पुरस्कार
पुरस्कार
आज नीरज की ख़ुशी सातवें आसमान पर थी, उसकी लिखी किताब को ज्ञानपीठ पुरस्कार जो मिल रहा था।वह आज उस फ़रिश्ते का शुक्रिया अदा करना चाहता था, जिसकी बदौलत वह इस मुकाम पर पंहुचा था।
उस दिन भी तो नीरज प्रतिदिन की तरह पार्क में बैठा बच्चों को खेलते हुए बड़ी हसरत से देख रहा था।तब वह फरिश्ता उसके पास आया था और उससे कहने लगा था कि," वह भी जाकर उन बच्चोंके साथ खेले। "
नीरज यह कहकर कि," वे बच्चे उसे अपना दोस्त नहीं बनाते और न ही अपने साथ खिलाते हैं। ",अपनी बैसाखियाँ उठाकर जाने लगा था।
तब उन्होंने नीरज को एक किताब देते हुए कहा था कि," बेटा निराश न हो।तुम किताबों से दोस्ती कर लो, यह हमेशा तुम्हारा साथ देंगी।"
नीरज ने उनकी बात गाँठ बाँध ली थी। उसने किताबों से दोस्ती कर ली थी। किताबें पढ़ते -पढ़ते धीरे -धीरे उसे लिखने का भी शौक होने लगा। वैसे भी विचारों से ही विचार जन्म लेते हैं। पढ़ते हुए ,उसके दिल और दिमाग में कई नए विचार जन्म लेने लगे। यह विचार उसकी लेखनी का साथ पाकर ,पन्नों पर उतरने लगे। जब पन्नों की संख्या बढ़ने लगी तो उन पन्नों ने एक किताब का आकार ले लिया। किताबों से हुई दोस्ती ने नीरज को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त लेखकों की श्रेणी में खड़ा कर दिया था।
