पत्र
पत्र


बात ये करीब 8, 9 साल पुरानी हैं। जब एंड्राइड मोबाइल हुआ तो करते थे पर तब बच्चों को जल्दी मिलते नहीं थे, जब व्हाट्सएप्प कम और मैसेज पर बाते हुआ करती थी और फेसबुक भी नया नया था।
तब मैं 12वी कक्षा का छात्र था, फेसबुक के माध्यम से पहेली सहेली बनी थी जो कि उम्र में मुझसे करीब 4,5 साल बड़ी थी, वो मुझेसे छोटे भाई और घनिष्ट मित्र जैसे व्यवहार करते थे।
उसी समय की बात हैं उनके रिश्ते के बात चल पड़ी तब वही पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे थे, और किसी से प्रेम करते थे.
उन्होंने मुझे यह बात बताई पर उस उम्र और वो दौर में मुझे कुछ समझ नहीं आया कि क्या हो रहा हैं।
तब कहीं मैंने पड़ा था कि नदी का जब तेज बहाव हो तब नदी के खिलाफ खड़े नहीं उसके साथ तैरना चाहिए।
यही बात मैंने उन्हें मैसेज की थी।
पर वो मान नहीं रहे थे लेकिन जब परिस्थितियां परीक्षा लेता हैं तब कमजोर प्यार वाला भागता ही हैं। वही हुआ जिन्हें वो प्यार करते थे वो उन्हें छोड़ कर चला गया। तब वो एक दिन बहुत रोए और मुझे बताया, उसके बाद करीब 2 महीने के लिए बात बन्द कर दी।.
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उन 2 महीनों की अवधि में मैंने एक पत्र लिखा था उनके लिए। जो मैं इस डर से भी भेज नहीं पाया कि कोई और पड़ लेगा तो क्या होंगा।
अब इतने सालों बाद वो पुरा पत्र तो मुझे याद नहीं पर सारांश में कहूँ तो मैंने बस इतना लिखा कि जो हो रहा है होने दीजिए, जिंदगी में कभी रुके नहीं, हर परिस्थिति का जवाब आपके पास ही हैं।
वो पत्र आज भी मेरे पास हैं जो मैंने भेजा नहीं शायद मेरी पुरानी फाइल में रखा हैं छुपाके। वैसे अब इतने सालों बाद उस पत्र की आवश्यकता भी नहीं क्यों कि उन 2 महीनों के बाद ही उनके शादी का निमंत्रण कार्ड मेरे घर आया में जा तो नहीं पाया था पर पत्र लिख कर आने वाले भविष्य की और नई यात्रा की शुभकामनाएं दी थी। आज वो बहुत खुश है। और में मामा भी बन गया हूँ।
तो कभी कभी आप एक पत्र तो लिखते हैं पर पोस्ट नहीं करते या लिखना चाहते है पर लिखते नहीं यह समय के साथ आपने मायने खो जाता हैं।
उन पत्रों को या उन यादों को पीछे छोड़कर चलना ही जिंदगी है।
बस यही थी मेरी छोटी सी कहानी पत्र जो मैंने लिखा था पर भेज ना सका।