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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

पुनर्जन्म

पुनर्जन्म

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उत्तमा आईने के सामने बैठी अपनी माता की छाया को अपने चेहरे की लकीरों में अनुभव कर रही थी, अपनी आँखों में वो सारे स्वप्न उसे स्पष्ट दिखाई दे रहे थे, जो उसकी माँ ने दस वर्ष पूर्व अपने परिवार के लिये देखे होंगे।

वह 20 वर्ष की थी, जब लंबी बीमारी से पीड़ित उसकी माँ से चल बसी थी। पिता पहले ही नहीं थे। असमय दायित्व आने पर पहले तो वह एक वर्ष तक संभल ही नहीं पाई। बाद में उसने एक व्यवसाय आरम्भ कर दिया। आज दस वर्ष हो गए, स्वयं का और एक भाई का विवाह उसी ने कराया, सबसे छोटे भाई को एम.बी.बी.एस. पढ़वा रही है, धन की अब कोई कमी नहीं है।

आज उसे अपनी माँ की डायरी मिली, जिसमें उनकी लिखी एक कविता थी,

"मैं चुनौती देती हूँ ईश्वर को

तू ले जा मुझे उड़न-खटौले में

स्वर्ण-पथ पर 

मेरा पुनर्जन्म होगा ही,

मेरी हर मृत्यु के बाद,

जब तक मेरे स्वप्न सत्य के वस्त्र न पहन लें

और लक्ष्य मेरी मुट्ठी में बंद न हो जाये।"

और उत्तमा ने आईने के समक्ष बैठे-बैठे ही कविता की हू ब हू नकल एक दूसरी डायरी में की और वह दूसरी डायरी अपनी अलमारी में रख दी।


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