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Amit Kumar Rai

Romance

4.8  

Amit Kumar Rai

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पुरवाई को किसने रोका है !!

पुरवाई को किसने रोका है !!

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2018 असाढ़ के दिन थें। अंग्रेजी तर्जुमा करू तो जुलाई के शुरुआती दिन होंगे। मैं पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार में रहता था। तब मेरी उम्र 23 थी। बरसात के दिन थे, बारिश नित दिन हुआ करती थी। तेज हवाओं के साथ आकाश अक्सर बादलों से भरे नज़र आते। वातावरण साफ था जो दिल्ली जैसे शहर में बमुश्किल देखने को मिलता है। दिल्ली की हवा जो अमूमन पी.एम 2.5, पी.एम 10 के कारण बेहद मैली होती है, जो साल के उन दिनों बारिश के कारण साफ हो चुकी थी। शाम का वक्त बारिश थमते ही लोग अपने-अपने घरों के छतों पे घूमने निकाल आते। वो दूर दो माले के घर की छत पर माँ अपने एक साल के बच्चे के साथ खेलती जो चलने की कोशिश कर रहा था, खैर अब तो 3 साल बीत गए है अब तो वो बच्चा शायद स्कूल भी जाने लगा होगा। पास के उस छत पर एक महिला जिसकी उम्र 50 होगी हमेशा की तरह कुर्सी पर उदास अपने प्लास्टर किए टूटे हाथ लिए बैठी रहती। वहीं पास के उस बड़े मकान की तीसरी मंजिल की बालकनी में एक हम उम्र लड़की फ़ोन पे हंस-हंस कर हमेशा किसी से बात किया करती जिसे देख ऐसा लगता जैसे हज़ारों कैमरे उस पर केंद्रित हो और वो अपना बेस्ट शॉट देने के लिए तैयार हो, उसे शायद ऐसा लगता था कि एक भीड़ उसे हमेशा देख रही है और वो मन ही मन इसका जश्न मनाती।

खैर, मेरे छत पर सागर जो करीब 8 साल का था अपनी पतंग उड़ाने में मग्न था। चुकी मुझे वहां रहते एक साल होने वाले थे, सागर से मेरी दोस्ती हो गई थी। उसका बड़ा भाई सौरभ जो दसवीं की परीक्षा देकर गर्मियों की छुट्टी में अपने गाँव गया था, उससे भी मैं काफी घुल मिल गया था। सागर और सौरभ दोनों अपने चाचाजी के यहां रह कर दिल्ली के सरकारी स्कूल में पढ़ा करते थे। चाचाजी जोकि किसी कार के शोरूम में सेल्स की नौकरी करते थे और बेहद तुनक मिजाजी थे वो अक्सर बच्चों पे गुस्सा करते और पढ़ाई का मुद्दा लिए उन्हें मारा भी करते थे। सच कहूँ तो उनकी इस हरकत से मैं उन्हें बिलकुल पसंद नहीं करता था। मैं उन्हें दिन में सिर्फ दो बार ही देख सकता था या तो सुबह ऑफिस जाते या फिर शाम को थके वापस आते समय। एक साल गुजर गए थे पर मैंने उन्हें कभी हस्ते हुए नहीं देखा था। उनकी शादी को अभी एक साल ही हुए थे पत्नी बेहद शांत और खूबसूरत थी जिनका नाम सुमन था। जितना मुझे पता है उन्होंने बीएड कर रखा था और हाल ही में टेट का एग्जाम भी उत्तरण किया था। उनकी टीचर बनने की राह लगभग साफ थी। सुमन की पढ़ने में बेहद रुचि थी वे अक्सर सागर को भेज मेरे यहां से दिन का अखबार मंगा करती थी। इसके इतर सुमन को एक और शौक था... परफ्यूम का। उनके पास कई तरह की खुशबू वाली परफ्यूम थी। मेरा और सुमन का फ्लैट बिल्कुल अगल-बगल था। हम दोनों की किचन की खिड़की बिल्कुल आमने-सामने कॉमन वेंटिलेशन में खुलती थी। शुरुआती दिनों में वे अक्सर किचन का काम करते मुझे अचानक दिख जाया करती। इस लिए पर्दे के तौर पर हमने अपने-अपने खिड़कियों पर अखबार चिपका दिया था जिस से हवा भी आर-पार नही हो पाती थी। सुमन जब भी दरवाजा खोल बाहर निकलती, हल्की परफ्यूम की खुशबू मेरे कमरे तक जरूर आती।

