परवरिश
परवरिश
"उत्तरार्द्ध एक अच्छी जगह है। मम्मी -पापा को वहीँ भेज देंगे। वहां पर उनकी देखभाल भी अच्छे से हो जायेगी और इतने वृद्ध लोगों के साथ रहने से मन भी अच्छे से लग जाएगा। यहाँ पर बिना वजह की टोकाटाकी करते रहते हैं।अब बिज़नेस करने के तरीके बदल गए हैं ;फिर भी अपनी बेकार की सलाह देते रहते हैं। " मृदुल अपनी पत्नी प्राची को बता रहा था।
"वहां जाने के लिए मान तो जाएंगे न। " प्राची ने कहा।
"मान ही जाएंगे। पापा तो शुरू से ही बहुत प्रैक्टिकल रहे हैं। यहाँ पर उनकी देखभाल के लिए जितना सर्वेंट को देना पड़ता है ;उससे कम खर्चे में उस वृद्धाश्रम में रह सकते हैं। मम्मी थोड़ी भावुक है ,लेकिन पापा मना ही लेंगे।" मृदुल ने कहा।
"हाँ ,ये बात तो है। लेकिन ;फिर भी। "प्राची ने कहा।
" तुम भूल गयी क्या जब पिछले साल आम का पेड़ कटवाया था तो मम्मी कितना मना कर रही थी। आँखों में आंसू भरकर बोली भी थी कि पेड़ में फल नहीं आते तो क्या हुआ अभी छाया तो दे ही रहा है। पापा को मैंने बताया कि इस पेड़ की लकड़ी ही लाखों रूपये में बिक जायेगी और तब पापा ने कैसे न कैसे मम्मी को समझा ही लिया था। "मृदुल ने प्राची को याद दिलाया।
"कह तो तुम सही रहे हो। "प्राची ने कहा।
"फिर हम तो उनसे मिलने कभी -कभी चले ही जाएंगे। "मृदुल ने कहा।
बेटे -बहू के मंसूबों की भनक शरद और उनकी पत्नी स्वाति को लग गयी थी। शरद जी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस बेटे के लिए उन्होंने हर रिश्ते को ताक पर उठाकर रख दिया था ,वह उनके लिए ऐसा सोचता है।
अपने बेटे को एक बेहतर ज़िन्दगी देने के लिए उन्होंने किसी भी और रिश्ते को ईमानदारी से नहीं निभाया था। धन -दौलत के लिए अपने सगे बड़े भाई तक को धोखा दे दिया था। उन्हें लगता था कि जैसा अभावों भरा बचपन उन्होंने जिया है ;उनके बच्चे को वैसा न जीना पड़े। मृदुल के मुँह खोलने से पहले उसकी ख्वाहिशें पूरी कर देते थे। घर ,बिज़नेस सब उन्होंने मृदुल के लिए ही तो खड़ा किया था।
लेकिन आज उनके बेटे को ही अपने पापा की भावनाओं का कोई ख्याल नहीं है। उन्होंने भी तो कभी किसी की भावनाओं का ख्याल कहाँ किया था?लेकिन वे अपने बेटे को अपना जैसे नहीं बनने देंगे।
कुछ दिनों बाद उत्तरार्द्ध वृद्धाश्रम से २ लोग शरद के घर पर आये। दरवाजा मृदुल ने ही खोला। उनके यह बताने पर कि वे आश्रम से आये हैं तो मृदुल ने कहा ,"अरे ,हम तो २ दिन बाद आपके यहाँ आने ही वाले थे। आपको तो मैंने आने के लिए कहा भी नहीं था। "
उनमें से एक ने कहा ,"हमें तो शरदजी ने बुलाया है। "
इतने में शरद जी भी आ गए और उन्होंने कहा ,"बेटा चौंकने की जरूरत नहीं है। तुम मुझे और स्वाति को आश्रम भेजना चाहते थे। मैंने तुम्हारी समस्या को सुलझा दिया है। मैंने यह घर आश्रम वालों को दान कर दिया है। अगर तुम यहाँ रहना चाहो तो तुम्हे इन्हे किराया देना पड़ेगा। ये एक फ्लोर तुम्हे किराए से रहने के लिए दे देंगे।बाकी का घर आश्रम के लोगों के रहने के लिए होगा। मुझे इस घर को छोड़कर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। "
मृदुल ने कहा ,"पापा,आप अपने बेटे के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं?"
शरद जी ने कहा ,"बेटा मुझ जैसे प्रैक्टिकल आदमी को यही एक समाधान सही लगा। तुम्हे बताता तो तुम अपनी माँ को रिश्तों और भावनाओं का वास्ता देते। इसलिए तुम्हे बिना बताये ही यह निर्णय ले लिया। फिर सब कुछ तो मैंने अपने हाथों से ही बनाया है तो तुमसे पूछने की जरूरत भी नहीं थी । पूरी ज़िन्दगी अपने और अपने बच्चे के बारे में ही सोचा। आज सोचा कि चलो थोड़ा दूसरों के लिए भी सोचकर इंसान ही बन लिया जाए। एक और बात, ऑफिस में भी अब से तुम एक एम्प्लोयी की हैसियत से जाओगे। तुम्हारा वेतन आदि तुम्हे शर्माजी ऑफिस के नए मैनेजर बता देंगे। सही लगे तो काम करो अन्यथा तुम कोई और नौकरी भी ढून्ढ सकते हो। "
मृदुल ने कहा ,"पापा आप यहीं रहो ;हम सबके साथ इसी घर में। आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है। मुझसे गलती हो गयी, जो आपको आश्रम भेजने के बारे में सोचा। "
शरद जी ने दृढ़ता से जवाब दिया ,"नहीं बेटा ,तुमने कोई गलती नहीं की है। गलती तो मेरी परवरिश में थी ;अब उसे सुधारने की कोशिश कर रहा हूँ। यह प्रैक्टिकल आदमी चाहता है कि उसका बेटा जाने कि ज़िन्दगी परियों की कहानी नहीं है। जो बच्चे चांदी की चमच्च के साथ पैदा नहीं होते उन्हें कैसे संघर्ष करना पड़ता है। तुम आज ही अपने फ्लोर पर शिफ्ट हो जाओ ताकि हमारे आश्रम के साथी लोग यहाँ आ सके। "
"मम्मी ,आप कुछ नहीं कहोगे ?",मृदुल ने कहा ।
"बेटा ,तुम्हारे पापा सही कह रहे हैं । अपने बच्चे को ज़िन्दगी का सबक सिखाना भी हमारी ही ज़िम्मेदारी है । ",स्वाति ने दो टूक कहा और शरद के साथ चली गयी ।