पुलाव या खिचड़ी
पुलाव या खिचड़ी
पुलाव या खिचड़ी
लेखक मान सिंह नेगी
गोली से भी तेज चलती है कलम
आज रविवार का दिन छुट्टी का दिन। रोज की हाहाकार से दूर रहने का दिन।
आज एकदम आराम से रहने वाला दिन। आज एकदम आराम करने का दिन।
सच कहूं शनिवार के दिन मेरे साथी शीशराम पंत ने कहा आज मैं रुक जाता हूं।
उनके ये शब्द मेरे कानो में मिश्री घोल रहे थे।
मैं तो समझ रहा था आजकल कोई भी शुगर के डर से मीठा बोलना ही बंद कर दिया है।
आपको बता दूं काफी लंबे समय से मेरा मन इस मधुर वाणी को सुनने के लिए बेताब था।
क्योंकि मुझे एहसास हो रहा था। मेरा शरीर आराम मांग रहा है। मेरा शरीर आराम करना चाहता है।
यह मैं अच्छी तरह से समझ रहा था।
परंतु मारता क्या ना करता के एहसास नहीं मुझे जिम्मेदारियां से इस प्रकार जकड़ा हुआ था।
मैं चाह कर भी उससे अलग नहीं हो सकता था।
सच कहूं मुझे काम करना बेहद प्रिय है।
जबकि मैं जानता हूं यदि मैं कुछ दिन काम पर नहीं जाऊंगा तब भी कंपनी का काम रुक नहीं सकता।
उसके बावजूद न जाने क्यों मुझे अपने काम से इतना मोह है।
मैं सुबह जल्दी और देर रात तक काम करने के लिए बाध्य हो जाता हूं।
इन सब के बावजूद कभी ना कभी शरीर आराम मांगने लगता है।
जब शरीर आराम मांगता है। तो आराम कर लेना चाहिए। क्योंकि कहा जाता है शरीर यदि स्वस्थ रहेगा तो कार्य करने की क्षमता दोगुनी हो जाएगी।
जब कार्य करने की क्षमता दोगुनी होगी।
तो कठिन से कठिन कार्य भी सरल हो जाता है।
इसलिए आराम करना भी बेहद जरूरी है।
जैसे ही मेरे सहयोगी शीशराम पंत ने कहा आज मैं रुकूंगा।
तो यह शब्द सुनकर मेरी खुशी का कोई ठिकाना ना रहा।
यह शब्द सुनकर मुझे छुट्टी का वह मीठा-मीठा एहसास हो रहा था।
मानो बिन मांगे मोती मिल गया हो।
मैं अपने सहयोगी शीशराम पंत को मन ही मन धन्यवाद देते हुए ड्राइवर बघेल के द्वारा द्वारका मोड़ मेट्रो स्टेशन पहुंच गया।
जहां से मैने eco कर लेना बेहतर समझा।
Eco ने कुछ ही समय में मुझे दिल्ली के राजपुरी बस स्टैंड पर छोड़ दिया।
उसके पश्चात छुट्टी की वह खुशी मेरे पैरों में पंख लगाकर इस प्रकार उड़ती चली गई।
मैं कब घर पहुंच गया इसका अंदाजा मुझे नहीं लगा।
शायद बहुत दिनों पश्चात छुट्टी का वह आनंद छुट्टी का एहसास मुझे खुशी से भर रहा था।
मैं मन ही मन अपने आराध्य राधे कृष्ण का धन्यवाद दे रहा था। हे भगवान राधे कृष्ण जब-जब मैंने आपको पुकारा है।
तब तब आपने मेरी हर प्रकार से मदद की है।
हे भगवान राधे कृष्ण में आपका सदैव ऋणी रहूंगा।
मैं आपका हर चीज के लिए धन्यवाद करता हूं।
दोस्तों शनिवार का दिन इस प्रकार आराम में बीता कि रविवार का दिन कब बीत गया यह भी मुझे नहीं पता चला।
अभी शाम के 7:45 बज रहे हैं। मेरी पत्नी पुष्पा ने पूछा पुलाव बनाऊं या खिचड़ी।
मैंने कहा पुष्पा पुलाव बनाओ या खिचड़ी यह तुम पर निर्भर करता है।
मेरी हमारी तुम्हारी चटोरी जिह्वा पुलाव भी खा लेगी और खिचड़ी भी।
पुष्पा ने कहा एक चीज बताओ मैं पुलाव बनाऊं या खिचड़ी।
मैंने कहा पुष्पा आप पुलाव बनाओ या खिचड़ी परंतु ऐसा बनाना जिसे अमृत भोजन कहा जा सके।
वह पुलाव हो या खिचड़ी ऐसा अमृत भोजन हो। जो कम खाना चाहता हो वह भी भरपेट खा ले।
