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Rekha Shukla

Inspirational

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Rekha Shukla

Inspirational

उपनिषद

उपनिषद

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उपनिषद कहते हैं......


एक ही वृक्ष पर दो पक्षी बैठे हैं। एक पक्षी नीचे की शाखा पर, बड़ी चें-चें करता है, इस डाल से उस डाल पर कूदता है, इस फल को चखता है, उस फल को चखता है। बड़ी बिगूचन में पड़ा है। और एक दूसरा पक्षी, ऊपर के शिखर पर बैठा है--सिर्फ बैठा है! वह नीचे के पक्षी की चहल-पहल, भाग-दौड़, आपाधापी देखता है, बस सिर्फ देखता है।


यह बड़ी प्यारी प्रतीक-व्यवस्था है। ऐसे उपनिषद कह रहे हैं कि तुम्हारे भीतर भी दो पक्षी हैं--एक साक्षी और एक कर्ता। कर्ता नीचे की शाखाओं पर आपाधापी में लगा रहता है: और धन कमा लूं, और पद कमा लूं, और प्रतिष्ठा कमा लूं। उसका मन भरता ही नहीं। उसे तृप्ति मिलती ही नहीं। जितने तृप्ति के उपाय करता है उतनी अतृप्ति बढ़ती चली जाती है। लेकिन ऊपर एक साक्षी है जो सिर्फ देखता है--इस नीचे के पक्षी की उधेड़बुन देखता है, व्यर्थ की परेशानी देखता है। सिर्फ देखता है! दर्पण की भांति है। कुछ बोलता नहीं।


अब धर्म के दो रूप हो सकते हैं। धर्म का जो नैतिक रूप होगा, वह नीचे के पक्षी को बदलने की कोशिश करता है। और धर्म का जो परम रूप होगा, आध्यात्मिक रूप होगा, वह ऊपर के पक्षी की याद दिलाता है। धर्म का जो अध्यात्म है वह तो कहता है: इतनी भर याद तुम्हें आ जाए कि तुम्हारे भीतर एक साक्षी है, बस काफी है, क्योंकि साक्षी का कोई जन्म नहीं होता। यह तो कर्ता है जो हर जन्म में भटकता है। क्योंकि मरते वक्त तुम्हारी वासना तृप्त नहीं हुई होती। वासना की डोर तुम्हें नये जन्म में ले जाती है।



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