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Rekha Shukla

Abstract Drama

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Rekha Shukla

Abstract Drama

पुराना

पुराना

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पुराना हो गया हूँ फिर भी तुम्हारा हूँ ... पार्टीशन हो गया धर बदल गया पर जड़ से नहीं उखड़ा हूँ ... हाँ, थोड़ा कम देखता हूँ पर दूर का सब देखता हूँ मेरी बूढ़ी आंखें याद करती है करीम चाचा को पता नहीं पर दूर दूर से साफ देखती याद करती है.. शाखें फिर से निकली थी फिर से इसी घर में पूरी जिंदगी गुजारने के लिये तैयार हूँ काश तुम आ जाती...!! वही घर हैं, करीम चाचा और वो पुरानी अलमारी नक्शीकाम वाली... उसमें तुम्हारा बुना स्वेटर अलमारी में पूरी तूफानी यादें अभी भी बंद हैं... काश तुम आ जाती...!! पर ये घर तो एन्टीक अलमारी से भी पुराना दादाजी के दादाजी का है और इसी कमरें में तो में पैदा हुआ था... पर तुम्ही थोड़ा पता था? वो तो बुआ थी जो दीदी को बोल रही थी उनकी शादी के बाद तब मुझे पता चला था...वो कह रही थी जब तक मैं जिन्दा हूँ तुम इस घर को देख लो... मिल लो इन दीवारों को ... मिट्टी तरस गई हैं आ के कर्ज चूका दो..!! काश तुम आ जाती..!! पुरानी चद्दर में पड़ी सलवटें... पुरानी बातें.. मीठी बातें काश तुम आ जाती ये महकें तो उनके हाथों की बनाई रसोई से आती थी.. अभी भी वही महकें रसोईघर में बस गई हैं, ग्रामोफोन पर बजते वो मधुर गाने देखो अभी भी आंखें भर जाती हैं... काश तुम आ जाती...!!


वक्त और आबादी आधा कब्रिस्तान खा गई, अब अच्छी मिट्टी में बोये जाये बीज तो तेरे और मेरे नई जड़ें बनाई जाये... पर काश तुम आ जाती..!! किताबों से कभी गुजरो तो यूं मिलते हैं किरदार गये वक्त की जोड़ी में गड़े कुछ यार दोस्त मिलते हैं जिसे हम याद करते हैं उसी में शहरों की तासीर मिलती है.. खुली हवा में तेरा बाल सुखाना तेरी लटों को तुझे परेशान करना...सजे गुलाब बालों में और गुलाब की महकें का मुझ में खो जाना, काश ये तस्वीर से निकलकर सामने आ जाती...हमने बोया था पौधा वो घनघोर वृक्ष बन गया है .. उसकी घनी छांव में जमीं पे पड़े फूलो की चादर पे सोना कितना अच्छा लगता है... काश तुम आ जाती...!!


कुछ याद आया ये लम्बे लम्बे बाल वाला कौन था तुम्हारे साथ में ?? तुम्हारे अम्मी के पास ले जाने का बहाना करके ले गया... लोग कहते हैं तुम्हारे ही अब्बु ने तुम्हें बेच डाला.. कोई कहता हैं तुम्हारी शादी हो गई !! एक हफ़्ता हो गया आंखें रो रो के सूज गई.. काश तुम आ जाती..!! देखो ना महिने में तुम्हारी कितनी तस्वीर बना ली मैंने... तुमसे तुमको मांगा था... वक्त मिल गया पर तुम कभी ना आई... काश तुम आ जाती...!! ये शाम यूं ही ढल जायेगी.. दीवारों ने बाते सुनना बंद कर दिया है..इन रुखी सुखी आंखें भी इंतजार करना बंद कर दे उससे पहले काश तुम आ जाती..!! आईना कितना धुंधला हो गया हैं.. वैसे

मैंने उनसे मिलना बंद किया है ये ढलता सूरज मेरी तरह पानी में डूब जायेगा... रंग बदल जायेगा. आंगन में तेरी मैना कूक करने नहीं आती हैं! वो सुबहा कभी आ जाती की सूरज की धूप आंगन आने से पहले तुम आंगन में खड़ी बाल सुखाती... काश तुम आ जाती वो मैना की कूक सुनने को कान तरस गये हैं ! सब छोड़ कर आ जाती वही वजूद और मकसद हैं इन सांसो का सुनो आज करीम चाचा ने फिर से हमारी तस्वीर तकिये के नीचे देख ली है...तुम शरम से पानी पानी हो गई थी और मैं हंस पड़ा था... देखो आज भी हंस पड़ा हूँ बुरा मत मानना...गुस्से में तेरी लटों को सुलझाने में तेरी मेहँदी तेरे कान पे लग गई थी..और मैं हंसा और करीम चाचा ने खींचली तस्वीर..है ना..हाथ फैला कर खड़ा हूँ काश तुम आ के समा जाती...!!



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