Rahul Wasulkar

Drama

4.5  

Rahul Wasulkar

Drama

टपरी

टपरी

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फिर 3 साल बाद आज हम वही हैं वही कॉलेज की टपरी, वही शंकर चाचा, वही कड़क चाय और हम चार यार आर्यन, अजिंक्य, अमर और मैं। बस थोड़ा वक्त बदल गया हैं, चिकने चेहरे पर अब दाड़ी आने लगी हैं।

शंकर चाचा के भी बाल अब ज्यादा भूरे हो गए हैं वैसे तो कॉलेज के दिनों में हम रोज आया करते थे चाचा की टपरी पर, तबसे उनके साथ अलग ही रिश्ता हैं, और यह रिश्ता उस घटना से और भी मजबूत हो गया जिसे हम याद नहीं करना चाहता आज वही घटना आपको बताता हूँ।

हम इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में थे, आर्यन और अमर हमउम्र थे।अजिंक्य और मुझ से 2 वर्ष बड़े थे।

ऐसे ही एक दिन की बात हैं, हम शंकर चाचा की टपरी पर बैठे हुए बातें कर रहे थे, उस दिन शंकर चाचा का बेटा दीपक जो ग्यारवीं कक्षा में पड़ता था वो भी चाचा का काम में हाथ बटा रहा था।

तभी चाचा ने कहा : दीपक बेटा तू दुकान पर रुक में आगे वाली साड़ी की दुकान पर चाय देकर आता हूँजो रास्ते के उस पार थी।

दीपक : आप रुको पापा में देकर आता हूँ और हाथ में चाय की केटली और कप लिए निकल गया। थोड़ी देर बाद जोर से आवाज आयी किसी के टकराने की और जोर की चीख जिसने आसपास सबका ध्यान खींचा जैसे ही हमारी नजर दौड़ी, तबतक शंकर चाचा दौड़ पड़े दीपक दीपक चिल्लाह कर हम भी उनके पीछे भागे तो देखा कि रास्ते किनारे दीपक जमीन पर पड़ा दर्द में लिपटा था, शंकर चाचा ने दीपक का सिर गोदी में उठाया और एक बाप अपने बेटे को हिम्मत देते हुए रो रहा था जिसका वर्णन करना मुश्किल है हम स्तब्ध खड़े रह गए कुछ समझ नहीं आ रहा था , भीड़ भी तमाशा देखने लगी तब आर्यन जोर से भीड़ को चीरते हुए गाड़ीया रोकने की कोशिश करने लगा अमर भी दौड़ा आर्यन के पीछे

अजिंक्य और में शंकर चाचा के पास गए दीपक के घाव से जहाँ जहाँ से खून बह रहा था उसे रोकने लगे।

आर्यन भीड़ को गाली देते हुए बड़े मुश्किल से एक ऑटो रुका लिया। आर्यन अमर एक स्वर में : चाचा दीपक को ले आओ।

अमर मुझे देखते हुए : भाई उठा दीपक को अजिंक्य और मैंने एक दूसरे को हामी भरते हुए दीपक को उठा लिया तबतक दीपक बेहोश हो गया था और शंकर चाचा जो बस रो रहे थे जिन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था वो दीपक का सिर पकड़ हुए थे।

आर्यन : जल्दी कर। 

हमने दीपक को ऑटो में लेटा दिया शंकर चाचा सिर पकड़ हुए ऑटो में एक साइड बैठे।

आर्यन : अमर तू निकल ऑटो के साथ हम हॉस्पिटल बाइक से आते हैं।

शंकर चाचा : बेटा मेरे गल्ले में रखे हुए पैसे भी लेते आना।

ऑटो निकल पड़ा हम दौड़ते हुए टपरी पर पहुँचे गल्ले के पैसे उठाये और बाजू के दुकान वाले को बता दिया ध्यान रखना

आर्यन तेज निकला और ऑटो के आगे तेज चलने लगा हॉर्न देते हुए में और अजिंक्य ऑटो के पीछे थे

जैसे तैसे हॉस्पिटल पहुँचे गए दीपक को तुरंत इलाज सुरु हुआ शंकर चाचा ने अपने रिश्तेदारों को बुला फ़ोन लगा कर बुला लिया उस दिन हम ने एक्स्ट्रा क्लास कर ली जो जिंदगी ने हमे सिखायी

पहेली - इंसानियत दूसरों में नहीं खुद में ढूंढी जाती हैं

दूसरी - जब कोई हिम्मत बांधता हैं तो बिना सोचे समझे उसका साथ देना चाहिए । जैसे आर्यन हिम्मत देता रहा

तीसरा - रिश्ता युही पक्का नहीं होता उसके लिए कर्म भी वैसे ही चाहिये

करीब 2 महीने लगे दीपक को ठीक होने के लिए ।

अरे मेरी चाय ठंडी हो गयी आपको घटना बताते बताते थोड़ी देर रुक होते तो आपको दीपक से मिला देता दीपक अब  यही हमारे कॉलेज में पड़ता हैं और शंकर चाचा का काम में हाथ भी बटाता हैंऔर शंकर चाचा के पास आज भी हमारी उधारी चलती हैं तो देखा जाए तो कुछ नहीं बदला बस चिकने चेहरे पर दाढ़ी आ गयी।


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