पूनम की रात
पूनम की रात
आज से करीब तीन साल पहले की बात है हम भाई बहनों ने तय किया कि क्रिसमस की छुट्टियों पर कहीं एक साथ तीनों परिवार घूमने चलते हैं। जब भी कहीं भी कभी भी घूमने की बातें होती, कार्यक्रम बनता तो मेरा अनुरोध रहता नियाग्रा फाल देखने चलें क्या? बचपन से मेरे मन में कहीं गहरे बैठ गया था एक बार तो नियाग्रा फाल देखना है । छुट्टी, आर्थिक परिस्थिति सब देख सुनकर तय हुआ कि चलो जबलपुर चलते हैं। भेड़ाघाट, धुआंधार आपको अच्छा लगेगा। मेरा तो मुंह बन गया क्या ..? चलना है तो कहीं हिल स्टेशन चलो, कहीं भी चलो पर ...भेड़ाघाट में क्या खास होगा? ( क्षमा चाहती हूं मैंने पहले कभी भी भेड़ाघाट की तस्वीरें भी नहीं देखी थी )
तय समय पर यानी कि 26 दिसंबर को हम अपने शहरों से निकलते उससे पहले ही मेरे पति को कुछ काम आ गया तो उनका जाना रद्द हो गया। तो सिर्फ मैं और मेरा बेटा ही जबलपुर के लिये निकले। दिल्ली से मेरा भाई अपने परिवार के साथ और कानपुर से मेरी बहन अपने परिवार के साथ कार से निकले। मेरे और मेरे भाई की ट्रेन कुछ 1 घंटे के अंतर पर एक साथ जबलपुर स्टेशन पर रात को पहुंचने वाली थी। हमने सोचा था कि हम वही स्टेशन पर कमरा लेकर रात को रूक जाएंगे, पर कोहरे की वजह से मेरे भाई की ट्रेन 6 घंटे लेट हो गई। मैं और मेरा बेटा रात को 12:00 बजे जबलपुर स्टेशन पर पहुंच गए। दिसंबर की ठंडी रात में मैं और मेरा बेटा खड़े होकर सोच रहे थे कि अब क्या करें ? स्टेशन पर कोई भी कमरा खाली नहीं था । फोन करके अपने पति को बताना या भाई को परेशान करना दोनों ही मुझे सही नहीं लगा।
एक कुली ने एक होटल का नाम बताया और एक रिक्शे वाले को हमें उस होटल तक छोड़ने को बोला। मैं भी कितनी बेवकूफ कि उस अनजान शहर में अनजान आदमी के कहने पर अनजान रिक्शे वाले के साथ अनजान होटल में पहुंच गई। शायद मेरा भाग्य बहुत अच्छा है। या फिर दुनिया के लोग बहुत अच्छे हैं। उस होटल मैनेजर ने यह जानकर कि हमें सिर्फ सुबह 8:00 बजे तक ही रुकना है बहुत ही सस्ते दामों पर कमरा दिया। जरा भी इस बात का फायदा उठाएं बगैर कि अकेली औरत है ज्यादा मांग लूंगा तो भी इसे देना ही पड़ेगा। ( मैं हमेशा अपनी प्रार्थनाओं में जबलपुर के उन लोगों को याद रखती हूँ।)
भाई की ट्रेन थी कि लेट पर लेट होती जा रही थी और कोहरे के कारण बहन भी अभी तक नहीं आ पाई थी। तो होटल के मैनेजर ने ही हमें सुझाया कि होटल में बैठे रहने से अच्छा है, यहीं पास में ही एक दर्शनीय पार्क है। आप वहाँ तक टहल कर आइए। 10 बजते बजते भाई और बहन आ गये। हम उनके साथ एमपीटीसी के होटल के लिए भेड़ाघाट के लिए रवाना हो गये। वहां पहुंचकर हम सीधे धुआंधार प्रपात पर पहुंचे । मंथर गति से आती मां नर्मदे के विहंगम रूप के प्रपात के दर्शन किए। रोपवे केबल कार में भी बैठ कर के ऊपर से भी धुआंधार का बहुत ही अच्छा नजारा देखा । आसपास सभी जगह घूम फिर कर, तय हुआ कि चलो नौका विहार के लिए चला जाए। हम सब घाट पर पहुंचे । वहाँ नाव तय करके हम लोग नौका विहार के लिए निकले । नाव वाले की बातें कविता की भाषा में थी। बहुत ही मजेदार । उसने हमें बहुत अच्छे से सब कुछ दिखाया और उन सब के बारे में भी बताया । और यह विचार भी दिया कि जहाँ आप ठहरे हो वहाँ से नदी के किनारे किनारे चलते चलते भी धुआंधार तक जा सकते हो । सुबह सूरज निकलने से पहले का दृश्य बहुत ही मनोरम होता है।
हम सब घूम फिर कर होटल में आ गए खाना खाया, गप्पे मारी । वहीं तय हुआ क सुबह उठकर चलते हुए धुआंधार तक जाया जाएगा । वेटर से रास्ता भी पूछ लिया। उसने भी बोला कि सुबह वह हमें रास्ता दिखा देगा। उसने बोला आपको जाना हो तो अभी भी जा सकते हो आज पूनम हैं , चांदनी रात है । यह सारी जगह होटल वालों की ही है इसलिए डर की कोई बात नहीं है। नौका विहार करते समय हमने नर्मदा नदी के सीधे और गहरे फटे कगारों को देखा था तो हमने तय किया कि नहीं रात को नहीं हम सुबह ही जाएंगे। तभी बैठे-बिठाए दिमाग में आया कि इतनी दूर तक आकर चांदनी रात होते हुए भी अगर पूनम की रात को धुआंधार नहीं देखा तो क्या देखा ? बस आनन-फानन में हम सब तैयार होकर निकल लिए। अपनी गाड़ी थी और रास्ता भी सुबह का देखा हुआ था। रात को 10:00 बजे थे। हमने मैनेजर से पूछा इस समय जाने को मिलेगा ? कोई परेशानी तो नहीं होगी? कोई रोकेगा तो नहीं? तो उसने बोला, "ऐसा नहीं है रात को भी काफी लोग देखने जाते रहते हैं।
