आफ़ताब सा झिलमिलाता हुआ कोई आँखों में बस जाता है ।

आफ़ताब सा झिलमिलाता हुआ कोई आँखों में बस जाता है ।

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आफ़ताब सा झिलमिलाता हुआ कोई आँखों में बस जाता है । 
बातें करते करते दिल के घरोंदे में बस जाता है ॥ 
चाहता है करीब रहे वो दिल के, बाहों में भरने को मन चाहता है । 
जाने क्यूँ अचानक फिर , आँखों के सामने से वो दूर हो जाता है ॥ 
लगाती कमी है जब उसकी 
खलती है फिर दूरियां। … 
खलती है फिर दूरियां ॥

हाथो में हाथ लेकर बैठे जो, किनारे किसी समंदर के । 
बनाने चले थे इक जहां वो,मन में मोहब्बत भर के ॥ 
कभी इक दुजे की आँखों में वो खुद क देखते थे । 
इशारों मुस्कराहट से सब कह देते थे ॥ 
अब इक दूजे की तस्वीर में वो लम्हे ढूंढते हैं । 
जब लगती है कमी उसकी 
खलती है फिर दूरियां। … 
खलती है फिर दूरियां ॥

बातें करने के ज़रिये तो मिल भी जाते है । 
आवाज़ अलग अलग तरीकों से सुन भी पातें है ॥ 
पर इक जगह दिन होता है , तो दूसरी तरफ रात होती है । 
कुदरत के आगे , चाहत बेबस हो जाती है ॥ 
फिर भी रातों को जागकर कशिश करते हैं फासले मिटाने की 
जब लगती है कमी उसकी 
खलती है फिर दूरियां। … 
खलती है फिर दूरियां ॥

इम्तिहान भी इश्क़ का अभी होता है । 
ऐतबार का धागा भी इसी आग में तपता है ॥ 
इश्क़ का रंग गाढ़ा होता है , जब मोहब्बत को इंतज़ार का नगीना मिलता है । 
तन्हाइयो में उसकी यादों से गुफ्तगू होती है , सावन को तड़पाने का बहाना मिलता है ॥ 
जब जज़्बात सच्चे हो तो वक़्त फासले मिटा देता है 
वरना हर लम्हा 
जब लगती है कमी उसकी 
खलती है फिर दूरियां। … 
खलती है फिर दूरियां ॥


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