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क्यूँ छोड़ गयी दोस्त।

क्यूँ छोड़ गयी दोस्त।

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तेरी याद आती है दोस्त ...
तेरी चुप्पी बहुत तंग करती है दोस्त ...
तेरी हंसी बहुत याद आती है दोस्त ...
हुयी है गलती, लड़ लेती यार 
इस तरह एकदम से 
क्यूँ छोड़ गयी दोस्त ...

तेरी आवाज़ कानों में गूंजती है 
तेरी हंसती हुयी तस्वीर रोज़ सपनों में बनती है 
तुझे रोज़ देख कर अनदेखा करना आसान नहीं है 
अब तो तेरी नफरत से भी नफरत करना आसान नहीं है 
गुस्सा है तो डांट देती न यार ...
इस तरह एकदम से 
क्यूँ छोड़ गयी दोस्त ...

यार नोट्स भी बना दूंगा 
हर पेपर में पढ़ा भी दूंगा ...
अरे कितनी भी चॉकलेट खा लेना ..
मैं सारी दुनिया की चॉकलेट तुझे ला दूंगा ...
अब तो तुझसे भागने के और बहाने भी नहीं रहे ...
तुझे मनाने की जिद भी कमज़ोर पड़ रही है यार 
इस तरह एकदम से 
क्यूँ छोड़ गयी दोस्त ...

मेरा वक़्त तो पता नहीं कैसे कटता था 
कब हुयी सुबह, कब हुयी रात, कभी पता ही नहीं चलता था 
अब वक़्त एक ही मुकाम पे थम सा गया है 
मेरी ख़ुशी में शायद तेरा हँसता चेहरा रम सा गया है 
तू फिर से तंग करने लग जा न यार 
इस तरह एकदम से 
क्यूँ छोड़ गयी दोस्त

फ़ोन मेरा अब भी बजता है 
पर तेरे नाम से उसमें मेसेज नहीं आता 
लाड तो तुझपे अब भी उतना ही आता है 
पर अब मुझे उतना जताना नहीं आता दोस्त 
इक दफा फिर कागज़ की कश्ती बनाएँगे ...
फ्रूटी पीने को कैंटीन तक की दौड़ रोज़ लगाएँगे 
रोना नहीं आता मेरेको 
पर रात को तुझे सपने में देखने को ज्यादा सोता हूँ अब मैं 
सोचता हूँ तभी तुझसे पूछुंगा 
इस तरह एकदम से 
क्यूँ छोड़ गयी दोस्त


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