुर्ग को मूर्त्त रुप दिया जो आज भी ऐक प्रहरी की तरह सिर उठाये सैलानियों को आकृष्ट कर रहा है।


बहुत आनंदविभोर हो उठे हम तो अपनी विशुद्ध राजस्थानी कला को देखकर। मुगल  स्थापत्य कला से ऐकदम अछूता संपूर्ण हिंदुत्व से परिपूर्ण। यहां ऊंचे ऊंचे सुन्दर महल हैं मंदिर हैं प्रशासक और जन साधारण के निवास हेतु मकान बने हुऐ हैं। भोले भाले राजस्थानी। राजस्थानी आव भगत । विशुद्ध राजस्थानी संस्कृति।


  बुलावणियां भी भगवान

   पावणियां भी भगवान


आओ जी सा पधारो म्हारे देस ,हृदय प्रफुल्लित और मन पुलकित हो उठा।इस दुर्ग को सोनार किला भी कहते हैं। हमने जब आते समय देखा तो दूर से ही यह सोने के मुकुट की तरह चमक रहा था। क्यों कि यह पीले बलुआ पत्थरों से निर्मित है। थार के रेतीले समुन्दर में ऐक स्वर्णिम कल्पना।और अब हम आ गये हैं किले के भीतर के महल और इमारतों को देखने। पीले सेंड स्टोन पर नक्काशियां। नज़रे हटने का नाम ही नहीं ले रहीं थी।पत्थरों में विविध बेल बूटे जालियां गवाक्ष । गजब गजब। किले के अंदर खूबसूरत जैन मंदिर। इनकी मूर्तियां पौराणिक गाथा सुनाती प्रतीत होती है। ये मंदिर 12 वीं से 15 वीं शताब्दी के बीच बने हुए हैं


हम इस आलौकिकता में चार दिनों तक डूबते रहे घूमते रहे लेकिन आखिर वापिसी भी तो करनी थी ना। अब हम चल दिये वापिस अपने शहर जोधपुर की ओर। करीब 292 कि. मीटर की दूरी हमें अपनी कार से ही तय करनी थी।करीब 6से 7घंटे का सफर तो था ही।


संजू तेज चला ना यार कहीं रास्ते में ही रात ना हो‌ पीछे की सीट से रोहित और आशीष उकसाये जा रहे थे। और मैंने कार की गति तीव्र कर ही दी। और इसी बौखलाहट में पता ही नहीं‌ चला कि कार कैसे गलत रास्ते पर आ गई।


एक घने जंगल में से होकर गुजर रहे थे हम। जिसके ऐक तरफ तो पहाड़ नजर आ रहे थे। दूसरी तरफ जंगल ही जंगल। तभी ऐकदम धूल भरी आंधी उठी सामने धूल के सिवाय कुछ नजर नहीं आ रहा था इससे पहले कि मैं ब्रेक लगाता वो तो पेड़ से टकरा कर ही रुक गई। अमित ने पिछले पहिऐ देखे ।


"अरै यार संजू यह क्या कर डाला। दोनो पहिये पंक्चर हो गये।ओफ्फो इस भरी दोपहरी में हम जायें तो जायें कहा। आंधी है जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।" सुनसान वीरान इलाका सांय सांय करती हवाऐं मदमस्त झूमती पेड़ो की शाखाऐं पत्तों की सनसनाहट खड़ खड़ करके आसमान में उड़ते पत्ते अत्यंत रोमांचित भयभीत दृश्य था। हम चारों ने कस कर ऐक दूसरे के हाथ पकड़ लिऐ। शुष्क गले को तर करते करते हमारा तो पानी भी समाप्त हो गया था। अमित साहस करके ऐक वृक्ष पर चढ़ा। 


"वो देखो उधर कोई गांव सा नजर आ रहा है"हम चारो ने धड़कते हृदय से उस घने जंगल को पार किया और चल दिये उस अनजान गांव की ओर।

