पत्थरदिल
पत्थरदिल
रोज की तरह वह आज भी फिर से मंदिर में गया। मंदिर के अंदर जाते ही जोर से उसने घंटी बजाई और फिर अपनी फरियाद सुनाने लगा,"इतनी बड़ी दुनिया में मेरी माँ ने मुझे अकेला क्यों छोड़ दिया? कैसे इस मन्दिर की सीढ़ियों पर एक मासूम बच्चे को छोड़ कर वह अपनी जिंदगी में मसरूफ़ हो गयी? और मैं लावारिस की जिंदगी जी रहा हूँ जिसे सुबह की उजली धुप भी अच्छी नहीं लगती। इस विशाल आसमान के चाँद तारे सारे होते हुए भी कभी अपने नहीं लगते हमेशा ही अजनबी से लगते रहे है। बचपन से लेकर आजतक हर रोज मैं भगवान से पूछता आ रहा हूँ पर मुझे कभी कोई जवाब नहीं मिलता।"
मंदिर से वापस लौटते हुए वह मन ही मन सोच रहा था,'शायद भगवान गूँगा है या फिर बहरा है। या वह है भी? शायद वह एक्जिस्ट नहीं करता क्योंकि वह एक्जिस्ट करता होता तो मुझे यह लावारिस होने की सज़ा क्यों देता बग़ैर किसी गुनाह के?'
अचानक उसे हँसी आयी क्योंकि पत्थर की मूर्ति वाला भगवान पत्थरदिल तो होगा न........
