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पता नहीं यह दिल क्या चाहता है

पता नहीं यह दिल क्या चाहता है

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पता नहीं यह दिल क्या चाहता है

सुबह होती है तेरा ख्याल आता है 
दिन की पहली दुआ में भी तेरा नाम आता है 
वक़्त बाद में देखता हूँ मैं 
पहले मेरी आँखों में तेरा चेहरा आता है 
पता नहीं यह दिल क्या चाहता है

ज़िन्दगी में दौड़ भाग बहुत है मेरी 
पर तेरे लिए जैसे मेरा वक़्त थम सा जाता है 
अपने काम में हर वक़्त मशगूल रहता हूँ मैं 
पर मेरा यह पागल मन हर वक़्त तुझसे बतियाता है 
पता नहीं यह दिल क्या चाहता है

तनहा अकेले बैठता हूँ 
तो तेरी बातें याद करके मुस्कुराता हूँ 
बैठे बैठे यूँ ही तेरे ख्यालों में खो जाता हूँ 
कभी लगता है पागलपन की कोई बीमारी तो नहीं 
फिर एक हंसी देकर आगे बढ़ जाता हूँ 
जाने कैसे हर चेहरे में तेरा ही चेहरा नज़र आता है 
पता नहीं यह दिल क्या चाहता है

तुझे भूलने की कोशिश भी करूं 
तो दुआ में तेरा नाम आता है 
तुझसे जितना दूर जाना चाहूँ 
यह कमबख्त तेरे उतने ही करीब आना चाहता है 
दिन की शुरुआत भी तुझसे होती है 
और नींद में भी यह तेरे ही सपने देखना चाहता है 
हर लम्हा तेरे साथ ही जीने की ज़िद
जाने क्यूँ यह कर जाता है 
पता नहीं यह दिल क्या चाहता है


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