अरे यह क्या यह तो बिल्कुल ही सुनसान,। उजाड़ ,सा वीराना।।।।।।

खंडहर बन चुके मकान गिरती खंडित दीवारें। वीराना ही वीराना मानव तो क्या कोई पंछी तक नहीं


दूर ऐक छोटे से टीबे पर ऐक मंदिर नज़र आया। आशान्वित हो भाग कर वहां गये तो देखा ऐक दरार पड़ता हुआ शिवलिंग और ऐक मजबूत जंग लगी जंजीर से लटकता घंटा। वो भी जंग लगा हुआ।

 हे प्रभु अब तेरा ही सहारा है और हम घंटे को जोर जोर से बजाने लगे शायद इनकी ध्वनि सुनकर कोई आ जाये। कोई आया तो नही लेकिन प्रभु ने हमारी पुकार सुन ली थी।


कंठ प्यास से सूखा जा रहा था हमने टीबे पर से गांव के अंदर देखा कुछ कुएं नजर आये। हम भाग कर पानी की आशा में वहां पहुंचे। लेकिन यह क्या हम जब भी किसी कुऐ में झांकते उसमें से हृदय विदारक चीख सुनाई देती।

 बहुत डर लग रहा था सूखे पत्तों पर चलते हुऐ अपनी ही पदचाप और पत्तों की चर्र चर्र की ध्वनि वातावरण को अति भयंकर बना रही थी। हम धीरे धीरे चलकर ऐक टूटे हुऐ चबूतरे पर जा कर बैठ गये। धक् धक् धक् अपने ही दिलों की धड़कने सुन रहे थे हम।


 निराश और भयातुर चेहरे पर अश्रुधारा भी प्रवाहित हो चली थी। और तभी कुत्ते के भोंकने की आवाज सुनाई दी इस आशा से कि शायद उधर कोई मानस भी होगा।हम सब उसी तरफ दौड़ पड़े।

हमारी आशा सही निकली वो ऐक दूध वाला था जिस पर कुत्ता भौंके जा रहा था और आगे नही जाने दे रहा था। हमे देखकर वो ऐसे चुप हो गया जैसे हमारी ही राह देख रहा हो


और वो दुम हिलाता हुआ चुपचाप ऐक तरफ जाकर बैठ गया। हमने उस दूधिये को सारी आपबीती सुनाई। 

आपको नही पता सैकड़ों सालों से यह गांव अभिशप्त है सारी रात यहां से चीखें सुनाई देती हैं कोई नहीं आता इधर । छोटा रास्ता होने के कारण मैं यहीं से होकर शहर जाता हूं रात होने के पहले ही वापिस हो लेता हूं यह कुत्ता मैंने पहले कभी नहीं देखा शायद प्रभु ने इसे तुम्हारी सहायता के लिऐ भेजा है। 


अमित प्यार से कुत्ते को सहला रहा था और कुत्ता दुम हिलाये जा रहा था। सबसे पहले उस दूधिये ने हमे पानी पिलाकर हमारे कंठ को तर किया। कुत्ते को दूध दिया। 

आज रात तो आपको यही गुजारनी होगी। रात अब होने वाली है ।और रास्ते में जंगल भी तो है।डरो मत मैं वापिस आकर तुम्हारे पास रुक जाऊंगा।


हमने उसे शहर से खाना लाने के लिऐ पैसे दिये।हमने सूखी लकड़ियों को इकट्ठा करके आग जला ली उस भयानकता को दूर करने का यही ऐक विकल्प था।


कुछ ही देर में वो दूधिया खाना और पानी लेकर आ गया।हमने सर्वप्रथम कुत्ते को रोटियां दी। फिर हम पांचों ने खाना खायाऔर तभी आसमान खुला बादल हटे और विहंसता पूर्ण चंद्र दिखाई दिया। 

अरे पूरा चांद आज तो पूर्णिमा है। और तभी गांव की तरफ से उन्ही हृदय विदारक चींखों की आवाजें आने लगी हमने डरते डरते गांव की तरफ देखा। पूरा गांव चांदनी की रोशनी में नहा रहा था।