हम सब 27 दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में पूनम की रात में धुआंधार प्रपात देखने को निकल पड़े। सुबह जहाँ तक गाड़ी गई थी उसके काफी पहले ही हमारी कार को रोक दिया गया । कोई दूसरा रास्ता दिखाकर बोला गया कि वहाँ से जाइए। वहाँ बहुत सारी दुकानें लगी थी । उनके बीच से होते हुए, सामान खरीदते हुए हम सब चलते चलते नदी के किनारे पहुँचे । फिर वहाँ से रास्ता पकड़ कर धुआंधार तक पहुँचे I वहाँ थोड़े बहुत लोग ही थे। हम चलते - चलते थक गए थे। पर सच बताऊँ वह पूनम की चांदनी रात में माँ नर्मदे के जलप्रपात धुआंधार की अमृत समान फुहारे इतनी अच्छी लग रही थी कि विश्वास ही नहीं हो रहा था यह दिसंबर की कड़कड़ाती पूस की रात है। बहुत ही मनोरम दृश्य वर्णन से परे। पूनम के चाँद की चाँदनी में नहाई हुई नदी, लगता था कि जैसे पानी नहीं दूध , नहीं दूध भी नहीं अलौकिक अमृत बह रहा है । रात को जल प्रपात की तीव्रता ऐसा लग रहा था कि सुबह से बहुत ज्यादा थी। शायद रात को ठंड के कारण उठने वाली बूंदें हवा में ही जम सी जा रही थी और प्रपात को और भी विहंगम बना रही थी। जैसे माँ के आँचल की उष्णता में बच्चा सुकून महसूस करता है वैसे ही हम भी दिसम्बर की कंपकंपाती ठंड में भी माँ नर्मदा की उड़ती बूंदों के आगोश में एक अलग सी उष्णता एक अलग सा सुकून महसूस कर रहें थे। हम घंटों तक वहाँ बैठकर उसका आनंद लेते रहे। इस बात से बेखबर कि हमारे साथ के हमारे आसपास के सभी लोग वहाँ से जा चुके हैं। जब हमें थोड़ा ठंड लगनी महसूस हुई तो लगा चलो अब वापस चला जाए तो देखा वहाँ सिर्फ हम लोग ही बचे थे । अब तो हम लोगों के मन में थोड़ा सा डर लगना शुरू हुआ। हम चार महिलाओं दो बच्चियों के साथ सिर्फ दो ही पुरुष थे और एक मेरा बेटा हम सब ने वापस लौटना शुरू किया तो जो रास्ता उमंग, उत्साह और लोगों के साथ के कारण आते वक्त छोटा प्रतीत हुआ था वह बहुत लंबा लग रहा था । अभी तो उसके बाद हमें दुकान वाले क्षेत्र को भी पार करना था । दिल में धक-धक हो रही थी, क्योंकि यह कार्यक्रम मैंने ही बनाया था इसलिए मुझे ज्यादा ग्लानि हो रही थी । तभी हमें सामने दूर से कुछ लोगों का समूह आता दिखाई दिया। हम और डर गए । पता नहीं कैसे लोग होंगे? हम सब ने माँ नर्मदे के पास पड़े पत्थरों को अपने दोनों हाथों में उठा लिया और हंसते बोलते, बातें करते एकदम बेपरवाह दिखाते हुए चलने लगे। अपने आप को एकदम बेफ्रिक व निडर दिखाते हुए कि कहीं वह लोग यह न सोच पायें कि हम डर रहे हैं l वे लोग भी हमारी तरह ही पर्यटक थे आराम से वह आगे की तरफ निकल गए। अब हम उन दुकानों के क्षेत्र में आए । जहाँ जाते वक्त सारी दुकानें खुली और रोशनी से जगमग थी, अभी सब बंद थी। सिर्फ चंद्रमा की रोशनी ही हमारा सहारा थी । दुकानों की भूलभुलैया को पार करके हम जैसे तैसे अपनी कार तक पहुँचे और होटल में आए।
वापस सुबह सुबह उठकर नर्मदा नदी के किनारे किनारे उसकी कगारों के ऊपर चलते हुए हम काफी आगे तक गए । हम सूर्योदय देखना चाहते थे पर कोहरा होने की वजह से सूरज दादा भी आराम कर रहे थे। तो हम सुहानी सुबह का आनंद लेकर वापस आ गए। हमने बाद में जबलपुर में आसपास के कई दर्शनीय स्थलों को देखा। बरगी डैम भी गए । हमारी आँखें तो खुली की खुली रह गई, इतना पानी! बरगी डैम में रुका हुआ पानी किसी समुद्र का आभास दे रहा था । हमने वहां बोटिंग भी की ।
माँ नर्मदे को शत शत नमन है कि उनके अमृत जल से पूरा मध्य प्रदेश लाभान्वित होता है । इसे माँ नर्मदे के जल की महिमा ही कहूँगी कि वहाँ जबलपुर के लोग इतने अच्छे हैं कि वहाँ बिताई दो रातें जो शायद मेरे जीवन की सबसे खराब रातें भी हो सकती थी, आज भी मेरे जीवन की यादगार रातें हैं ।
जय माँ नर्मदे! जय माँ गंगे !
मौलिक व स्वरचित
पढ़ने के लिए आपका आभार।