Rahul Wasulkar

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माधवन (एक रहस्य)

माधवन (एक रहस्य)

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बहुत कम ही लोग जानते हैं , दंडकारण्य वन क्षेत्र की माधवन की रहस्यम कहानी । दंडकारण्य विंध्याचल पर्वत से गोदावरी तक फैला हुआ प्रसिद्ध वन है। यहाँ वनवास के समय श्रीरामचंद्र बहुत दिनों तक रहे थे।


जब रावण सीतामाता का हरण करके ले जा रहा था , तब जटायु और रावण का युद्ध हुआ था , और रामजी की राह में जटायु पहले शहीद थे , उनके कुछ अंग दंडकारण्य वन में आ गिरे पर साथ ही वन क्षेत्र में गिरा रावण के मुकुट का एक हीरा जिसमे अलौकिक शक्तियों का वास था ।


आज दंडकारण्य का अधिकतर भाग छत्तीसगढ़ में आता है । वही वन के कस्बे में माधवन रहता था । एक दिन वन के चलते चलते एक गड्ढे में माधवन का पैर फस गया गड्ढे की चौड़ाई अधिक नही थी । इस कारण माधवन का पैर निकलना मुश्किल था तो वो आजूबाजू की जमीन खोदने लगा , खोदते खोदते उसे कुछ चुभा और खून निकलने लगा दरअसल रावण के मुकुट के हीरे की नोक ने उसके हाथ पर छोटा सा घाव किया और साथ ही रावण की मुकुट के हीरे का रक्तस्नान हो गया जिसे लाल रंग का तेज प्रकाश गढ्ढे में दिखने लगा । 

माधवन ने बड़ी तेजी खोदकर हीरे की निकाला लिया सफेद हीरा पर लगा रक्त हीरे को लाल रंग में रंग रहा था और माधवन की आंखों में लाल चमक भर रहा था ।माधवन ने हीरे को मुट्ठी में जैसे ही भर लिया उसके शरीर का रंग लाल और सारे शरीर की नसें दिखने लगीं मानो जैसे उसकी आत्मा बाहर निकलने को तड़प रही हो और फिर माधवन बेहोश हो गया ।


जब माधवन को होश आया तक उसने देखा कि उसके हाथ मे हीरा नहीं है , और हथेली पर एक लाल सा निशान बन गया जैसे किसी ने रंग लगाया हो । उसने निशान को मिटाने की कोशिश की पर वो नाकामयाब रहा ,फिर इधर उधर बहुत देर तक हीरे को तलाशते हुए संध्या हो गयी , निराश हो वो अपने कस्बे मतलब घर जाने लगा ।वन की पंगडंडी से जाते हुए एक पेड़ आचनक उस पर गिरने लगा , कही और जाने का रास्ता न था नाही आगे पीछे हटने का समय , माधवन ने अपने हाथ ऊपर किये और पेड़ गिरते गिरते स्थिर हो गया मानो जैसे माधवन के हाथ से कुछ ऊर्जा निकल रही हो जो पेड़ को गिरने नही दे रही , समय देख माधवन पीछे हटा और फिर हाथ नीचे कर गया । और पेड़ जोर से नीचे गिर गया ।


तब माधवन को एहसास हुआ कि उसके शरीर के भीतर ऊर्जा का प्रवाह बहुत तेज हो रहा है , जैसे कोई ऊर्जा उसके शरीर से बाहर निकलने को उत्साही हो , वास्तव में रावण के मुकुट का हीरा माधवन के शरीर मे समा गया था जिसे उसे यह ऊर्जा प्राप्त हुई , अपने झटकते हुए माधवन ने एक पत्थर पर हाथ से इशारा कर उसे हवा में उड़ा दिया , इस तरह वो बस हाथों के इशारों से पत्थरों को इधर उधर करता , पेड़ हिलाता , वो समझ गया था कि उसके भीतर तो शक्ति है उसे वो बहुत कुछ प्राप्त कर सकता है ,रात होने लगी माधवन घर की और चल पड़ा । 

