सिंदूर की दिवार
सिंदूर की दिवार
उसका नाम हर्ष था। 3 महीने की लगातार ट्रैनिंग के बाद अब वो ऊबाऊ लैब से उठ कर फील्ड में जाने को तैयार था। फील्ड यानी इंडस्ट्री जहां उसे इंजीनियर के हैसियत से पहली नौकरी पे रखा गया था।
वो दिन था मंगलवार, उसकी वो पहली नौकरी थी और वो एक बहुचर्चित दूध के फैक्ट्री में क्वॉलिटि इंजीनियर के हैसियत से जाने को था। जाने की वजह थी दूध के पॉकेट पे छपने वाले दिनांक कोड पे कुछ समस्या। शायद ऑटोमेशन मशीन में कुछ ख़राबी थी या प्रिंटर में।
अब वो दूध के प्लांट पहुँच चुका था, गेट पर सिक्योरिटी ने प्लांट मैनेजर से फ़ोन कर हर्ष के आने के बारे में पूछा और फिर उसको एक व्यक्ति के साथ फैक्ट्री में भेज दिया गया। अंदर जाने के बाद वो प्लांट सुपरवाइजर के साथ खराब मशीन के पास गया और घंटे भर के मशक्कत के बाद फाल्ट का पता लगा और फिर हर्ष मशीन बनाने में लग गया।
तभी सामने से तेज आवाज़ सुनाई दी, शायद किसी को डांटने की, जब उसने उस ओर देखा तो खड़ूस सुपरवाइजर एक वर्कर को डांट रहा था। जब उसने देखा तो वो एक लड़की थी। उस लड़की का काम दूध के पैकेट को छोटे कंटेनर में गिन कर रखना था। इस काम में एक भी चूक की गुंजाइश नहीं होती है। लड़की से कुछ ग़लती हो गई थी और इसीलिए सुपरवाइजर उसे डांट रहा था।
लड़की की शायद 19, 20 होगी, वो दिखने में बेहद खूबसूरत थी, गोरा चेहरा, तीखी नाक, काले घने बाल, पतला बदन, सिर पे एक स्कार्फ़ और ग़ुलाबी गाल, जो डांट सुनने के बाद और भी लाल हो गए थे। वो शायद असम से थी। सुपरवाइजर के जाने के बाद वो काम में लग गई पर उसके चेहरे पर उदासी साफ देखी जा सकती थी।
तभी अचनाक उसने हर्ष को देखा जो कब से उसे निहारे जा रहा था। हर्ष झेप गया और अपने काम में लग गया। पर लाख कोशिश के बाद भी वो खुद को उसे देखने से नहीं रोक पा रहा था। इस बात की ख़बर अब उसको भी थी। तभी अचानक आवाज़ आई। "जोयश्री तेरा ध्यान किधर है" , फिर डांट खाना है क्या? लड़की के चेहरे पे एक तीख़ी सिकन आ गई और वो अपने काम में लग गई। और इस तरह हर्ष के होंठों से निकला "जोयश्री।" उस खूबसूरत लड़की का नाम जोयश्री था।
दोपहर के 2 बज चुके फैक्ट्री में ये लंच का समय था। हर्ष का काम अब लगभग खत्म हो चुका था पर वो हर बार की तरह अपना काम झटपर खत्म कर घर निकलने की जल्दी में नहीं था। उसके सामने दूध के पैकेट बनाने वाली ऑटोमेशन थी पर उसके आंखों में जोयश्री का चेहरा। वो बेसब्री से लंच खत्म होने का इंतज़ार कर रहा था कि वो जोयश्री को दोबारा देख सके।
तभी खड़ूस सुपरवाइजर आया और उसने हर्ष से कहा, "सर चलिए आप भी लंच कर लीजिए।" हर्ष बिना कुछ कहे एक हामी के साथ उसके साथ चल पड़ा।
लंच से लौटने के बाद जब वो अपने काम पर लौटा तो उसके सामने वही खूबसूरत चेहरा था, जोयश्री। वो लगातार जोयश्री को देखे जा रहा था और बीच बीच में जोयश्री की भी निगाहें उससे मिल जाती थी। पर न जाने क्यों हर्ष को जोयश्री के चहरे पे एक खामोशी नज़र आ रही थी, एक उदासी।
मशीन अब ठीक हो चुकी थी पर हर्ष अब भी वहीं था। शाम के 6 बजने को थे और ये समय ड्यूटी बदलने का था। मतलब काम कर रहे वर्कर्स के घर जाने का और नए वर्कर्स के आने का। तभी अचानक फैक्ट्री का सायरन बजा और सभी वर्कर्स में हलचल बढ़ गई। सभी अपना काम समेटने लगे, अपना समान ले कर वो जाने को तैयार थे। जोयश्री भी अपना छोटा सा बैग लेकर जाने को थी।