एक रोज की बात है बड़ी जोरों की बारिश हुई थी। पूरे दिन बारिश और शाम से ही तेज पुरवाई हवाएं चल रही थी। आम तौर पर मुझे देर रात तक किताबें पढ़ने की आदत थी पर उस दिन मैं रात दस बजे ही सो गया था। अचानक आधी रात को किसी फड़-फड़ की लगातार आती आवाज से मेरी नींद खुल गई। आवाज बार-बार हर एक अंतराल के बाद आ रही थी। चुकी उस रात हवा बहुत तेज़ थी, खिड़की पे लगे अखबार पुरवाई हवा के रास्ते में अवरोध उत्पन्न कर रहे थे। अखबार और हवा की जुगलबन्दी हर एक अंतराल के बाद फड़-फड़ का शोर उत्पन्न कर रही थी जिससे रात की शांति भंग हो रही थी। चुकी सुमन की खिड़की भी मेरी खिड़की के पास थी और उस खिड़की पे भी अखबार लगे थे तो एक शोर वहां से भी आ रहा था।

लाख कोशिश के बाद भी नींद नदारत थी। तेज हवा और अखबार के शोर के कारण लगातार मेरी नींद भंग हो रही थी। हवा का झोखा आता तो एक बार मेरी खिड़की से फड़-फड़ का शोर होता तो दूसरे ही पल सुमन की खिड़की से भी दबी आवाज में शोर आता।

नींद लगती भी तो कुछ ही देर में उस शोर के कारण फिर से खुल जाती। अब रात के 2 बज चुके थे, मैं अब भी सो न सका था।

रात और गहराती गई। 3 बज चुके थे, पुरवाई और तेज हो गई इसके साथ ही शोर भी बढ़ा। जब शोर बर्दास्त से बाहर हो गया, मैं उठा और घोर गुस्से से खिड़की पे लगे अख़बार को अखबार उखाड़ फेंका और फिर जाके बिस्तर पे लेट गया। एक पल शांति थी पर फिर से फड़-फड़ की वो आवाज आने लगी। मैंने सुना तो पाया कि ये आवाज पास की सुमन की खिड़की पे लगे अखबार से आ रहे थी। अब मैं हताश हो गया था क्योंकि उस आवाज पे मेरा कोई बस नहीं था। मैं चाह कर भी उस अखबार को नहीं हटा सकता था, जिस से पुरवाई को उसका स्वतंत्र मार्ग मिल सके और काली रात का वो शोर खत्म हो सके। मैं लेटा रहा पर लगातार आती शोर से मैं सो न सका था। तभी अखबार फाड़ने की तेज आवाज आयी...। मैं चौक गया, ये तो सुमन की खिड़की थी। शायद ये शोर दोनों ही तरफ हो रहा था और अब सुमन के पति ने भी उस शोर से परेशान होकर खिड़की पे लगे अखबार को हटा कर पुरवाई को आज़ाद कर दिया था।

सुबह के 4 बजने को थे दोनों खिड़कियों से अखबार का पर्दा हट चुका था। पर अब किसी तरह का शोर नहीं था। पुरवाई आज़ाद थी और सुमन के कमरे से होते हुए मेरे कमरे तक बेखौफ बह रही थी, और साथ सी एक खुशबू भी ला रही थी।

खुशबू, उस परफ्यूम की जो सुमन ने आज सुबह लगाया था। गुलाब की हल्की महक लिए वो वो परफ्यूम जो रात की पुरवाई मैं घुल सी गई थी। पुरवाई आज़ाद थी और वो खुशबू दोनों घरों को एक कर रही थी।  



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