 आश्चर्य हमारे उधर देखते ही चीखें आनी बंद हो गई किंतु सिसकियों की आवाजें आने लगी। हमने देखा ऐक कुऐ के ऊपर बिल्कुल‌ श्वेत स्फटिक छाया अपने दोनो बाजुओं को हमारी तरफ फैलाऐ हुऐ मानो हमे बुला रही हो। 


रोहित बोला "वो देखो वो हमसे कुछ कहना चाहती है।" और सबसे पहले वो कुत्ता उठकर पूंछ हिलाता चल पड़ा और हम पांचो उसके पीछे चल पड़े। न जाने क्यों जहां से कुछ समय पहले हम डर कर भागते हुऐ आऐ थे वही किसी विशेष कार्य के लिऐ जा रहे थे किसी संवेदना के अभिभूत होकर। 


सम्मोहित से बंधे हुए उस कुऐ के पास जाकर हम पांचो उस श्वेत छाया के पास जाकर खड़े हो गये। 

 "मुझसे डरो मत और हमारा ‌उद्धार करो ।" न जाने क्यों , अब हमें डर भी नहीं लग रहा था 

  मैं ने पूछा "कौन हैं आप?"


अब वो हमै उस गांव की कहानी इस प्रकार सुना रही थी कि गांव का दृश्य हमारी आंखों के सामने चित्रित हो उठा। 


आज से 300 वर्ष पूर्व यह ऐक बहुत सुंदर गांव था। हरित पुष्प पल्लवित करते बगीचे फलों से लदे बाग कलरव करते आसमान में उड़ते पंछी। नाना प्रकार के रंगों से रंगीन मकान। पता है मंदिरों को सात रंग से रंगते थे प्रतिदिन महकते ताजा‌ पुष्पों से सजाते थे। हर तरह से धन धान्य से परिपूर्ण था यह गांव ।नाम था रूपागढ़ी

मैंरा नाम मोहिनी है मैं इस गांव के मुखिया की पुत्रि थी। ये सारे सूखे कुऐ उस समय मीठे जल से भरे हुऐ थै। कुओं के पानी को पीने के काम में लेते थे और गांव के पीछे ऐक तालाब है वहां नहाने जाते थे। और फिर जानते हो ऐक दिन क्या हुआ।‌


वो गणगौर का दिन था माता की पूजा की तैयारियां हो रही थीं।मै अपनी सहलियों के साथ पीछे तालाब पर स्नान करने गई हुई थी। तभी अचानक डाकू भैरव ने गांव पर हमला बोल दिया सब कुछ तहस नहस कर डाला।जो लोग जान बचाकर भागे बस वो ही बचे। 

जब हम सातों सहेलियां तालाब से वापिस आई तो देखा हमारी आंखों के ही सामने हमारा प्यारा गांव उजड़ चुका था।

हमारे चारों ओर लाशें ही लाशें बिखरी पड़ी थी हम सातों सहेलियां अपने परिजनों के मृत शरीर से लिपट लिपट कर रो पड़ी।


तभी हमने देखा डाकू तो वापिस आ रहे हैं। शायद हमारे विलाप की आवाजें उन जाते हुए डाकुओं ने सुन ली थी ।हम सातों ने ऐक दूसरे की आंखों में इशारा किया और डाकुओं से बचने के लिऐ इन कुंओ में कूद कर आत्म हत्या कर ली। गांव के लोग कभी वापिस नही आऐ। उन्होने समझा होगा हमें डाकू उठा के ले गये होंगे। तबसे सैकड़ो सालों से हमारी आत्माऐं तड़फ रही हैं ।

आज ऐसा संयोग आया कि पूरन मासी की रात को आपने हमारे दर्द को सुना वरना् आज तक कोई भी इस गांव में आया ही नही। अब आप हमारी मदद कीजिये। 

वो कैसे?