दूसरे दिन सुबह जब वह उठा तब उसकी आंखों का तेज , और चेहरे पर अलग ही मुस्कान थी , अपने घर से निकलते ही वो जोर जोर से चिल्लाने लगा , सुने कस्बे वालों तुम्हरा भगवान माधवन तुम्हारे सामने खड़ा है मेरी पूजा करो , यह सुन कस्बे के बच्चे हंसने लगे उनकी हंसी देख माधवन ने उन्हें अपनी भीतरी ऊर्जा से हवा में उठा लिया और इधर उधर कर परेशान करने लगा । 

आज के विज्ञान युग मे इस क्षमता को टेलीकेनेसिस कहा जाता है पर यह सीमित मात्रा में ही देखी जाती है पर माधवन की ऊर्जा की कोई सीमा नहीं थी । माधवन के इस चमत्कार को देख कस्बे को लोगों ने उसे पूजना शुरू किया , लेकिन माधवन को इस ऊर्जा का गुरुर चढ़ने में भी समय नहीं लगा .. जब भी वो अपने घर से बाहर निकलता , बच्चो को हवा में उड़ा देता , महिलाओं से बुरा व्यवहार करता , जो विरोध करता उसको वो हवा में उड़ा कर जमीन पर पटक देता ।


पर वह यह भूल गया था कि संसार ऐसे नही चलता , संसार सब कुछ संतुलित करके चलता है और सबसे बड़ी शक्ति संसार की प्रकृति ही है जिसके समकक्ष कोई भी खड़ा नहीं होता । माधवन से कस्बे वाले बहुत परेशान हो गए थे , इसी तरह कुछ महीने बीते और सावन का मौसम आया पक्षिम के बादल दण्डकारण्य के वन क्षेत्र में दस्तक दे चुके थे, लगातर बरसात से गोदावरी नदी अपने उफान पर थी , घाटियों से पानी बह कर कभी भी कस्बे को बहाकर ले जा सकता था , तब कस्बे के लोगो ने एक युक्ति सोची! क्यों न माधवन को घाटियों में भेजकर गोदावरी नदी के पानी को मोड़ने के लिए कहा जाए , जो कि नामुमकिन है इस तरह माधवन का गुरुर भी टूट जायेगा । सब ने सहमती दी । सब माधवन के घर गए और गुहार लगाई प्रभु हम महानदी गोदावरी से बाचाए वो कभी भी घाटियों से बहकर कस्बों में आ सकती है आप अपनी दिव्य शक्ति से गोदावरी की राह बदल दे , हम हमेशा आपके दास रहंगे , अपनी प्रसंशा और लोगो को दास बनाने की लालसा ले कर माधवन घाटियों में चला गया जहां महानदी गोदावरी उसकी राह देख रही थी । क्यों कि अब संसार फिर संतुलित होने वाला था । लगातार बारिश से गोदावरी नदी में उफान आया और  सारा पानी बाढ़ रूप में घाटियों की तरफ बहने लगा , यह देख माधवन ने अपने दोनों हाथों सम्मुख किये और पानी रोकने की कोशिश की पर गोदावरी की 40,50 फ़ीट लहरें को रोकना नामुमकिन था , माधवन ने पूरी जान लगा दी , और माधवन को भी एहसास हुआ कि उसकी बुराई और गुरुर का अंत निशिचित है और एक तेज बहाव के साथ माधवन गोदावरी नदी के साथ बह गया बस माधवन के अंत के साथ महानदी गोदावरी भी शांत होने लगी और पानी कम होने लगा फिर प्रकृति ने अपनी ताकत का एक पैमाना सब को दिखा दिया और संसार ने अपना संतुलन बना लिया । लेकिन कहा जाता है कि आज भी गोदावरी नदी के किनारे माधवन का शरीर कहीं पड़ा हुआ है और रावण के मुकुट का हीरा उसके शरीर के साथ ही गोदावरी नदी के किनारे में दफ्न है ।


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