इधर हर्ष अपना काम समेट चुका था और प्लांट मैनेजर को मशीन में हुए फाल्ट का विवरण देने जा चुका था। उसके साथ ही उसने मैनेजर के सामने बिल का स्लिप भी रक्खा, जिसपे 35700 दर्ज थे। मैनेजर ने चेक से इसका भुगतान किया और फॉर्मल बातचीत के बाद हर्ष चल पड़ा। घड़ी में शाम के 6:30 बज रहे थे।
तभी अचानक हर्ष को जोयश्री का ख़याल आया। जिसके लिए वो दोपहर से वहां रुका था कि एक बार उस से बात कर सके। उस से अपने दिल की बात कह सके कि वो उसको पसंद करता है।
वो भागते हुए जब फैक्ट्री से बाहर निकला तो देखा कि जोयश्री आस पास नहीं थी। शायद उसको आने में देर हो गई थी और वो घर जा चुकी थी। हर्ष उदास सा चलता जा रहा था। सड़क तक आकर उसने टैक्सी ली और मुम्बई लोकल लेने स्टेशन पहुचा।
उसका चेहरा उतरा हुआ था वो उदास था और बार-बार खुद को कोस रहा था। खुद से सवाल कर रहा था कि क्या जोयश्री को रोकने का उसके पास कोई मौका था? क्या वो उस से किसी तरह बात कर सकता था? ये सब सोचते-सोचते वो प्लेटफॉर्म पर पंहुचा और सामने ट्रेन आ चुकी थी।
प्लेटफॉर्म पे भाग दौड़ मच गई थी पर हर्ष शांत था, वो अब भी खोया-खोया सा था। भीड़ के साथ वो भी ट्रेन में चढ़ गया। ट्रेन चल पड़ी थी, उसने देखा कि आज कोच में कुछ ज्यादा ही भीड़ थी। पर जब उसका ध्यान सामने के बोर्ड पे गया तो देखा वहां 2 क्लास लिखा था। 1 क्लास का टिकट होने के बाद भी वो अपने खोए हुए मिजाज के चलते 2 क्लास में चढ़ गया था। तभी एक आवाज आई, "जोयश्री अंदर आजा इधर जगह है।"
हर्ष के अंदर अचानक बिजली दौड़ गई वो मुड़ा, उसने देखा तो सामने वाली सीट पे जोयश्री बैठी थी। उसके अंदर खुशी के गुब्बारे फूटने लगे। वो अब सिर्फ ये सोच रहा था कि कैसे भी वो जोयश्री से बात कर सके, वो उसके और पास चला गया। जोयश्री अब उसके बिल्कुल सामने थी। जोयश्री ने भी उसको देखा और वो अचानाक डर सी गई। उसके चेहरे पे हल्की सी घबराहट थी वो समझ नहीं पा रही थी कि हर्ष वहां कैसे आ गया।
वो व्याकुल सी नज़र आ रही थी। सुबह के अपेक्षा बिल्कुक अलग। उसके आंखों में साफ देखा जा सकता था कि वो हर्ष से कहना चाह रही थी कि प्लीज् मुझसे दूर चले जाओ। हर्ष खामोश खड़ा था पर वो उसकी व्याकुलता समझ नहीं पा रहा था। वो उसके सामने था, बिल्कुल सामने। उसकी शरमाई सी नज़रे जोयश्री पे टिकी थी और जोयश्री जैसे बिना कुछ बोले बहुत कुछ कहना चाहती थी।
अब हर्ष हिम्मत जुटा कर जोयश्री से कुछ बोलने ही वाला था कि जोयश्री ने अपने सिर पर बंधे स्कार्फ को पीछे की तरफ़ खींचा और हर्ष की निगाहों के सामने अंधेरा छा गया। जोयश्री के माथे पर एक पतली सी लाल रंग की लकीर थी, बिल्कुल माथे के बीच में, उसकी मांग के बीच में, वो "सिंदूर" था।
जोयश्री की आंखों में पानी था और हर्ष उसे एक टक देखे जा रहा था। हर्ष की आंखें भी नम थी। उसने अपनी नज़रों को जोयश्री से हटा लिया।
हर्ष के दाएं ओर एक महिला के गोद में 3 साल का बच्चा हर्ष को लगातार एक अनजान की तरह देखे जा रहा था। हर्ष की आंखें नम थी, उसने अपनी जेब से सुबह का बचा चॉकलेट निकाला और उस बच्चे के हाथ में दे दिया। छोटा बच्चा खुश हो गया। तभी आवाज आई.. "पुढील स्टेशन दादर आहे" मतलब "अगला स्टेशन दादर है।"
जोयश्री ट्रेन से उतर चुकी थी और हर्ष अपना बैग लिए थका हुआ दादर स्टेशन उतर गया। घड़ी में रात के 8 बज रहे थे। ट्रैन स्टेशन से जा चुकी थी और हर्ष घर को।