जो कम खाना चाहता हो वह भी भर पेट खा ले।
जो नहीं खाना चाहता हो वह भी उस अमृत भोजन को चख कर खाने को तैयार हो जाए।
जो थोड़ा खाना चाहता है। वह ज्यादा से ज्यादा खा ले।
जिसे भूख ना हो वह उस अमृत भोजन की सुगंध मात्र से ही खाना खाने को तैयार हो जाए।
पुष्पा अब अमृत भोजन बनाने की जिम्मेदारी तुम पर है।
पुष्पा ने कहा अमृत भोजन से तुम्हारा क्या तात्पर्य है।
मैंने कहा अमृत भोजन में मसालों से ज्यादा स्त्री के हाथ का हुनर बोलता हैं।
मैंने कहा पुष्पा अमृत भोजन में घी मसाले आंच पानी से ज्यादा स्त्री के हाथों में वास करती मां अन्नपूर्णा का आशीर्वाद बोलता है।
पुष्पा ने कहा मैं आपकी बात समझ गई।
मैं इस प्रकार का अमृत भोजन बनाऊंगी जैसे महाभारत में एक चावल के दाने से कई साधु संत महात्माओं का पेट भर गया था।
मैं भोजन को अपने प्रेम और समर्पण से इस प्रकार बनाऊंगी वह अमृत बन जाए।
मैं आपकी बात समझ गई हूं अमृत भोजन वह होता है। जिसे प्राप्त कर आत्मा तृप्त हो जाती है।
अमृत भोजन वह होता है जिसे प्राप्त कर जब आत्मा तृप्त होती है।
तब श्री मुख से भगवान राधे कृष्ण का तन मन आत्मा दिल सब के सब धन्यवाद देते हैं।
वह आत्मा तृप्त आत्मा कहती है। हे भगवान राधे कृष्ण आपने हमें अमृत भोजन देकर आत्मा तृप्ति कर दी।
अमृत भोजन वह कहलाता है। जिसे प्राप्त करने के पश्चात कुछ भी खाने की चाहत नहीं होती।
अमृत भोजन वास्तव में वह कहलाता है।
जब मन से दिल से आत्मा से शब्द निकलते हैं।
हे भगवान इस अमृत भोजन के लिए आपका धन्यवाद।
उसके पश्चात मन ना मीठा खा सकता है ना स्वीट डिश खा सकता है ना मिठाई खा सकता है ना ही आइसक्रीम खा सकता है।
मैंने कहा पुष्पा जिस अमृत भोजन की कल्पना आपने की है। उस अमृत भोजन के लिए देवता भी तरसते हैं ।
अमृत भोजन वही कहलाता है। जहां पर कोई कितना भी परखी भोजन का स्वाद समझता है जानता है।
वह भी उस भोजन में किसी प्रकार की कोई कमी ना निकाल सके।
उसे वास्तव में अमृत भोजन कहा जाता है।
पुष्पा जिस प्रकार तुमने बताया की अमृत भोजन प्राप्त होने के पश्चात आत्मा तृप्त होती है।
वास्तव में यही अमृत भोजन कहलाता है।
मैं और मेरी आत्मा आपके हाथ में वास करते हुए मां अन्नपूर्णा का आशीर्वाद के द्वारा आज हम सब परिवार वाले अमृत भोजन करेंगे।
हालांकि आपके हाथ में मां अन्नपूर्णा का आशीर्वाद है।
यह बात में आपको पहले भी कई बार कह चुका हूं।
परंतु आप आप अपनी मां अन्नपूर्णा से भरे हाथों को व्यापार में नहीं बदल पा रही हो।
यह मुझे थोड़ा विचलित करता है।
मैं जानता हूं यदि आपने मां अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से भरे हुए हाथों का स्वाद व्यापार में इस्तेमाल किया।
तो निश्चित रूप से आप एक दिन बहुत बड़ी बिजनेस वूमेन बनोगी।
अंत में मैं हम सब भगवान राधे कृष्ण का धन्यवाद करते है।
हम हमारी आत्मा भगवान राधे कृष्ण का स्वयं से धन्यवाद करती है।
पुष्पा जो भी स्त्री स्वस्थ हृदय स्वस्थ मन स्वस्थ विचार के साथ भोजन बनाती है।
वह अमृत भोजन ही कहलाता है।
वह अमृत भोजन खाने वाले को स्वस्थ रखता है।
वह अमृत भोजन खाने वालो को स्वस्थ लंबी आयु प्रदान करता है।
इतिश्री