पहले तो आप इन कुंओ में से हम सब सखियों कीअस्थियां निकाल कर किसी नदी में प्रवाहित कर देना फिर इन कुंओ की शुद्धि करवा कर यहा पूजा करवा देना। हमारा मोक्ष हो जायेगा। 

और फिर जिन गरीबों के पास घर नही है , जो दर दर भटकते रहते हैं , उनहे इस गांव में बसा देना। गांव को आबाद देखकर ही हमारी आत्मा को शांति मिलेगी।


लेकिन इस काम के लिऐ तो पैसा चाहिऐ।हमारी उस हवेली के खंडहर मे तुम्हे ऐक भू गर्भ दिखाई देगा। उस भूगर्भ में बांये हाथ की तरफ ऐक छोटा सा कमरा होगा ।उसको खोदने पर तुम्हे सोने चांदी की गिन्नियों से भरे दो कलश मिलेंगे।

उनसे गांव का पुनर्निर्माण हो जायेगा। अच्छा भोर हो रही है मैं जा रही हूं।

भोर होते ही हमारे कुत्ते ने भौंक भौंक कर और कुत्तों को इकट्ठा कर लिया। और उन सभी कुत्तों की ऐक सुर में आलाप सुनकर आस पास के गांव वाले आने लगे ।


अब हम जोधपुर जाना बिल्कुल भूल गये थे। कुओं के चारों तरफ सफाई करने मे लगे हुऐ थे। जिन पत्तों की आवाज से कल हम डर रहे थे आज उन पत्तों को अपने हाथों से उठाकर ऐक तरफ रख रहे थे।


 जब दूधिये ने रात की सारी घटना और हमारे बारे में बताया तो ओर गांव वाले इतने प्रभावित हुऐ कि देखते ही देखते कुछ लड़के कुंओं में कूद गये। अस्थियों को निकाल कर लाल वस्त्र में बांधकर कलश में रखा प्रवाहित करने के लिऐ। पीछे के तालाब से पानी लाकर सभी कुंओं को ओर आस पास के स्थानों को धोया। कुछ ही देर बाद वहां पंडित जी के शुद्धिकरण और मंत्रोचारण की पवित्र ध्वनि गूंज रही थी। अब कोई भयभीत नही था।


 हम अब मौहिनी के बताये अनुसार खंडहर पड़ी हवेली में गये,वास्तव में जब उसकी खुदाई करवाई तो एक भू गर्भ स्थित तहखाना प्रकट हुआ ।वहां हम बाईं ओर के कमरे में गये , कमरे की खुदाई की तो अशर्फियों से भरे दो कलश निकले ।जो कि सोने चांदी की गिन्नियों से भरे हुए थे ।


 हम चारों तो जौधपुर वापस जाना बिल्कुल ही भूल गये ।अगले दिन से ही इस पास के गांव से मजदूर बुला लिये गये।और शुरू हो गया पुनरूत्थान का काम । हमने भी एक नया अनुभव किया कि वास्तव में ग्रामीणों में कितना अपनापन और नि:स्वार्थ प्रेम होता है ।


  पास के गांव की 10----12 औरतें भी वहीं रहने लगीं वो हम सबको  यहां तक कि मजदूरों को भी खाना बनाकर खिलाने लगी । यह सब देखकर मन बहुत खुश हुआ ।

 

पूनम की रात को ऐक आत्मा की करुण पुकार से गांव का सारा दृश्य परिवर्तित हो चुका था ।

पुनरूत्थान का काम शुरु हो चुका था। बेघर लोगों को उस गांव में बसाया जा रहा था। गांव का नाम भी वही रखा था। रूपागढ़ी  क्यों कि मोहिनी यहीं तो चाहती थी ।रुपागढ़ी जिन लोगो को वहां बसाया उन्होंने वहीं मजदूरी और पास के खेतों में काम शुरू कर दिया ।

 इस तरह एक आत्मा की पुकार से वह वीराना फिर आबाद हो गया ।


10 दिन बाद हम सारी जिम्मेदारी सारा पैसा दूधिये और गांव का निर्माण करने वालों को सौंपकर वापिस जौधपुर आ गये थे।आज ऐक साल बाद हम चारों अन्य कईं मित्रों के साथ रूपागढ़ी जा रहे हैं। डरने नही, घूमने।



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